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________________ २३६ "रि श्री विद्यानंद जय श्री मल्लि तस पाढे महिमा निलो, गुरु भी लक्ष्मी तेह कुल कमल दिवसपति जंपती जाति वीरच सुगर्ता भणतां ए भावना, पानीए परमानन्द ॥६७॥ मुनिन्द्र । ॥१६॥ अनेकान्त भावना मे सभी दोहे शिक्षाप्रद तथा सुन्दर भावों से परिपूर्ण है । कवि के कहने की शैली सरल एवं अगम्य है। कुछ दोहो का प्रास्वादन कीजिए. "धर्म धर्म नर उच्चरे न धरे धर्म कारण प्राणि हणे व गणे धर्मनो मर्म । निष्ठुर कर्म ॥ ३॥ + + + + धर्म धर्म सह को कहो, न लहे धर्म तूं नाम । राम राम पोपट पढ़े, बूझे न तो जिम राम ॥ ६ ॥ धनपाले धनपाल ते, धनपाल नामें भिखारी । लाछि नाम लक्ष्मी तगूं, लाछि लाकडां वहे नारी ॥ १७ ॥ + + + + दया बीज विण जे क्रिया, ते सघली शीतल संजन जन भरघा, जेम चडाल + प्राणी दया, दया ते जीवनी माय । भाट भ्रान्ति न प्राणीए भ्रान्ति धर्म जो पाय ॥२१॥ + + + धर्म मूल प्रमाण । न वाण ॥ १६ ॥ विश्वधर्म सगम की महासभा ने यह निश्चय किया है कि तृतीय विश्वधर्म सम्मेलन का आयोजन दिल्ली मे श्रागमी २६, २७ र २८ फरवरी सन् १९६५ को किया जाय । प्राणि दया विण प्राणी नंः एक न इक्यूँ होय । तेल न बेलू बोलतां तूप न तोप विलोय ॥२२॥ कंड विणू वान जिम, जिम विष व्याकरणं वाणि । न सोहे धर्म दया बिना, जिम पोषण विण पाणि ॥ नीचनी संगति परि हरो, धरो उत्तम प्राचार | दुर्लभ भव मानव सणो, जीव तूं प्रालिम हार ॥ ४१ ॥ " ४. सीमधर स्वामी गीत : है जिसमे सीमधर स्वामी का विश्व धर्म संगम का उद्देश्य विश्व धर्म संगम एक पंजीकृत संस्था है जिसके प्रवर्तक हैं- मुनि श्री सुशीलकुमार जी महाराज। इस यह एक लघु दी स्तवन किया गया है । ५ चित्त निरोध कथा यह १५ पद्यो की लघु कृति है जिसमे चित्त को वश मे रखने का उपदेश दिया गया है। यह भी उदयपुर वाले गुटके में ही मग्रहीत है । अन्तिम पद्य निम्न प्रकार है"सूरि यो मल्लभूषण, जय जय श्री लक्ष्मीचंद्र । तास वंश विद्यानिलु, लाड नीलि श्रृंगार । श्री वीरचन्द्र सूरो भणी, वित्त निरोध विचार ।।१५।। " इस प्रकार भ० वीरचन्द की अब तक छः कृतिया साहित्य प्रेम के दर्शन प्राप्त राजस्थान एव गुजरात के शास्त्र भण्डारो की पूर्ण खोज होने पर अभी और मी रचनाये प्रकाश में आवेगी ऐसी आशा की जाती है । तृतीय विश्व-धर्म-सम्मेलन डा० मूलचन्द जैन उपलब्ध हुई है, जो इनके करने के लिए पर्याप्त है। सस्था का उद्देश्य विभिन्न धर्मों में परस्पर सहिष्णुता की भावना का विकास करना और विश्व बन्धुत्व के द्वारा विश्व शान्ति के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करना है । विश्व धर्म सम्मेलन क्यों ? मानव-मानव के बीच जो तत्व-भेद तथा संघर्ष का निर्माण कर रहे है, उनका निराकरण समस्त धर्मों की
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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