________________
दिल्लीपट्ट के मूल संघीय भट्टारकों का समयकर्म
लगे । वहां उन्ही को प्रेरणा से उन्होने अपना बाहुबलि तुगलक (वि० सं० १३८२-१४०) ही प्रतीत होता है। चरित (अपभ्रंश) लिखा जो वि० स०१४५४ में समाप्त ऐसा लगता है कि वे उसके राज्यकाल के प्रारम्भ में ही
उसके निमन्त्रण पर यह दिल्ली पधारे थे पोर यहीं हुमा। उपरोक्त वर्णनों मे उल्लिखित दिल्ली के सुलतानों
पट्टस्थापन करके रह गये। सुलतान की इच्छानुसार
इन्होंने रक्ताम्बर भा धारण कर लिया प्रतीत होता है। के तीन नाम प्राप्त होते हैं। फ़ीरोज, पलाउद्दीन मोर
प्रस्तु हो सकता है कि १३७५ के लगभग यह पजमेर मे महमूद शाह । खिलजी वंश के प्रथम सुलतान जला-लु
स्वगुरु रत्नकीति के स्वर्गवास के उपरान्त प; पर बैठे द्दीन फ़ीरोज ने वि० सं० १३४७ से १३५३ तक राज्य
हों, १३८२-८३ मे दिल्ली पधारे हों, १३८५ - दिल्ली किया। उसके उत्तराधिकारी अलाउद्दीन खिलजी ने वि०
पट्ट की स्थापना की हो। वि.सं. १३८७ के पश्चात् सं० १३५३ से १३७३ तक। उसके बाद गयासुद्दीन
ही सुलतान की प्रवृत्ति बदलने लगी थी, उसकी नशंसता तुग़लक ने १३७७ से १३८२ तक मुहम्मद बिन तुगलक
एव प्रसहिष्णुता भी बढ़ने लगी थी अत: ऐसी स्थिति में ( मुहम्मद शाह) ने १३८२ से १४०८ तक और फीरोज
यह देशाटन को निकल गये हों वि० सं० १४०४ के लग. शाह तुगलक ने १४०८ से १४४५ तक।
भग धनपाल से भेंट हुई और एक दो वर्ष बाद उसी सुल्तान प्रभाचन्द्र को उत्तरावधि को तया धनपाल के कथन
के अन्तिम वर्षों में फिर दिल्ली मा गये हों। भव्य जनों ने को ध्यान में रखते हुए प्रभाचन्द्र का दिल्ली प्रागमन
उनके इस पुनरागमन पर महोत्सव किया हो । वि. सं. स०१३०५ मे तो हो ही नहीं सकता। यह शक वष हा १४२० के लगभग धनपाल शोरिपुर प्रादि की यात्रा के प्रति वि० सं० १४४०) हो तो वह भी असम्भव है। लिए गया हो और फिर स०१४२५ के लगभग गुरु का जलालटीन फीरोज के समय में प्राने की भी संभावना स्वर्गवास हो जाने पर चन्द्र वाड मे ही जाकर रहने लगा कम है। जायसी की पद्मावत के अनुसार राघो चेतन हो। अलाउद्दीन खिलजी का दरबारी था-किन्तु उसके समय भ० प्रभाचन्द्र के गुरु एवं पूर्व पट्टघर रत्नकीति का को भी यह घटना प्रतात नहा हाता। स० १३७५ का पट्टकाल पट्टावली मे वि० सं० १२६६-१३१० दिया है, तिथि भी मात्र अनुमान पर प्राधारित प्रतीत होता है। जो अवश्य ही गलत है किन्तु अवधि १४ या १५ वर्ष जिनप्रभसरि मुहम्मद तुगलक के समय में दिल्ली पधारे ठीक हो सकती है। वह मजमेर मे ही पद पर बैठे थे, उनसे सबाधत अनुश्रुतिभा सुलतान क दबार म पोर वही शान्त हुए थे, प्रतः उनका समय वि० सं० उनके द्वारा राघो चेतन की पराजय भोर प्रमावस्या को १३६०-७५ के लगभग रहा प्रतीत होता है।
| दिखाने मादि का वर्णन करता है। अपन उनके पूर्व पद्रधर भ० धर्मचन्द्र थे जिनका काल प्रारंभिक शासन काल में यह सुलतान पर धर्म सहिष्णु वि० सं०१२७१-९६ लगभग २५ वर्ष बताया है। इसमे था, हिन्दू जैन प्रादि मुसलमानेतर सन्तों का सन्मान भी तिथियां गलत है, वर्ष संख्या ठीक हो सकती है।
माया और उनके वाद विवादों में रस लेता था। उनका एक बहधा प्रयुक्त विशेषण-'हम्मार भूपाल उसने दिल्ली के सराबगियों के हितार्थ एक फर्मान भी सचित :'
य एक फमान भा समचित पादपद्म' प्राप्त होता है, जिससे स्पष्ट है कि जारी किया था२६ । उसका उत्तराधिकारी फ़ीरोज
पह हम्मीर नाम के किसी नरेश से सम्मानित हुए थे। तुग़लक पर धर्म असहिष्णु कट्टर मुसलमान था। प्रतएव
रणथभौर के सुप्रसिद्ध चौहान नरेश राणा हम्मीरदेव का धनपाल द्वारा उल्लिखित महमूदसाहि जिसने भ०
समय वि० सं० १३४०-५८ है। और हमारी गणना के प्रभाचन्द्र का सम्मान किया था, उनसे प्रसन्न था पौर
अनुसार भ० धर्मचन्द्र का पट्ट काल वि. स. १६५जिसके दर्बार मे उन्होंने वादियों का मान भजन
१३६० पाता है । प्रतएव यह दोनो व्यक्ति समकालीन किया था, उनसे प्रसन्न था यह मुहम्मद बिन
थे और इस बात की पूरी सम्भावना है कि इन्ही हम्मीर २६. शोधांक-१९, पृ. ३२४-३२५
भूपाल द्वारा म. धर्मचन्द सम्मानित हुए थे। रणथंभौर