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________________ अनेकान्त २३८ पिछडेपन और वैचारिक दरिद्रता को हम मिटा नहीं सकते। विश्व धर्म सम्मेलन के द्वारा हमें सारे संसार की धार्मिक शक्तियों की समूचे मनुष्य समाज के दुख और दन्य को मिटाने के लिए उन्मुख करना है । युद्धजनित पीड़ाएं और धर्महीन समाजवादी पैशाचिक व्यवस्थाए मनुष्य को सदा के लिए जड़ता की ओर धकेल देगो । लाखों वर्षों के चिन्तन के बाद मनुष्य समाज केवल धरती और धन के बटवारे मे ही मिट्टी, पानी, अग्नि के समवाय मे ही उलझा रहे, इससे ऊपर उठकर अपने आत्मा के शाश्वत अस्तित्व को मान ही न सके इससे बड़ा ससार के लिए अभिशाप श्रीर क्या हो सकता है । धरती और पन जैसी प्रकृति वस्तुयो पर मनुष्य का एकाधिकार धर्म की दृष्टि से निषिद्ध है । ससार के किसी भी धर्म के द्रष्टा या धर्म-प्रवर्तक ने किसी भी प्रकार के मग्रह और शोषण को प्रश्रय नही दिया । यह तो केवल राजनीतिक महत्वकांक्षाओ और सामाजिक कुरीतियो का दुष्परिणाम है--जो आज ससार मे विपमता के रूप मे दिखाई दे रहा है। हमे आश्चर्य होता है कि जब धर्महीन समाजवादी सत्ताधीश मानव जाति की आध्यात्मिक संस्कृति को नष्ट करने पर उतारू होते है—यह संस्कृति एवं धर्म के लि बडा सकटकाल है। हमे पूर्ण विश्वास के साथ मसार की समस्त धार्मिक शक्तियो को इकाई और समष्टि की के सुरक्षा शाश्वत एकता, अखण्डता और पूर्ण विकास की लिए विश्व व्यापी मोर्चा बनाने जा रहे है । आपको यह जानकर प्रसन्नता होगी कि श्राज से छोटे बारह वर्ष पूर्व विश्व धर्म सम्मेलन का सूत्रपात बहुत से रूप में बम्बई से हुआ था । सन् १६५७ के विश्व-धर्म सम्मेलन का विराट् रूप श्राज देख चुके है । कलकत्ता के द्वितीय विश्व धर्म सम्मेलन के बाद विश्व के भूखण्डों मे इस धर्म सम्मेलन ने प्राशातीत प्रगति की है- यह हमारे लिए गौरव का विषय है । संसार के पचास राष्ट्रो का विश्व धर्म सम्मेलन को सहयोग प्राप्त हो चुका है। हम विश्वास करते है कि आगामी २६, २७ र २८ फरवरी १६६५ को होने वाले तृतीय विश्व धर्म सम्मेसन मे साठ देशों का प्रतिनिधित्व प्राप्त होगा । एशिया के भूखण्डो से उठे इस धर्म के प्रकाश ने सारी मानव जाति को सांस्कृतिक एवं प्राध्यात्मिक चेतना मे श्राबद्ध किया है । हम इस अभियान को ऐसे समय चलाने जा रहे है-जब कि भारत पर चारों ओर से धर्महीन- समाजवादी व्यवस्थाएं, संस्कृति नष्ट करने पर - श्राक्रमण के लिए सन्नद्ध हो रही है । हम समझते हैं कि यह नास्तिकता का श्राक्रमण भारत पर ही नहीं मानवीय धर्म और संस्कृति पर है। अगर धार्मिक शक्तियाँ ऐसे सकट के समय पर भी एक नही हो सकती तो मानव जाति को सवनाश से बचाए रखना अत्यन्त कठिन है । -M हम विश्व धर्म सम्मेलन को मानवीय धार्मिक चेतना को बचाए रखने का सजग प्रहरी समझते है और इसी पवित्र विश्वास के आधार पर हम इस धर्म ग्रान्दोलन को समार की सभी धार्मिक शक्तियों के सहारे से एवं मानवके सहयोग से एव प्रभु की पवित्र प्रेरणा से ही इस काम मे जुटे है । हम श्राशा करते है कि हमारा यह प्रयास समाजवाद के अन्तःस्थल मे भी धर्म को प्रतिष्ठित करने मे सहायक हो सका तो राम, कृष्ण, महावीर, बुद्ध, जरवृस्थ, मूसा, ईसा, मोहम्मद, नानक और गाँधी तक की निर्दिष्ट मानवता का पूर्ण रूप ससार मे निखर उठेगा। ईराक के प्रेजीडेण्ट का सन्देश "The cornerstone of Islam is belief in one God. This makes the faithful join in the worship of God and God alone. They are, without regard to race or colour, equal before him and the subjects of his mercy and forgiveness." The message further says "The Quoran enjoins Muslims to help the needy, the stranger and those cut off from their lands, who have no means to live with. Islam prohibits murder, vice, robbery aud marauding. It commends humbleness and forgiveness. It does not believe in compulsion in spreading its tenets, though it is ready to sanction force in self-defence......... “Islam” says the Field Marshal president, "is against aggression. We seek peace and like to see people living in amity and no one trespassing on another."
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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