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________________ सौरा पहार के प्राचीन जैन गुफा मन्दिर पहली गुफा के पार्वती मंदिर के अवशेषों में तथा समीप ही उपलब्ध बीस फुट लम्बी और चौदह फुट चौड़ी इस उत्तर-मुख राम-कथा के शिलापट्टों में राम-लक्ष्मण के पहिनावे से गुफा के पश्चिमी सिरे पर एक विशाल शिला के तीन फुट इन इन्द्रों के पहिनावे में अद्भुत साम्य है, इन्द्रों के कर्णचौड़े, पांच फुट ऊंचे फलक पर अंतिम तीर्थकर भगवान कुण्डल एवं केश-विन्यास भी सुन्दर बन पड़े हैं, मुकुट से महावीर की अति सुन्दर पद्मासन प्रतिमा पूर्व की ओर मुख झूलती हुई मणिमालाएं बुद्ध सज्जा के कीति-मुख का किए विराजमान हैं, नीचे सिंहपीठ में दोनों ओर दो बहि- स्मरण दिलाती हैं। इसी प्रकार ऊपर एक हाथ में पुष्प मुख, सुन्दर पायाल से गज्जित सिंहों का अंकन है, उनकी गुच्छक और दूसरे में माला लेकर गगन विहारी विद्याधर पूंछ का घुमाव सुन्दर है, पीठिका के बीचों बीच अंकित युगल चित्रित किए गए हैं, इन्द्र की तरह दाहिनी भोर का धर्मचक्र की अर्चना करते हुए मूर्ति प्रतिष्ठापक श्रावक युगल भी खंडित है पर वायीं भोर की जोड़ी सुरक्षित है, सकुटुम्ब दिखाए गए हैं, बायीं ओर पुष्पमाल लिए और इस युगल का केश-विन्यास भी इस मूर्ति को पूर्व गुप्तकाल और करबद्ध दो पुरुष हैं और दाहिनी ओर भारती करता की निधि घोषित करता है, विद्याधर के शरीर पर कुण्डल हुमा एक पुरुष और.पाभरण अलंकृता एक सौभाग्यवती मणिमाला, भुजबंध और कंगन यथा स्थान शोभित हैं, इस नारी अंकित है। गगन चारी की सहचरी इसी की पीठ पर मालम्बित पीठिका के ऊपर अत्यंत मनोहारी, मनोज्ञ और मनो- आसन में मुग्ध-मुद्रा और नाना पाभरण अलंकारों से रम मुद्रा मे, स्मितवदन, नासाग्रदृष्टि, सन्मतिनाथ की सज्जित अंकित की गई है विद्याधरी के हाथों की स्थिति ३० इंच ऊंची पद्मासन मूर्ति प्रतिष्ठित है जो साधारण दर्शनीय है, जैसे इस जीवन का ही नहीं, आगामी भवों मानवाकार से डेवढ़ी अवगाहना की प्रतीत होती है, मूर्ति का भी, भार, उसने अपने जीवन धन पर निश्चित होकर पूर्णतः अखंडित है और उस पर किए हुए अन्य पालिश ने सौंप रखा हो । विद्याधर ने तो मानो जिनेन्द्र के पूजन में ही प्रतिमा को सजीवता और अनन्त आकर्षण प्रदान कर दिया जीवन की सार्थकता मान रखी है। है, गुप्तकाल के पुरातत्व में भी इतना बढ़िया पालिश बहुत सरीफा कम देखने में आता है। प्रतिमा का अंकन करने में इतनी बारीक छनी का इस गुफा में भी मूल नायक भगवान महावीर ही हैं। प्रयोग किया गया है कि पैरों की अंगुलियों में तथा पगतल पर उनके अतिरिक्त सात अन्य प्रतिमाएं भी यहां अवस्थित में विभिन्न रेखाएं और हाथ की अंगुलियों में मंगल चिन्ह हैं । इस गुफा की लम्बाई इक्कीस फुट एवं चौड़ाई तेरह तथा हथेली की रेखाएं तक सुस्पष्ट परिलक्षित होती हैं। । फुट है। इसे भी कालान्तर में सामने से एक द्वार छोड़कर गले का उतार तथा हाथों की ढाल अति स्वाभाविक ईटों से बन्द कर दिया गया है। बन पड़ी है, केशावलि को छल्लों के माध्यम से सुरुचि पूर्ण द्वार के सामने ही गुफा के बीचो बीच, सन्मतिनाथ की व्यवस्था में संयोजित किया गया है, प्रतिमा के प्रासन में पद्मासन प्रतिमा उत्तर मुख विराजमान है। यह शिला फलक भव्यता एवं निर्दोष मुख-मुद्रा पर खेलते हुए वीतरागता के पौने चार फुट चौड़ा और पांच फुट ऊंचा है। पीठिका स्पष्ट-भाव दर्शक का मन अनायास मोह लेते हैं। में दो बहिर्मुख सिंह और मध्य में धर्मचक्र अंकित है, जल पासन के समानान्तर ही चामरधारी सौधर्म और पुष्प वी पंखुरियों से सज्जित वेदिका पर सवातीन फुट ऊंची ऐशान इन्द्र सेवा रत दिखाये गए हैं, दाहिनी मोर का इन्द्र प्रतिमा शोभित है । इस मूर्ति का केश संयोजन-विलक्षण खंडित है परन्तु वायीं ओर का अंकन मनोहर है, केवल है। सम्पूर्ण केशों को जैसे कंघी से ही संवारकर व्यवस्थित जांघ तक की धोती का बुन्देलखंड का यह विशिष्ट पहि- ढंग से अंकित किया गया है। दोनों पार्श्व में चामर धारी नावा गुप्त पूर्व की (वाकाटकों एवं भार शिवों की) कला इन्द्र विशेष सुन्दर मुकुट मौर मलकावलि से सज्जित है। में तथा गुप्तकाल की कला में ही पाया जाता है, नचना ऊपर दोनों मोर दो विद्याधर युगल एक हाथ में पुष्प गुच्छक
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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