SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 314
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २७५ अनेकांत यह लगभग सात प्राचीनतम भूति का ढंग, उन के द्वारा बड़े लुभावने ढंग से किया गया है। नागर शैली विनास का ताण्डव के मंदिर-शिखर के सभी अवयव उसमें दर्शाए गए हैं। इसी क्षेत्र में ७ फुट ऊंची पारसनाथ की एक फणायुगादि देव वलि सहित पद्मासन प्रतिमा है जो समीप ही ऊमरी ग्राम यह लगभग सात फुट ऊंची कायोत्सर्ग प्रतिमा मेरे अनु- से लाई गई थी। उक्त ग्राम में जाने पर मुझे भन्य बहुत मान से इस स्थान की प्राचीनतम मूर्ति है। इस मूर्ति का सा उल्लखनाय सामग्रा प्राप्त हुइ ह जिसका चचा या शारीर विन्यास, इन्द्रादिक के खड़े होने का ढंग, उनका करूंगा। यहां एक ही घटना का उल्लेख करके उसका चित्र पहिनावा और तीर्थकर के कांधे पर अंकित की गई जटायें दे रहा हूँ जिससे इस बात का अन्दाजा लगा लिया जा सके इसे पूर्व मध्यकाल की कृति घोषित करती हैं। कि माज भी पुरातत्त्व के महत्त्व की सामग्री का विघटन और लगभग इसीकाल की एक और सुन्दर मूर्ति तीर्थकर विनाश किस निर्दयता, उपेक्षा और बेदर्दी से हो रहा है। पारसनाथ की ३३ फुट ऊंची पद्मासन प्रतिमा है। पीठिका ऊमरी ग्राम की गलियों का सर्वेक्षण करते समय एक के ऊपर बांई ओर नाग की पूंछ का अंकन करके नाग की चर्मकार के प्रांगन में एक चौरस पत्थर गड़ा हुआ दिखाई कुण्डली प्रारम्भ की गई है जिससे प्रासन की रचना दिया जिसमें नीचे की ओर एक फूल की पंखुरी, मेरे साथी हुई है, और इन्हीं कुण्डलियों द्वारा सुन्दर पृष्ठ भाग बनाता श्री पन्नालाल की दृष्टि में आई। चर्मकार इस पत्थर पर हुवा यह नाग अपनी दर्शनीय फणावलि से मूर्ति को प्रावे- अपनी रांपी सुतारी पर धार लगाने का काम किया करता ष्ठित कर रहा था जो खंडित है। था। इसे उखाड़ कर देखने पर तो हम लोग धन्य हो गए। यद्यपि शिलालेखांकित प्रतिमा यहां सं० १२०२ विक्र यह पाषाण खण्ड और कुछ नहीं, एक विशाल तीर्थकर माब्द से पूर्व की नही है परन्तु-उपरोक्त तोरण, वेदिका प्रतिमा के शीर्ष भाग पर का छत्र था जिसमें कुम्भ अभिषेक करते हुए उद्घोषक अंकित है । उद्घोषक के ऊपर सुन्दर युगादि देव, पारसनाथ तथा एकाधिक अन्य कलावशेषों से तोरण के बीच एक अन्य तीर्थकर प्रतिमा दिखाई दे रही सिद्ध होता है कि यहां नवमी शताब्दी से बारहवीं शती तक है। यह पाकर्षक शिल्प खण्ड चर्मकार बन्धु के प्रांगन से की निर्माण की हुई और भी सामग्री प्राप्त होनी चाहिए। उठाकर ऊमरी के जैन मन्दिर में मैंने रख दिया था, पर मानस्तम्भ यह अकेला तो नहीं था न ? इधर के दो ग्रामों का शायद नवागढ़ के पास ही सोजना ग्राम की वापिका में इस ही कोई ऐसा अभागा घर हो । चबूतरे पर, दीवार में, क्षेत्र के चार मानस्तम्भ लगे हुए हैं जिनमें तीर्थकर प्रतिमा स्नान गृह में या नाली में कहां क्या मिल जाय इसका कोई हैं तथा "सं० १२०२ गोला पूर्वान्वये" शब्द स्पष्ट अंकित हैं। ठिकाना यहां नहीं है। राग सोरठ अन्तर उज्जवल करना रे भाई ॥टेक॥ कपट कृपान तज नहिं तबलौं, करनी काज न सरनारे ॥१॥ जप तप तीरथ जश व्रताविक, मागम अर्थ उचरना रे । विषय कषाय कोच नहिं धोयो, यों ही पचिपचि मरना रे ॥२॥ बाहिर भेष किया उर शुचिसों, कोयें पार उतरना है। नाहीं है सब लोक रंजना, ऐसे वेवन वरना रे॥३॥ कामाषिक मन सौ मन मैला, भजन किए ज्या तिरमारे। भूधर नील वसन पर कैसे केसर रंग उधरना रे ॥४॥
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy