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________________ जैन समाज के लिए तीन सुझाव अखिल भारतीय जन प्रतिनिधि संगठन समग्र जैन समाज के प्रतिनिधित्व के लिए एक सुदृढ अखिल भारतीय जैन प्रतिनिधि संगठन की नितांत अपेक्षा है। सभी प्रमुख सम्प्रदायो अथवा सम्प्रदायो की प्रतिनिधि सस्थाओं द्वारा प्रेषित प्रतिनिधि संयुक्त रूप से जैनधर्म के सार्वभौम हितो के सरक्षण व विकास पर विचार कर सके व तद्नुकूल प्रवृत्त हो सके, यह उस संगठन का ध्येय हो । सयुक्त राष्ट्रसघ इस बात का उदाहरण है कि परम्परा विरोधी राष्ट्र भी एक संगठन में आ सकते है तथा मानव हित की अनेक प्रवृत्तियों संयुक्त रूप से वे चला सकते है । जैन शाखा प्रशाखाओ के तो मतभेद ही नगण्य है । स्यादवाद सबका आधार है । जैनत्व के संरक्षण और विकास में सबका रस है । ऐसी स्थिति में यह जग भी असम्भव नही लगता कि ऐसा सर्वमान्य सगठन जैन समाज बना ही नही सकता व उसकी उपयोगिता से लाभ उठा ही नही सकता । अपेक्षा है कुछ ही सक्रिय लोगो के आगे बढ कर कदम उठाने की । भगवान महावीर को २५वी निर्वाण शताब्दी यह सुविदित है कि आज से ठीक १० वर्ष बाद महावीर निर्वाण के २५०० वर्ष पूर्ण हो रहे है। सभी जैन परम्पराएँ एतद् विषयक काल-गणना में एक मत है । जैनधर्म की प्रभावना का यह सुन्दर अवसर है। बौद्धों ने सिहली परम्परा के ग्रन्थ 'महावश की काल-गणना के अनुसार कुछ ही वर्ष पूर्व बुद्ध निर्वाण के २५०० वर्ष उल्लेखनीय समारोह से मनाये थे सब बौद्ध परम्पराएं महावश की इस काल गणना से सहमत नहीं थी, फिर भी उस समारोह को अन्तर्राष्ट्रीय रूप देने के लिए साथ दिया । विश्व के कोने-कोने मे एक साथ बुद्ध का सन्देश प्रतिध्वनित हुआ। जैन समाज के सामने भी ऐसा ही अवसर है । काल-गणना मे जिस प्रकार समस्त जैनमान्यताएं एक है, उसी प्रकार यदि समग्र जैन समाज २२१ समति होकर २५वी महावीर निर्वाण शताब्दी विशेषकर त्याग और तपस्या से मनाएँ तो सचमुच ही जैनधर्म को एक नव-जावन मिल सकता है। उसका गौरवपूर्ण इतिहास, उसका स्याद्वाद मूलक दर्शन व अहिसा मूलक आचार एक साथ विश्व के सामने या सकता है। त्याग, तपस्या व धर्म-प्रभावना मूलक आयोजनो से जैन समाज कृतार्थ हो सकता है। अपेक्षा है व्यवस्थित व योजनावद उपक्रम की । इस समारोह की सफलता के लिए यथासमय अखिल भारतीय जैन प्रतिनिधि संगठन बनने की तथा सवत्सरी पर्व भी तब तक हमारा एक होने की अपेक्षा है । इस स्थिति मे हम सभी को अविलम्ब इस दिशा मे दत्तचित्त हो जाना चाहिए। संक्षेप में मैंने ये तीन बाते जैन समाज को सुभाई है। आशा है, सभी शाखा प्रशाखानों के प्राचार्य, आध्याय, मुनि तथा प्रतिनिधि संगठन इन पर सहृदयता से विचार करेंगे । इस अपेक्षाशील युग में भी यदि जैन समाज ने कुछ करके नही बताया तो आने वाली पीढी वर्तमान पीढी की अकर्मण्यता व अदूरदर्शिता पर अनुताप करेगी । जंन शिखर सम्मेलन उक्त सारी परि कल्पनाओ को साकार रूप देने के लिए समग्र जैन प्राचार्यों व प्रभावशाली मुनियों का एक शिखर सम्मेलन शीघ्र ही प्रायोजिन होने की अपेक्षा है, जिससे सभी समाजों के अग्रणी धावको का सम्मिलित होना उचित होगा। यह सम्मेलन कहाँ हो, कब हो, और हो सभी प्रश्न विचारणीय है। अपेक्षा है, सभी मुनि व अग्रणी श्रावक इस विषय पर विचार करे व अपने-अपने सुझाव प्रस्तुत करें। अपने-अपने सुझाव प्रस्तुत करें। इस प्रकार का शिखर सम्मेलन हम सब मिलकर कर सके तो जैन-शासन के लिए सचमुच ही वह एक स्वर्णिम घटना होगी ।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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