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________________ पल्लू ग्राम की प्रतिमा व अन्य जैन सरस्वती प्रतिमाएँ (श्री धीरेन्द्र जैन) (CE सरस्टतो का प्राकृत प्रादि सभी विभिन्न नाम अनेकों नामो से स्मरण आदि से संबंधित हैं, जम जब भगवती भारतवर्ष की प्राचीन एव अर्वाचीन सरस्वती का शारदा रूप में चित्रण विचारधाराओं के अनुसार भगवनी किया जाता है तो वहां उस रवंत वर्ण सरस्वती यागोपाग विज्ञान एवं समस्त युक्र दिग्यलाना पावश्यक नहीं। वहा कलाओं की देवी मानी गई है, जिये विशंपना इस बात की हो जाती है कुछ विद्वान कि नाम से भी व्यवहन कि उसका प्रमुम्ब दस भुजाय चित्रित करम है। हिन्दूधर्म में परम्पती दवा होनी है। यही रूप चतुष्टिका नी यति पूर्ण ग्यान है ही, परन्तु कलाओं की अध्यक्षा शारदा देवी का वह बौद्ध तथा जनधर्म को भी उपाय माना गया है। दी रही है । यी जन तथा बीन्द्र प्रतिमा का प्रादुर्भाव धर्म के अनुसार इसे विभिन्न नामों में लम्बनऊ के राजकीय संग्रहालय में मुशोभित किया गया नयापि हममें सरस्वती की सबसे प्राचीन पापाण कार्ड विगंप अन्ना नहीं है। बाद निर्मित बण्डित प्रतिमा सुरक्षित है। साहित्य में महासरस्वती, प्रार्य बन इस प्रतिमा क घुटने उ.पर को है, बांय परम्यती वन शारदा, वज्रवाणी आदि हाय में धागे से बंधी तारपत्रीय भगवनी मरम्वता के प्रमुख नाम है। पुस्तक है तथा दाहिने हाथ में हिन्द धर्म में भी इस शारदा वान्दया अन्नमाला है। दोनों सेवक उपस्थित वीणावादिनी श्रादि अनेकों नामों में हैं। चरण चौकी पर ६ पंक्रियों का स्मरण किया गया है। कुषान कालीन एक लम्ब अंकित है। हम द्वितीय शताब्दी की प्रतिमा को जन्म के बारे में मान्यताएं विद्वानों ने जन सरस्वती की प्रतिमा पौगणिक गाथानों के अनुसार मृष्टि के रचयिता ब्रह्मा के माना है। इस ज्ञात होता है कि ईसा की द्वितीय शताब्दी मम्निक (बुद्धि विचार जन्य कल्पना) में उत्पन्न मानप, में ही जन मरम्बनी प्रतिमा का प्रादुर्भाव हो चुका था। कन्या के रूप में मरम्बनी का जन्म हुआ था। कुछ पौराणिक इमं उनकी पानी बननात है, पर वाम्नव में यह उन सुन्दर वन में प्राप्त प्रतिमा की शक्रि है । परम्वती का वर्णश्चत है, सदा रवंत वस्त्र सरस्वती की एक प्रनिमा मुन्दर वन में प्राप्त हुई है ही पहननी है, वाहन हंस भी श्येन माना गया है । वन जो अब कलकनं के प्राशुतोप संग्रहालय में है। इसकी कमल पर प्रासन लगाये हुये शुभ्रयश का प्रसार करती हुई निथि १२ वीं शताब्दी मानी गई है । यह पापाण पट पर वंत गंध का अनुलेपन एवं श्वेत ही वस्तुओं को कार्य उभरी हुई अंकिन है तथा वीणावादिनी की मुद्रा में देवी में ग्रहण करती है। इनकी वेशभूषा, रूप सौन्दर्य शरीर की खड़ी है । देवी ने अन्य बम्बाभूपणों के साथ कटिमूत्र तथा
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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