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________________ अनेकान्त ५५ प्रतिष्ठाकार हैं । जितनी विवप्रतिष्ठाएँ और किसी किमी वि. सं. ११४८ में मुडामा नगर में राजा शिवसिंह के प्रतिष्ठा में जितनी अनगिनत जिन प्रतिमाओं की प्रतिष्टा इन शासनकाल में इन भ० जिनचन्द्र ने शाहजीवराज पापदी. के द्वारा सम्पन हुई उननी शायद इनके पहिले या पीई अन्य बाल के लिए एक अभूतपूर्व बिंब प्रतिष्ठा की थी। उसके किसी एक प्रतिष्ठानार्य द्वारा नहीं हुई। पट्टावाली एक वर्ष पूर्व (मं.१५४७ में) तथा एक वर्ष पश्चात् में उनका म्मरण 'तर्क-ध्याकरणादि-प्रन्य-कुशलों' 'चारित्र (पं० १९४६ में) भी संभवतया उसी नगर उसी श्रावक रामणि', 'मार्गप्रभावक' प्रादि विशेषणों के साथ किया अंप्ठ के इन्होंने दो अन्य प्रतिष्ठायें की थीं उतरभारत के गया है। इसमें विदिन होता है कि यह अंट विद्वान एवं कोने कोने में प्राप्त इनके द्वारा प्रतिष्ठित अनगिनत पाषाण चारित्रयान सन्त थे, इनक द्वारा की गई महनी मार्गप्रभावना प्रतिमानों पर अधिकतर पं.१५४८ या फिर १५४७ अथवा नो हमी तथ्य से प्रमाणित है क इनके द्वारा प्रतिष्ठित जन ।४६ क वर्ष ही बद्धा अंकित पाये जाने हैं। अमरावती पनिमा सम्पूर्ण उत्तरभारत के प्रायः प्रत्येक जैन मन्दिर में नगर में विद्यमान कई प्रतिमानों पर प्रतिष्ठाचार्य के रूप में मान भी विद्यमान है। अनेक मुनि, ब्रह्मचारी एवं गृहम्य जिनवाद का नाम नथा ननकालीन शामक के रूप में शिव विद्वान इनक शिष्य थे। बीकानेर प्रदेश में वि०म० १५०२ मिह (म्यासिद, समि:) का नाम प्रान हान है, किंतु उन में प्रतिष्ठिन एक न कर प्रतिमा पर प्रतिष्ठाता के रूप में पर अंकित प्रतिष्ठा वर्ष १११३ है तथा कुछ पर 1१६३ जिन भ. जिनचन्द का नाम अकिन है। वह यही प्रतीत या लगता है कि य वर्ष गत (अथवा बल्लभी) संवत के होते है. और इसी वर्ष प्रतिष्ठिन एक धातुमवी पाश्चतिमा है जिपा अनुसार ये प्रतिष्ठा वि. मं१५४. और भी जो मैनपुरी (उत्तरप्रदश) में विद्यमान है। इन्हीं ... में हुई होनी चाहिए । अब यदि किसी भूल में इन द्वारा निष्ठित हुई प्रतीत होती है। इस प्रकार भ.जिनचन्द संस्थानों में ११६३ और नहीं हो गया है नो इन की मां प्रथम जास्त तिथि शि. मं०११०२ है। वि. सं. भ. जिन चन्द को अन्तिम ज्ञान निधि बि. मं० १५७०प्राप्त १५.५ में इनकी प्राम्नाय के पं० दवपाल बडेलवाल ने होती है। प्रतिमा लबों के अतिरिक, मि. १९१२ की अजितनाव चारित्र अपभ्रश) का प्रनि लिखाई थी। श्रीपानचरित्र की लिपि प्रशस्ति में, १५१६ की अपने मं. ११०६, ११, १५००, ११२५ और १५२८ को विद्वान शिष्य पं. मेधावी की अन्य प्रशास्ति में नया मं. इनके द्वारा प्रतिष्ठित अनेक चान प्रनिमाणे यन्त्र प्रादि मनपुर्ग १५१% १४५ की दो अन्य प्रन्य प्रशास्नियों में भी एटा आदि के मन्दिरी में प्राप्त है६, नया मं० ११०६, इनके समकालीन उल्लेग्ब पाये जाने हैं। उनके जीवन १५. ३.११४०,११४८और १९४६ की अनेक काल में इनक अनेक मुनि शिष्यों, प्रशिथ्यों ने भी जो मृत्ति यो योजानर प्रदेश में प्राप्त हुई है। मं० १९१० में प्रतिष्ठा कगई उनक मृतिलग्बों में भी इनका अपना नाम नोमर नंग्श इंगरमिह के राज्य के अन्तर्गन टोकनगर में प्राप्त होता है। म. १५७५ में श्रागे जितनी प्रशस्तियां, भ. जिनचन्द्र ने अनेक जिनप्रतिमाएँ प्रतिष्ठिन की थी। लंग्वादि मिन्नत है उनमें जिन चन्द का उन्नाव पूर्व पुरुप के ३. याकाने जैन लेख ममह (मं. चगरचन्द नाहटा), रूप में ही हुमा है-उनसे उनके ममय में इनकी विशमानता न० ८५८ मूचित नहीं होती। इनके एक शिष्य-नागौर पट्ट क प्रथम .. कामताप्रमाद-जन प्रतिमा लेम्ब मंग्रह भटटारक, निकोनि, का पट्टकाल मं० १९८१-१९८६ है, १.जन मिदान भास्कर, भा० २२, कि० २, पृ. . किन्तु इनके प्रधान शिष्य एव पट्टधर, अभिनव प्रभाचन्द्र ६. कामता प्रमाद-वही (जो कि चित्तीर-अजमेर पटट के प्रम भटारक थे) का ७. देखिए बीकानेर जन लेख संग्रह पटकाल वि.सं. १९७१-१२८१है। भव करन ८. जन शिला लेख मग्रह, भा०३, न०६३६-इन लम्वों कीनि ने अपने ज्यष गुरुभाई प्रभाचन्दक अवमान के बाद में राजा का नाम लारदेव पढ़ा या लिखा गया है। ही अपने (नागौर) पट का म्वतन्त्र धापित किया हो। जिसके कारण इस संग्रह के विद्वान मंपादक इम - नरेश को चीन नहीं सके। १. जैन सिद्धान्त भास्कर, भा. २१, कि.२ पृ.५७.१५
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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