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________________ भगवान पार्श्वनाथ परमानन्द जैन शास्त्री भगवान पार्श्वनाथ ऐतिहासिक महापुरुष हैं। वे मंवर को अपने प्रार्य अष्टांगिकमार्ग में समाविष्ट किया जैनियों के तेवीसवें तीर्थकूर हैं। उनकी ऐतिहासिकता के था। 'अंगुत्तर निकाय में 'वप्प' को निर्ग्रन्यवावक बतलाया प्रमाण विद्वानों द्वारा मान्य किए जा चुके हैं। भारत में है३ । भौर उसकी 'पटुकथा' में वप्प को बुद्ध का चाचा उनके सर्वाधिक जैन मन्दिर और प्राचीन मूर्तियाँ उपलब्ध प्रकट किया है । इससे स्पष्ट है कि उस ममय कपिलवत्थु होती हैं। उनकी ऐतिहासिकता जैन साहित्य से ही में भी पार्श्वनाथ के अनुयायी रहते थे। और उनका नहीं; किन्तु प्राचीन बौद्ध साहित्य से भी प्रमाणित होती धर्म शाक्य क्षेत्र में भी था। भगवान महावीर के माता है। बुद्ध ने स्वयं पार्श्वनाथ के शिष्य पिहताम्रय मुनि से पिता और वैशाली गणतन्त्र के अध्यक्ष गजा चेटक मादि दीक्षा ग्रहण की थी और कठोर तपश्चरण भी किया मब पापित्तिक थे। कलिंग के राजा जितशत्रु भी था, अपनी उस तपश्चर्या के सम्बन्ध में बुद्ध ने जो कुछ पार्श्वनाथ की परम्परा के थे, किन्तु उस समय पावाकहा है उसकी जन तपश्चर्या से तुलना करने पर दोनो में पत्तिकोंकी सख्या बहुत कुछ विरल हो गई थी। इस सम्बन्ध समानता दृष्टिगोचर होती है। बुद्ध ने कुछ समय के में विशेष अनुमन्धान की प्रावश्यकता है। और पाश्वनाथ बाद उस कठोर तपश्चरण का, जो शरीर को कष्टकर था के शासन में बहुत शैथिल्य पा गया था। परित्याग कर दिया था। बुद्ध ने पार्श्वनाथ के चातुर्याम • पाश्र्वनाथ का जन्म और उनके पिता विश्वसेन १. मिरि पासणाहतित्थे सग्यतीरे पलासणयरत्थो। महाजनपद युग में बनारस में लगभग तीन हजार पिहियासवस्म सिस्सो महासुद्धो बुड्ढकित्ती मुणी ॥६ वर्ष पूर्व प्रर्थात ईमा से ८०० वर्ष पहले जैनियों के अंतिम तिमि पूग्णामणेहिं अहिंगम पव्वज्जाम्रो परिभट्टी। तीर्थकर भगवान महावीर से:५० वर्ष पहले जैन तीर्थकर रत्तबरं घरिता पवट्टियं तण एवं तं ॥७॥ दर्शनमार। पाश्वनाथ का जन्म क्षत्री कुल में हुआ था। इनका वंश २. "मज्झिमनिकाय के महासिंहनाद सुत्त (पृ० ४५-४६) उग्ग-उग्र या उग्ग (नाग) था। नागवंश भारत का में बुद्ध ने अपने प्रारम्भिक कठोर तपस्वी जीवन का प्राचीन क्षत्रिय राजवंश है, जिसमें अनेक राजाओं ने उल्लेख करते हए तप के चार प्रकार बतलाय है, भूमण्डल पर शासन किया है। यह नागवंश इक्ष्वाकु वंश जिनका उन्होंने स्वयं पालन किया था-तपस्विता, क्षना, जुगुप्सा और प्रविविक्तता । तपस्विता अथात् के समय तो थे ही; किन्तु उसके बाद बुद्ध और महावीर अचेलक-नग्न रहना, हाथ से ही भिक्षा भोजन के युग में भी वहाँ नागवंगी थे । पार्श्वनाथ के पिता का करना, केग और दाढ़ी के बालों को कोचना- नाम विस्ससेन या विश्वसेन था और माता का नाम वम्ही, उखाड़ना और कटकाकीर्ण स्थल पर शयन करना । वामा या ब्राह्मीदेवी था, जो महीपालपुर के राजा महीपाल रूक्षता-शरीर पर मैल धारण करना, स्नान न की पुत्री थी। भगवान पार्श्वनाथ के पिता के सम्बन्ध में करना, अपने मैल को न अपने हाथों से परिमार्जित जैन माहित्य में विश्वसेन, अस्ससेण या अश्वसेन पौर करना, और न दूसरे से परिमार्जित कराना, जुगुप्सा- - जल की बिन्दु पर भी दया करना। प्रविविक्तता- ३. एक समयं भगवा मक्केमु विहरति कपिलवस्थुम्मि । वनों में एकाकी रहना। इन चारों तपों का अनुष्ठान अथ वो वप्पो सक्को निगष्ट मावगी।'-अंगुत्तर निर्ग्रन्थ श्रमणों में होता था। निकाय, चतुप्कनिपात, वग्ग ५।
SR No.538018
Book TitleAnekant 1965 Book 18 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1965
Total Pages318
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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