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________________ विदुषी सुमित्रा वाई की आर्यिका दीक्षा श्रीमती सुमित्राबाई ने अपने जीवन में विद्याभ्यास कर परहित का सम्पादन करते हुए निरन्तर म्वाध्याय आदि द्वारा जो ज्ञानार्जन किया, और माधु सन्तों तथा ज्ञानियों की तस्वचर्चा का रस भी लिया तथा पूज्य वणी गणेशप्रमाद जी जैसे मन्तका मानिध्य प्राप्त कर श्रामहित की तरंगों का प्रबलवंग बार बार उमड़ा. परंतु उसे कार्य रूपमें परिणत न कर सकी । किन्त कुछ समयवाद जय राग की पों-ज्यों मदंता और विवेक का जागृति होती गई सांसारिक झझटों की और उतनी ही उदासीनता बरती गई । अतः उचित समय पर आपने अपने भाई श्री नीरज जी की प्रतिबांधकर उनकी भी भावभीनी थनमति प्राप्त कर श्री श्राचार्याशवसागरजी से प्रायिका दीक्षा लेकर प्राम-माधना का मार्ग प्रशस्त किया है । प्राशा है. बाई जी अपनी प्राम-पाधना द्वारा ज्ञान-गग्य और ध्यान द्वारा अवलम्बन लेकर जीवन को सफल बनाने का यन्न करेगी। व मयं विदुपी है इस लिये उनके सम्बन्ध में कुछ कहना उचित नहीं प्रतीत होना। -परमानन्द जैन शास्त्री वीर-मेवा-मन्दिर और "अनेकान्त” के महायक १०००) श्री मिश्रीलाल जी धर्मचन्द जी जैन, कलकत्ता । २५०) श्री गमवम्प जी नेमिचन्द्र जी, कलकना १०००) श्री देवेन्द्रकुमार जैन ट्रस्ट, १५०) श्री बजरगलाल जी चन्द्रकुमार जी, कलकना श्री माह गीतलप्रमाद जी, कलकत्ता १५०) श्री चम्पालाल जी गगवगी, कलकना ५००) श्री रामजीवन मगवगी एटमम, कलकना १५०) श्री जगमोहन जी मगवगी. कलकना ५००) श्री गजगज जी गगवगी, कलकना १५०) श्री करतूरचन्द जी अानदीलाल, कलकता ५००) श्री नथमल जी गठी, कलकना १५०) श्री कन्हैयालाल जी मीताराम, कलकत्ता ५००) श्री वैजनाथ जी धर्मचन्द जी, कलकना १५०) श्री प० बाबूलाल जी जैन, कलकत्ता ५००) श्री रतनलाल जी भारी, कलाना ११०) श्री मालीराम जी गगवगी, कलकत्ता २५१) श्री रा. वा० हरखचन्द जी जैन, गची १५०) श्री प्रतापमलजी मदनलाल पाड्या, कलकत्ता -५३) श्री अमरचन्द जी जैन (पहाड्या). कनकना | १५०) श्री भागचन्द जो पाटनी, कलकत्ता -११) श्री म० मि० धन्यकुमार जी जैन, कटनी। १५०) थी शिखर चन्द जी गगवगी, कलकत्ता २५.१) श्री मेट मोहनलाल जी जैन, १५०) श्री सुरेन्द्रनाथ जी नरेन्द्रनाथ जी कलकना मैमर्म मुन्नालाल द्वारकादास, कलकत्ता १०३) श्री मारवाडी दि० जैन समाज, व्यावर २५.) श्री लाला जयप्रमाद जी जैन १०१) श्री दिगम्बर जैन समाज, केकड़ी स्वस्तिक मेन्टल ववर्स, जगाधरी १०१) श्री मठ चन्दुलाल कस्तूरचन्दजी, बम्बई न०२ २५०) श्री मोतीलाल हीगचन्द गाधी, उम्मानाबाद । | १०१) श्री लाला शान्तिलाल कागजी, दग्यिागज दिल्ली २५०) श्री बन्दगीधर जी जुगलकिगोर जी, कलकना १०१) थी सेठ भवरीलाल जी बाकलीवाल, दम्फाल २५०) श्री जुगमन्दग्दास जी जैन, कलकता १००) श्री बद्रीप्रमाद जी ग्रान्माराम जी, पटना २५०) श्री मिघई कुन्दनलाल जी, कटनी १००) श्री रूपचन्द जी जैन, कलकत्ता २५०) श्री महावीरप्रमाद जी अग्रवाल, कलकना | १००) श्री बाबू नृपेन्द्र कुमार जी जैन, कलकता २५०) श्री बी० ग्रार० जैन, मी० कलकत्ता
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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