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________________ अनेकान्त थम्भोर के चौहानवंशी राजा हम्मीर वीर नहीं हो सकते। से १४० पाया जाता है । भट्टारक प्रभाचंद्र का भट्टारक क्योंकि उनका राज्य सन् १२८३ से १३.१ईस्ती तक रहा रत्न कीर्ति के पट्ट पर प्रतिष्ठित होने का समर्थन सं० १९७० है। महोबा के चम्नवंश में भी हम्मीरवर्मन् मामका की लिखित भगवती आराधना पंजिका की उस लेखक प्रशएक राजा हुया है जो वीरवर्मन् का पुत्र था। ग्वालियर के स्ति से भी होता है जिसे सं० १४१६ में इन्हीं प्रभातन्त्र प्रतिहार वंश के राजाओं की सूची में तीसरे नं० पर एक के शिष्य ब्रह्म नाथूराम ने अपने पढ़ने के लिए दिल्ली के हम्मीरदेव का उल्लेख है जिसका राज्य सं. १२१२ से बादशाह फिरोजशाह सगलक के शासन काल में लिखवाया १२२१ तक बतलाया है और उसी १२२५ में कुबेर देव का था। उसमें भ. रत्नाति के पट्ट पर प्रतिष्ठित होने का स्पष्ट शासन था। (देखो मध्य भारत के प्राचीन जैन म्मारक पृ. उहजेव है । फिरोजशाह तुगलक ने सं०१४.८ से १४४५ ६०) हम्मीर शब्द उपाधि सूचक भी हो सकता है। उसका तक राज्य किया है। इससे स्पष्ट है कि भट्टारक प्रभाचंद्र प्रयोग हिन्दू और मुसलमान दोनों के लिये भी हो सकता है, संस्कृत में हम्मीर शब्द 'मुसलमान' शापक के लिए प्रयुक्र १४१६ में कुछ समय पूर्व भट्टारक पद पर प्रतिष्ठित हुए थे। दुपा है। अतएव 'हम्मीरमपालसमर्थनीयः' वाक्य विषा उप्त समय दिल्ली में एक महोत्सव हुआ था, परंतु हिन्दी गीय है वह उस काल के किसी मसनमान बादशाह के प्रति को पटावली में पट्ट पर प्रतिष्ठित होने का समय मं. रिक्त उक नाम वाला अन्य कौन सा राजा हम्मीर पदवी १३१० १३.० दिया है जो ऐतिहासिक दृष्टि से विचारणीय है। का धारक है। 'भणुवपरयणपईव' की प्रशस्ति भी बि.की क्योंकि उसमें १०० वर्ष का अन्तर हो रहा है जयपुर से प्रकाशित होने वाली 'महावीर जयम्ती स्मारिका' के पृष्ठ ही कोई राजा होना चाहिए। पट्टावली में धर्मचंद्र का १२७ पर आमेरगादी के भटारकों की साहित्यिक एवं मांसपट्टकाल सं १२७१ से १२९६ तक बतलाया है। जो कृतिक संबा' नामक लेख में "सं. १३१६ सालि दिल्ली में हम्मीर भूपाल के साथ सामंजस्य स्थापित नहीं करता। भटटारक प्रभाचंद्र जी राघो चेतन म्यु' वाद कियो तब हो सकता है कि उन प्रशस्ति गत 'हम्मीर' शब्द किसी जीत्या । तब हरमां पातिम्याह पेरोजशाही ने कही जु हम मुसलमान शासक की ओर इंगित करता हो । अस्तु कुछ वम अतीत का दरसन करें तब खाण। खावेंगे। तब पातिभी हो, इस सम्बन्ध में कुछ प्रामाणिक सामग्री का अन्वेषण म्याह अरज करि पर गूजर चांदों पिता पापड़ीवाल नखे कर उक्त तथ्य को स्पष्ट करने का प्रयत्न होना चाहिये । प्ररज कराई तब कपड़ा १३१६ के सानि पहरया भट्टारक रत्नकीर्ति-यह धर्मचंद्र के पट्टधर थे। इन्हें पटा- प्रभाचंद्र जी कलंकी अबावदी के पाछे १२ पाटि सारंग साह बल्ली में स्याद्वादविद्या के अथाह समुद्र, तथा जिनके बोसवान के चरवादार पेरी ज्यों सिकरा का बैठिया कार पारि चरण नाना देशों में निवास करने वाले शिष्यों के द्वारा बैठो २७ लास घोड़ा को धणी हुवो।' (गुटका नं १५२ पूजित बतलाये गये है। धर्म-अधर्म भेद प्रस्थापक कथाओं के पाटौदी मन्दिर जयपुर) व्यावर्णन में अनुरक्त चित्त, पाप विनाशक, और बाल इसी संबंध के कुछ पद्य भी गुटका नं. ६२ से उद्धत किए मह रूप तप के प्रभाव से माहात्म्य प्रकट किया है । अजमेर , हैं। पर इस घटना क्रम पर विचार करने से यह घटना पट्टावली में इनका समय से १२६६ से १३१० तक दिया है यह दिल्ली पट्ट के पट्टधर थे । संवत् १४१६ वर्ष चैत्र सुदि पंचम्यां सोमवासरे इनके पट्टयर प्रभाचंद्र थे, जो अपने समय के प्रभाव सकलराज्य शिरोमुकुटमाणिक्यमरीचिपिमरीकृतचरण कमल शाली विद्वान थे । प्रमाचंद्र ने मुहम्मदशाह के मन को अनु पादपीठस्य श्री रोजसाहेः सकल साम्राज्य धुरी रंजित किया था । मुहम्मदशाह का राज्य वि. मं०१३८१ बिभ्राणम्य समये श्री दिल्या श्री कुदकुदाचार्यान्धये सरस्वताक्छे बलात्कारगखे भट्टारक श्री सनकीर्तिदेव १ तहिं भव्यहिं सुमहोच्छउ विहियउ, सिरि रयणकि स. पर्ट्स लिहियउ। पट्टोदयादि तरुण सरहित्यमुर्तीकुर्वायः मधारक श्री प्रभामहमंद साहि मणुगंजियउ, विजहिं वाइय मणु भंजियउ ।। चंद्रदेव शिष्याणां ब्रह्म नाथूराम । इत्याराधना पंजिकायां बाहुबलिचरिउ प्र० ग्रंथमात्मपठनार्थ लिखापितमू । (व्यावर भवन प्रति)
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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