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________________ भनेकान्त प्रकार की चित्रकारी करते हुए भी यहां के खेरादी परिवार खुलावे तो १) श्राखी का ॥ रू० । दः कुदणाबाई।" देखे जा सकते हैं । संपूर्ण कावड़ छोटे बक्स पी होती है। लिखा रहता है। इसके पीछे की ओर सूर्य-रथ, सीता-हरण, जिसमें पाठ अथवा दस पाट बन्द रहते हैं । कावदिया भाट । राम-लखन-वनगमन, मृग-शिकार, चन्द्र-रथ, राम-लखन इसे अपनी बगल में दबाये गांव-गाव अपनी यजमान वृत्ति तथा शबरी एवं शबरी तथा उसकी सहेलियां चित्रित की के लिये घूमता रहता है। मारवाड़ में कावड़िया भाटों के मिलती है। पास ये कावड़े भली प्रकार देखी जा सकती है। दुसरा पाट-शेषनाग पर विष्णु-शयन तथा उनके इन काबड़ों के दो रूप देखने को मिलते हैं । (१) पांव दबाती हुई कमला। चौथ माता-जिसके दोनों ओर अाठ पाट वाली कावड़ तथा (२) दस पार वाली उसकी पूजा करने वाले दा पुजारीहते है। कावड । पाटों के दोनों ओर लोकशैली में चित्रित घने गहरे पीछे की ओर-ट पर यात्रा करते हा रेबारी रंगों में चित्तौड़ की कलमकारी के सुन्दर चित्र दृष्टिगोचर दंपति । तंदूर पर भजन करता हुमा भक्त । राजा भरथरी, होते हैं। नाना प्रकार के रंग खेरादी म्वयं ही पत्थरों से गोपीचन्द, पूजा करने जाते हुए द-पति तथा हाथी-रथ । तैयार कर लेते हैं । सर्व प्रथम कवेलू के महीन टुकडे बना तीसरा पाट–साधु तथा दो औरते, जल भरने जाती कर उस घट्टी में पीस कर उसमें गोंद मिला दिया जाता है नानी बाई का राधा कृष्ण क दर्शन करना तथा दम्पति । फिर उस खूब घोटा जाता है । घोटने का काम औरतें करनी पीछे की ओर-डोली ले जाते हुए दो सिपाही, हैं । इस क्रिया को ये लोग 'इटाला' कहते हैं। पाटों पर दरजी तथा कृषि करता हुश्रा भक्त धन्ना । पहले पहल इसी का लेप कर दिया जाता है । इसके सूखने चौथा पाट-अपनी तीनों रानियों के साथ राजा दशपर बढ़ल्यास गांव के लाल पत्थर को बारीक घिस कर उस स्थ, बनिये की परीक्षा लेते हुए भगगन । में गद मिलाकर इन पाठों पर लगा दिया जाता है। एक पीछे की ओर-शेष नाग पर नृत्य करते हुए भगवान बार सूखने पर दूसरी बार, और इस प्रकार कुल पांच बार विष्णु, गणेश, दम्मति, रथ तथा वजरंगबलि हनुमान । लेपन करने पर उन पाटों पर फिर लाल रंग लगाया जाता पांचवां पाट-सत्यनारायण-कथा-झांकी, नारद जी है और तब उन पर चित्रकारा का जाती है । बमी में छगन तथा प्रसाद लेने आया हश्रा राजा लीलावती, कमलावती लाल जी, छोगा लाल जी भूरा जी तथा कजोड़ जी आदि कन्याए, तुग वज। के घराने अपना काष्ठकला क लिए अत्यन्त प्रसिद्ध रहे है। पीछे की ओर-यशोदा तथा दही चुराते हुए कृष्ण । कावड़ में चित्रित चित्रों की विविध झाँकियों व र स्थ, ऊंट सवार तथा दो दम्पति । छठा पाट-ऊंट, पीपल के पत्ते में कृष्ण अपने पुत्र को कावड़ के ऊपर ही ऊपर एक टिकट लगा रहता है जिस पर आरी से चीरता हुअा मोर ध्वज गजा । सिंह को ले जाते ठिकाने (पत्त) के रूप में लिखा रहता है "यह कावड़ हए कृष्ण अर्जुन तथा पांडवों को शिक्षा देते हुए कृष्ण । कामी पुरी अक्षपूर्ण देव के मन्दिर पर बनती व मिलती पीछे की चोर-मेघनाथ शयनावस्था में, वन बिहार है। दः कुदणाबाई बामणी ।' इससे यह लगता है कि इसकी प्रमुख स्वामिनी काशी के अन्नपूर्णा मन्दिर की करता हुअा हाथी, मन्दोदरी, सीता को समझाती हुई कुन्दणबाई ब्राह्मणी है । इसके बाद दो द्वार खुलते हैं जिन राक्षपनियां, मुन्दर डालते हुए हनुमान, राम रावण युद्ध, पर दोनों ओर नर-नारायण अकित रहते हैं। उन शेरों राम-लखन को ले जाते हुए हनुमान । राम-रावण की के नीचे दोनों ओर दो हिदायतें लिखी मिलती हैं जिनमें "इस कावड़ को धूप देकर खुलावो, धूप देकर खुलावे वह सातवां पाट-जगदीश झांकी, गंगा को लाता हुआ म्वर्ग में जाता है । सच मानो, झूठ मत मानो । दः कुदणा राजा भागीरथ, दम्पति । बाई।" तथा दूसरी ओर-"सच मानो, झूठ मत मानो, पीछे की ओर-उडलपंख जो पांच हाथी लेकर रद जो कावड़ को नास करे वो नरक में जाता है। प्राधी कावड़ सकता है । कृष्ण को दूध पिलाती राक्षसनी, बांसुरी बजाने
SR No.538017
Book TitleAnekant 1964 Book 17 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1964
Total Pages310
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size16 MB
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