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________________ ११० अनेकान्त महाकाव्य . मर्ग संख्या रचना काल कवि ३. धर्मशर्माभ्युदय ई. १३ वीं शताब्दी का प्रारम्भ हरिश्चन्द्र (प्रो. अमृतलाल जी शास्त्री, बनारस सं० विश्वविद्यालय तथा प्रिंसिपल चैनसुग्वदाय न्यायतीर्थ के अनुसार) "३८ मुनिसुव्रत चरित ई. १३ वीं शताब्दी का उत्तराद्ध अहहास ३१ वर्धमान चरित (श्री परमानंद शास्त्री के अनुसार ई. १३ वीं शताब्दी पअनन्दि इंडर भंडार में सुरक्षित है) १. भण्यमार्गोपदेश श्राकाचार जिनदेव ४१ ऋषभदेव महाकाव्य वाग्भट्ट (अनुपलब्ध) ४२ भरतेश्वराभ्युदय पं प्राशाधर (अनुपलब्ध) ४३ राजीमती-विप्रलम्भ , (अनुपलव्य) ४४ चन्द्रप्रभचरित वीरनन्दी यह ध्यान रखने की बात है कि ईसा की १४ वीं शील महाकाव्य माने जाते हैं। महाभारत और रामायण शताब्दी से पूर्व तक सर्गबद्ध काव्य ही महाकाव्य माना में इस मात्रा तक विकास हुआ है कि उनके मूल रूप और जाता रहा है इस समय तक सर्गों की संख्या किसी भी वर्तमान रूप में कोई समानता नहीं रह गई है। हिन्दी श्राचार्य ने निर्धारित नहीं की । सर्व प्रथम विश्वनाथ का प्रसिद्ध महाकाव्य चन्द वरदाई कृत 'पृथ्वीराज रासो' महापात्र ने महाकाव्य के लिए पाठ मर्गों की मंग्य्या को भी इसी लिए विकसनशील महाकाव्यों की कोटि में नियन की। विश्वनाथ का समय ईसा की १४ वीं शताब्दी रखा जाता है । नेरहवीं-चौदहवीं शताब्दी के जैन संस्कृत का पूर्वाद्ध है अतः उनका यह निर्णय पूर्व की कृतियों पर महाकाव्यों में ऐसा कोई भी महाकाव्य नहीं जो कि एक माता पालिस कर हाथ की रचना न हो फलस्वरूप विकम्पनशीलमहाकाव्य कम होने भी की श्रेणी में कोई महाकाव्य नहीं पाता । सभी महाकाव्य कवियों ने उन्हें महाकाव्य कहा है और इन पंक्तियों के अलङकृत महाकाव्य हैं। लेखक ने भी उन्हें महाकाव्य स्वीकार किया है। इन इन महाकाव्यों को छ: भागों में बांटा जा सकता है महाकाव्यों में क्रम संख्या १ से लेकर २२ तक के तथा १. रीतिबद्द महाकाव्य २. शास्त्र काव्य ३. ऐतिहासिक ३. और ३८ क्रम संख्या वाले महाकाव्य प्रकाशित हैं महाकाव्य ४. पौराणिक महाकाव्य ५. रोमेन्टिक महाकाव्य शेष सभी प्रमुद्रित है। ६. पौराणिक रोमेन्टिक महाकाव्य । प्रथम भाग में उन महाकाव्यों की गणना की जा सकती है, जिनकी रचना पाश्चात्य तथा प्राधुनिक भारतीय विद्वान कहाकाव्य भामहः दण्डी और प्राचार्य हेमचन्द्र द्वारा निश्चित के दो भेद करते है :- 1. Epic of growth महाकाव्य-लक्षणों के अनुसार हुई है। इन महाकवियों के 2 Epic of Arts अर्थात् विकसनशील महाकाव्य । समक्ष भारवि, माघ और श्रीहर्ष का श्रादर्श रहा है। ऐसे और अलककृत महाकाव्य । विकासनशील महाकाव्य एक महाकाव्यो को रीतिबद्ध महाकाव्य कहा जा सकता है । व्यक्ति के हाथ की रचना नहीं होते। उनमें एक से अधिक रीतिबद्धता की यह प्रवृत्ति राज्याश्रय और दरबारी वातावरण का योगदान होता है । सैकड़ों वर्षो में, अगणित व्यक्तियों की देन थी, जहाँ प्रत्येक कवि अपने पाण्डित्य-प्रदर्शन, की प्रतिभा और वाणी के योग से उसका विकास होता वाक्चातुर्य, कल्पनातिरेक और अलकृत भाषा के द्वारा है । बाल्मीकिरामायण और महाभारत इसीलिए विकसन- अपने उत्कृष्ट कवित्व की धाक जमाना चाहता था।
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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