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________________ ने १०८ के समीप विपुलाचल पर्वत पर हुई थी। लगातार ३० वर्ष तक वे मगध देश के विभिन्न भागों में भगवान बुद्ध की भाँति विहार करते रहे और जैनधर्म का प्रचार किया। म महावीर के माता-पिता भ० पार्श्वनाथ के अनुयायी थे, भ० महावीर ने अपने बिहार काल में जीवन की कठि नाइयों एवं उनसे बचने के उपायों से लोगों को अवगत कराया। उन्होंने भ्रात्मा की उच्चता एवं पवित्रता पर बल दिया, उनके उपदेश सर्वसाधारण के लिए थे उनके अनुयायियों में जिनमें राजा महाराजा थे, गरीब किसान भी थे, उन्होंने चतुविध संघ की स्थापना की, जो मुनि धार्मिका, श्रावक र श्राविका नाम से प्रसिद्ध हुआ था वह आज भी प्रचलित है। भगवान महावीर के सिद्धान्तों का प्रभाव जैन दर्शन के अतिरिक्त भारत में अन्यत्र भी मिलता है । वे तीर्थंकर थे उन्होंने युगों युगों से संत्रस्त मानवता के परित्राण एवं सर्व शान्ति की स्थापना के लिए मार्ग निर्धारण किया था । द्वितीय शताब्दि में समन्तभद्र स्वामी ने महावीर के सिद्धांतों को, जो महावीर तीर्थ के नाम से प्रसिद्ध थे, 'सर्वोदय' नाम दिया, जिसका इस देश में भाज महात्मा गाँधी जी के बाद सामान्यतः प्रयोग किया जाता है। ईसा से ५२७ वर्ष पूर्व भ० महावीर ७२ वर्ष की धायु में पावापुर से निर्वाण सिधारे, जिसकी खुशी में जगह जगह दीप जलाये गए और तब से ही सम्पूर्ण भारतवर्ष में दीपावली पर्व प्रचलित हुआ । भ० महावीर के जीवन एवं कार्यों पर बढ़ा विशाल नवीन पोर प्राचीन सभी तरह का साहित्य उपलब्ध है और उनके व्यक्तित्व के सम्बन्ध में भी अन्य पुरुषों की भाँति बहुत से पुराण लोक कथायें तथा अनेकों श्रतिशयोक्ति पूर्ण बातें लिखी गई हैं। फलतः उनके विषय में विशुद्ध वैज्ञानिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से अध्ययन व शोध करना बड़ा कठिन हो गया है; क्योंकि अध्ययन व शोध के जो साधन हैं वे साम्प्रदायिकता या धार्मिकता से अछूते नहीं हैं. उनमें साम्प्रदायिकता की गंध विद्यमान है। ऊपर मैंने जो कुछ कहा है वह भ० महावीर का केवल साधारण सा जीवन-परिचय ही है। इस प्रकार यदि भ० महावीर का और अधिक ऐतिहासिक अध्ययन करना कठिन है तो मेरी राय से यह प्रति उत्तम होगा कि उनके सिद्धान्तों का वर्ष १५ गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया जाय और उनका जीवन में सक्रिय प्रयोग किया जाय अपेक्षा इसके कि उनके व्यक्तिगत जीवन पर लम्बे चौड़े वाद-विवाद या बहस मुबाहिसे सड़े हों। वैशाली नगर अपने समय में उन्नति के चरम शिखर पर था और भ० महावीर की जन्मभूमि होने के कारण भारतीय धार्मिक जगत में तो इसकी ख्याति और भी अधिक बढ़ गई थी। वैशाली की पुण्य विभूतियों ने मानबता के उद्धार के लिए बड़े अच्छे अच्छे सिद्धान्त सिखाये और स्वयं स्थान एवं साधनामय पावन जीवन अंगीकार किया। महावीर तो अपने समकालीनों में निश्चय ही सर्वश्रेष्ठ रहे ! 'महावस्तु' में लिखा है कि भ० बुद्ध ने वैशाली के अलारा एवं उड़क में अपने प्रथम गुरु की खोज की अर उनके निर्देशन में जैन बन कर रहे । पश्चात् उत्पन्न मध्य मार्ग अपनाकर वैशाली में अत्यधिक सम्मानित हुए । उन्हें राजकीय सम्मान प्राप्त था, वे "कूटागाराला (जो मुख्यतया उनके लिए ही बनाई गई थी) के महावन में रहते थे। द्वितीय बौद्ध परिषद की बैठक वैशाली में ही हुई थी, अतः यह बड़ा पवित्र तीर्थं स्थान माना जाने लगा, यहीं पर संघ हीनयान और वज्रयान के रूप में विभाजित हुआ था । म० बुद्ध की प्रसिद्ध शिष्या भाम्रपाली वैशाली में ही रहती थी, जहाँ उसने अपना उपवन म० बुद्ध एवं संघ को वसीयत के रूप में अर्पण किया था । वैशाली का राजनैतिक महत्व भी था यहाँ गणतन्त्रीय शासन पद्धति प्रच सित थी, यहाँ लिच्छवि गणराज्य के राष्ट्रपति महाराज चेटक थे, जिन्होंने मल्ल की गणराज्य, काशी, कौशल के १० गणराज्य तथा लिच्छवियों के εगणराज्य मिलाकर एक संघशासन का संगठन किया था। 'दीष निकाय' में वज्जी संघ की शामन-पद्धति एवं कार्य कुशलता की श्रेष्ठता का सुन्दर वर्णन मिलता है, जो तत्कालीन गणतन्त्रात्मक शासनपद्धति का श्रेष्ठतम आदर्श थी। वैशाली वाणिज्यका भी विशालतम केन्द्र थी जहाँ श्रीमंतों, वणिजों एवं शिल्पियों की मुद्रायें चला करती थीं जब फाहियान (२९८-४१४ ई०) भारत आया तब वैशाली धर्म, राजनीति एवं व्यापार का एक प्रमुख केन्द्र थी, पर अगली तीन शताब्दियों में इसका पतन प्रारम्भ हो गया और ह्वेनसान (६३५ई०) जब माया
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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