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________________ मोम् अहम् अनकान्त परमागमस्य बीजं निषिद्धनात्यबसिन्धरविधानम् । सकलनयविलसितानां विरोधमयनं नमाम्यनेकान्तम् ॥ amwmomsammommonommmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmmI AAAAAAAAAAAAAAm monwer वर्ष १५ वीर-सेवा-मन्दिर, २१, दरियागंज, देहली-६ दिसम्बर किरण, ५ ) मगसिर शुक्ला १२, वीर निर्वाण सं० २४८६, विक्रम सं० २०१६ ( सन् १९६२ MARWAIMAAmmmwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwws श्री वीर-जिन-शासन-स्तवन तव जिन ! शासन-विभवो जयति कलावपि गुणाऽनुशासन-विभवः । दोष-कशासनविभवः स्तुवन्ति चैनं प्रभा-कृशासन विभवः ॥ -समन्तभद्राचार्य हे वीर जिन ! प्रापका शासन-माहात्म्य-आपके प्रवचन का यथावस्थित पदार्थों के प्रतिपादनस्वरूप गौरव-कलिकाल में भी जय को प्राप्त है-सर्वोत्कृष्ट रूप से वर्त रहा है-उसके प्रभाव से गुरणों में अनुशासन-प्राप्त शिष्यजनों का भव विनष्ट हुआ है-संसार परिभ्रमण सदा के लिए छूटा है-इतना ही नहीं; किन्तु जो दोष रूप चावकों का निराकरण करने में समर्थ हैं-चावुकों के समान पीड़ाकारी कामक्रोधादि दोषों को अपने पास फटकने नहीं देते-और अपने ज्ञानादि तेज से जिन्होंने प्रासन विभुषों कोलोक के प्रसिद्ध नायकों को-निस्तेज किया है वे गणधर देवादिक भी आपके इस शासन-माहात्म्य की स्तुति करते हैं।
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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