SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 131
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्ति समझने की भांति कर बैठे, पर मान गम्भीर प्रध्या के समय से चला पा रहा था। डा. याकोबीने लिखा है मन के विकास एवं शोष-खोज के फलस्वरूप दोनों महा- कि "जब बौद्ध धर्म की स्थापना हुई, तब निगण्ठ (निप्रथः) पुरुषों का पृथक्-पृथक् अस्तित्व सिद्ध हो गया है, जिन्होंने जो जैन या महत् के नाम से प्रसिद्ध हैं, एक महत्वपूर्ण वर्ग भारतीय चिन्तनधारा के इतिहास पर एक महत्वपूर्ण के रूप में विद्यमान थे। पाली साहित्य में भ० महावीर प्रभाव छोड़ा। यह एक ध्यान देने की बात है कि म बुद्ध का 'निगण्ठनातपुत्त' के नाम से उल्लेख मिलता है। इस ने केवल ज्ञान (दिव्यज्योति) प्राप्ति से पूर्व कई विद्वानों प्रकार महावीर और बुद्ध ने प्रारम्भ में एक ही श्रमण के साथ अनेकों प्रकार के प्रयोग कर मध्यम मार्ग अपनाया संस्कृति के आदर्शों पर अपना जीवन प्रारम्भ किया, पर था तथा तत्कालीन प्रचलित अनेकों धार्मिक मान्यतामों आगे चलकर वे भिन्न-भिन्न हो गये और इसी तरह उनके एवं परम्परामों का परित्याग भी किया था, पर भ. महा- अनुयायी भी समय और स्थान भेद के कारण भिन्न-भिन्न वीर के साथ ऐसा नहीं हुआ था, उन्होंने तो भ. ऋषभ- हो गये। पर यह एक शोध का विषय है जैसा कि ऊपर देव, नेमिनाथ एवं अपने निकटतम पूर्ववर्ती तीर्थकर पाश्व- कहा जा चुका है कि दोनों धर्म भारत में पैदा हुए, पर जैननाथ (जो उनसे केवल २०० वर्ष पूर्व हुए थे) द्वारा प्रच- धर्म तो माज भी जीवित रूप से अपनी जन्मभूमि में विद्यलित धर्म को ही अंगीकार किया और उसे ही तत्कालीन मान है पर बौद्धधर्म अपनी जन्मभूमि को छोड़ पूर्वी समाज के समक्ष प्रस्तुत किया। म० बुद्ध के विचार अपने क्षितिज पर पल्लवित हो रहा है- ऐसा क्यों? एक बड़ा समकालीन मतों एवं विश्वासों से बहुत कम मेल खाते हैं; विचारणीय प्रश्न है। अतः पाज यह अत्यधिक आवश्यक क्योंकि उनकी यह धारणा थी कि "मानवजाति के लिए है कि म० बुद्ध और भ. महावीर की शिक्षाओं का जो मैंने कुछ नवीन खोज की है" पर भ० महावीर के विचार अध्ययन हुआ उसे और भी अधिक विस्तार एवं शोधअपनी समकालीन विचारधाराओं से बहुत मिलते-जुलते हैं, पूर्वक मनन, चिन्तन कर पता लगाया जाय । वे दूसरों के विचार समझने को सदैव उत्सुक रहते थे, जैन सम्प्रदाय के इतिहास की सामग्री यत्र-तत्र विखरी क्योंकि वे उस धर्म का उपदेश साधारण से परिवर्तित रूप में पड़ी है। महावीर के पश्चात् जैनधर्म का अनुवर्तन बड़ेकर रहे थे, जो भ० पार्श्वनाथ के समय से प्रचलित था। बड़े धुरंधर विद्वान् एवं साधुओं ने किया, जिन्हें श्रेणिक उदाहरणार्थ डा. याकोबीने लिखा है "महावीर और बुद्ध विम्बसार तथा चन्द्रगुप्त मौर्य जैसे महान् प्रभावशाली दोनों ने अपने मतों के प्रचार के लिए अपने-अपने वंशों का शासकों का माश्रय प्राप्त था। बहुत से धार्मिक साधु, सहारा लिया । दूसरे प्रतिद्वंद्वियों पर उनका प्रचार निश्चय राजवंश, समृद्ध व्यापारी एवं पवित्र परिवारों ने जैनधर्म ही देश के मुख्य-मुख्य परिवारों पर निर्भर था। म. बुद्ध की स्थिरता एवं प्रगति के लिए बड़े-बड़े बलिदान किए की मायु ८० वर्ष की थी जबकि भ० महावीर केवल ७२ फलस्वरूप भारतीय कला, साहित्य, नैतिकता, सभ्यता एवं वर्ष ही जिये। म० बुद्ध के मध्य मार्ग ने समाज को एक संस्कृति के लिए जैनियों की जो कुछ भेंट है उस पर भारत नवीनता दी पौर नये अनुयायियों में विशेष उत्साह पैदा को गर्व है। किया, फलस्वरूप उनका प्रभाव बड़ी दूर-दूर तक विस्तार भ. महावीर के सिद्धान्त विधिवत् रूप से तत्कालीन से फैला, पर भ. महावीर ने तो नवीन और प्राचीन दोनों लोकभाषामों में नियमानुसार अन्यबद्ध हुए जिनकी को ही अपनाया था, इसलिए वे सहयोग की भावना से व्याख्या नियुक्ति, चूणि, भाष्य एवं टीकामों के रूप में हुई प्रोत-प्रोत रहे। उनके समय नये अनुयायियों का प्रश्न इतना और फुटकर विषयों पर छोटी-छोटी पुस्तकें लिखी गई। ज्वलन्त न था जितना कि म. बुद्ध के सामने था। जैन उन पर भागे चलकर बड़ा विवेचनात्मक विस्तृत साहित्य भौर बौद्ध साधुनों के नियमों में बड़ी समानता थी, इसका तयार हुमा। उनकी शिक्षामों एवं सिद्धान्तों को बड़े-बड़े प्रबल प्रमाण यह है कि कुछ समय के लिए म. बुद्ध ने दिग्गज विद्वानों एवं मुनियों ने बड़े तार्किक ढंग से सुरक्षित नियत्व (दिगम्बरत्व) धारण किया था, जो भ० पार्श्वनाथ रक्षा, जबकि अन्य भारतीय पद्धतियों में ऐसा बहुत ही
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy