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________________ 'अनेकान्त' का प्रकाशन लेखक-श्री वंशीधर शास्त्री एम० ए० ४० वर्ष पूर्व की बात है, स्व० श्रीमान् साहू सलेख- हुआ है। प्राचीन पर्वत, गुफायें, प्राचीन मन्दिर ताम्रपत्र, चन्दजी रईस नजीबाबाद ने भारतवर्षीय दिगम्बर जैन शिलालेख, प्राचीन मूर्तियां, प्राचीन किले प्रादि बातों के महासभा के २५वें अधिवेशन (कानपुर) के अपने अध्य- अनुसंधान से जैनियों का कितना साम्राज्य कहां रहा है, क्षीय भाषण में कहा था कि “जैन इतिहास, जैनधर्म के जैन धर्म का कितना प्रचार तथा प्रभाव था, इन बातों का गौरव का प्रधान चिन्ह है। जैन धर्म और जैनों के महत्व परिचय अच्छा मिल सकता है। कौन प्राचार्य कब हये, का परिचय जैन पुरातत्वों के अनुसंधान से बहुत कुछ मिल उन्होंने किन-किन ग्रंथों की कब रचना की, ये बातें भी उसी सकता है। अभी तक जैनियों का पुरातत्व इतस्ततः पड़ा विभाग से सम्बन्ध रखती हैं । इसलिये ऐसी खोज के लिये "हम लोग बड़ी रात तक बैठे हुए अहिंसा की बातें एक पुरातत्व विभाग भी आवश्यक है। करते रहे। उन्होंने मुझसे कहा कि उनके जीवन का भी "अाजकल मन्दिरों का रुपया पूजन, उपकरण और, सबसे गम्भीरतम सिद्धांत गही रहा है और महात्मा ने इमारत के काम में ही लगता है । जिन मन्दिरी में अधिक भारत के राष्ट्रीय संग्राम का इसे मूल सिद्धात बनाकर रुपया हो उन्हें अपना कार्यक्षेत्र बढ़ाना चाहिये । उस द्रव्य बहुत ही अच्छा किया।" को जीर्ण ग्रन्थों की प्रतिलिपि कराने, जहां जो ग्रन्थ नहीं कुछ दिन हुए स्वाइटजर साहब को शॉति पुरस्कार है वहां उन्हें मंगाकर स्थानीय सरस्वती भवन की वृद्धि मिला था। कराने, तथा अन्य स्थानों के मन्दिरों के जीर्णोद्धार कराने जैसा कि हम कह चुके है, वह उन्चास बरस से में जहां आवश्यकता हो लगा देना चाहिये । एक मन्दिर का अफ्रीकियों की सेवा कर रहे हैं। महस्रों ही आपरेशन रुपया दूसरे मन्दिर के कार्य में लगाना शास्त्र विरुद्ध नही उन्होंने इस बीच में किए है और शायद कई लाख रोगियों है। जिन स्थानों में जैनों का निवास है परन्तु भाइयों की का इलाज किया है और सबसे बड़ी खूवी की बात यह है असमर्थता के कारण मन्दिर नहीं बन सका है वहाँ अधिकि यह कर्तव्य उन्होने किगी परोपकार की भावना से काश रुपये वाले मन्दिरों को वहां मन्दिर बनवा देना नही किया, बल्कि वह समझा है कि गोरे लोगों ने काले चाहिये ।' आदमियो पर जो अत्याचार किए है. उनके प्रायश्चित्त "जैन साहित्य प्रकाश और उसका प्रचार भी जैनधर्म स्वरूप ही में उनकी कुछ सेवा कर रहा है। की उन्नति में परम सहायक है। इसलिये उसकी रक्षा कुछ वर्ष पहले मैने पढ़ा था कि संसार में प्रभु ईसा- वृद्धि करना हमारे लिये आवश्यक है। कर्म सिद्धान्त, जीव मसीह के तीन अनुयायी सबसे महान माने जा सकते हैं- सिद्धान्त, भाव विवेचना, कथाक्रम से चारित्र निरुपण आदि एल्बर्ट स्वाइटजर, दीनबन्धु ऐण्ड ज और कागावा । इनमें जैन धर्म के सभी अंगो का यदि प्रमार किया जाय तो जैन से दीनबन्धु ऐण्ड ज के साथ वर्षो तक काम करने का मौका धर्म से जगत् की बहुभाग जनता का हित हो सकता है। मझे मिला था और जापान के गांधी कागावा के दर्शन भी परन्नु जितना साहित्य प्राज हमारे सामने उपलब्ध है वह मैने किए थे । मेरे मन में अभी एक लालसा बाकी है- अभी अपर्याप्त है परम पूज्य जैनाचार्यों की अभी बहुत सी यानी कभी-न-कभी अहिंसा के पुजारी एल्बर्ट स्वाइटजर कृति यत्र तत्र भंडारी में छिपी हुई है। ईडर, नागौर के चरणस्पर्श करने की। आदि स्थानो में अनेक उत्तम ग्रन्थों का भन्डार है। उन (सस्ता साहित्य मंडल न्यू देहली द्वारा प्रकाशित सब ग्रन्थों को प्रकाश में लाने की बी जरूरत है। यदि सेतुबन्धु पस्तक से साभार) ये ग्रंथ प्रकाश में न आये तो बड़े दुःख का विषय होगा कि
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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