SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 94
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ किरण २ काष्ठासंघ स्थित नापुर संघ गुर्वावली ८१ . विमलसेन-देवसेन के शिष्य थे। इनके द्वारा प्रति- साथ ही साथ, प्राकृत संस्कृत अपभ्रंश भाषा के विद्वान और ष्ठित एक मूर्ति सं० १४२८ की धर्मपुरा के नये मन्दिर प्रतिभा सम्पन्न कवि भी थे। में विराजमान है। जिसकी प्रतिष्ठा किसी जइस या जैस- आपने सं० १४८६ में अपने ज्ञानावरणी कर्म के वाल सज्जन के द्वारा सम्पन्न की गई थी। इनकी उपाधि क्षमार्थ भविष्यदत्तपंचमी कथा' श्रीधर' की और सुकुमाल'मलधारी' भी बतलाई जाती है। चरिउ की प्रति लिखवाई थी। पापकी इस समय चार धर्मसेन - विमलसेन के शिष्य थे, इनके द्वारा रचनायें उपलब्ध हैं। पाण्डवपुराण सं० १४६७ में दिल्ली प्रतिष्ठित तीन मूर्तियां हिसार जिले के मिट्टी' नामक ग्राम में मुबारिकशाह के मन्त्री हेमराज की प्रेरणा से बनाया से मनीराम जाट को प्राप्त हुई थीं, ये पार्श्वनाथ, अजित था, और सं० १५०० में हरिवंशपुराण की रचना की थी। नाथ और वर्धमान तीर्थंकर की सं० १४८१, १४४२ को आदित्यवारकथा और जिनरात्रिकथा' ये दो कथायें भी प्रतिष्ठित है और अब हिसार के जैन मन्दिर में विराज. रची थी। अन्य कथाग्रंथ भी बनाये होंगे, पर दुर्भाग्य से मान हैं। उपलब्ध नहीं हैं। आपके अनेक शिष्य थे । आपने स्वयंभावसेन-धर्मसेन के शिष्य थे। वे कब हुए और भूदेव के खंडित हरिवंशपुराण का अपने गुरु गुणकीति के उनका जीवन परिचय क्या है यह अभी प्रज्ञात है। इनसे साहाय्य से ग्वालियर के समीप कुमारनगर के चैत्यालय भावसेन विद्यदेव भिन्न ज्ञात होते हैं। क्योंकि इनके में बैठकर समुद्धार किया था, और उसके एवज में वहाँ साथ ऐसा कोई विशेषण प्रयुक्त नहीं है । भावसेन विद्य अपना नाम भी अंकित कर दिया था। पाप प्रतिष्ठाचार्य का तंत्ररूपमालावृति, और विश्वतत्त्वप्रकाश ग्रंथ के कर्ता भी थे, मापके द्वारा प्रतिष्ठित अनेक मूर्तियां मिलती है। हैं। जो भिन्न ही जान पड़ते हैं । वे दर्शनशास्त्र के भी अच्छे आपके सौजन्य से रइधू कवि ने अनेक रचनायें रची थी। विद्वान थे। इनका समय विक्रम की १५ वीं शताब्दी का उत्तरार्ध है। सहस्रकीति-भावसेन के पट्टधर थे। इनकी किसी मलयकीति-भट्टारक यश कीति के पट्टधर थे । प्राप रचना का कोई परिचय प्राप्त नहीं हुआ और न समयादि की कई रचनाएं होंगी, किन्तु वे मेरे अवलोकन में नहीं की भी कोई सूचना मिली है । पाई। आपने भी अनेक मूर्तियों की प्रतिष्टा करवाई थी। गुणकोति- सहस्रकीति के शिष्य थे। यह अपने जिनमें सं० १५०२ और १५१० के दो लेख प्राप्त हुए समय के विशिष्ट तपस्वी और ज्ञानी थे। इनके द्वारा हैं । सं. १८६८ माघ सुदि ६ रविवार के दिन ग्वालियर के गुणभद्र-मलयकीति के पट्टधर एवं शिष्य थे । पापकी (तोमरवंशी) राजा वीरमदेव के राज्यकाल में सिंघई अपभ्रंश भाषा की १५ कथाएं दिल्ली के पंचायती मन्दिर महाराज की पुत्री देवनी ने पंचास्तिकाय की प्रति लिख- के गुच्छकों में उपलब्ध हैं। जिनमें से कई कथायें उन्होंने वाई थी और स० १४६६ माघ सुदि ६ रविवार के दिन ग्वालियर में रहकर भक्त श्रावकों की प्रेरणा से बनाई थीं। राजकुमार सिंह की प्रेरणा से गुणकीर्ति ने एक धातु की १. भविष्यदत्त कथा की यह प्रति दिल्ली के धर्मपुरा मूर्ति की प्रतिष्ठा कराई थी। जो अब आगरा के कचौड़ा के नए मन्दिर के शास्त्र भण्डार में सुरक्षित है । देखो, गली के मन्दिर में विराजमान है। इनके द्वारा प्रतिष्ठित अनेकान्त वर्ष ८, किरण १५-१२ अनेक मूर्तियाँ उपलब्ध हैं। इन्ही भट्टारक गुणकीर्ति के २. सं० १५०२ वर्ष कातिक सुदि ५ भौमदिने श्री कनिष्ठ भ्राता और शिष्य यशकीर्ति थे, जो तपस्वी होने के काष्ठासंघे श्री गुणकीर्तिदेवाः तत्प श्री यश.कीतिदेवाः १. देखो, मिट्टी ग्राम से प्राप्त मूर्तियों के लेख। तत्पट्टे श्री मलयकीर्तिदेवान्वये सादु नरदेवा तस्य भार्या २. गुणकीति नाम के और भी विद्वान हो गए हैं। जणी । देखो पाहार-मूर्ति लेख, अने० १० १० १५६ ३. देखो कारंजा शास्त्र भण्डार । भट्टारक सम्प्रदाय सं० १५१० माघ सुदि १३ सोमे श्री काष्ठासंघ पृ० २१६ प्राचार्य मलयकीति देवताः नः प्रतिष्ठितम् ।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy