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________________ राजनापुर खिनखिनी की धातु प्रतिमाएँ लेखक - श्री बालचन्द जैन ईस्वी सन् १९२६ में, विदर्भ के अकोला जिले के मुर्तिजापुर तालुका में स्थित राजनापुर खिनखिनी गांव के एक कुएं में अचानक ही जैन धातु प्रतिमानों का एक बड़ा संग्रह प्राप्त हो गया था । उस संग्रह में कुल मिलाकर २७ प्रतिमाएँ थीं जो ट्रेजर ट्रोव एक्ट के अंतर्गत नागपुर के केन्द्रीय संग्रहालय के लिये अवाप्त की गई थीं । संग्रह की प्रतिमाओं में से अनेक प्रतिमाएँ कला की दृष्टि से बहुत ही उत्कृष्ट एव सुन्दर है । वे यूरोप के जर्मनी, स्विट्जरलैंड फ्रांस और इटली आदि देशों की प्रदर्शनियों मे प्रदर्शित हो चुकी है और अभी हाल में भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण की शताब्दी- प्रदर्शनी में नई दिल्ली में प्रदर्शित की गई थी । उपर्युक्त संग्रह की सभी प्रतिमाएँ दिगम्बर सम्प्रदाय की है। निर्माण शैली की दृष्टि से उन्हं दक्खिनी शैली का कहा जा सकता है । निर्माणकाल के अनुसार संग्रह की प्रतिमाओं को चार समूहों में विभाजित किया गया है और उनका समय ईस्वी सन् की सातवी शती से लेकर बारहवीं शती तक प्राका गया है। ऐसा अनुमान किया जाता है कि अलाउद्दीन खिलजी के विदर्भ आक्रमण के समय इन मूर्तियों को अविनय से बचाने के उद्देश्य से किसी जैन मंदिर के व्यवस्थापकों ने इन्हें गांव के कुएँ में छिपा दिया था । प्रथम समूह - सातवीं प्राठवीं शती बड़ा संग्रह की केवल दो प्रतिमाएँ ही इस समूह में रखी जा सकती है । दोनों प्रतिमाएँ जैन यक्षी अम्बिकी है । एक में वह बैठी हुई है और दूसरी में खड़ी हुई । अम्बिका की प्रतिमाओं का जैनों में प्रारम्भ से प्रचार रहा है और उत्तर तथा दक्षिण भारत में समान रूप से उसकी प्रतिष्ठा की जाती रही है ! अम्बिका की कहानी जैन ग्रंथो में इस प्रकार मिलती है- कहा जाता है कि अपने पूर्व जन्म में अम्बिका को अपने पति के कटु व्यवहार से घर छोड़कर जाना पड़ा। वह अपने क्रमश. सात और पांच वर्ष के दो पुत्रों, शुभंकर और प्रियंकर को लेकर निराश्रित होकर निकल पड़ी। थकावट और भूख से वह और उसके दोनों बेटे छटपटाने लगे कि राह में एक आम का पेड़ दिखाई पड़ा। अम्बिका पेड़ की नीचे झुकी हुई डाल पकड़ कर सुस्ताने लगी और उसके दोनों बेटों ने ग्राम के फल खाकर अपनी क्षुधा शांत की । मृत्यु के बाद अम्बिका बाईनवें तीर्थकर भगवान नेमिनाथ की शासनदेवी हुई । अतः उसके पति ने अम्बिका को बहुत कष्ट दिये थे, वह मर कर सिंह यौनि में पैदा हुआ और अम्बिका देवी का वाहन बना । अम्बिका को आम्रादेवी भी कहा जाता है। उसकी प्रतिमाएँ बनाते समय उसे ग्राम के पेड़ के नीचे खड़े या बैठे दिखाया जाता है। उसका वाहन सिंह होता है । उसके बायें हाथ में आम्रलुम्बि दिखाई जाती है । उसका छोटा बेटा प्रियंकर गोद में बैठा रहता है और बड़ा बेटा शुभंकर उसका दहना हाथ पकड़े रहता है । राजनापुर खिनखिनी के संग्रह के प्रथम समूह की पहली प्रतिमा में अम्बिका जी सिंह पर ललितासन में विराजमान हैं और दूसरी प्रतिमा में वे त्रिभंग मुद्रा में चौकी पर खड़ी हैं । दोनो ही प्रतिमानों में सिंह, आम्रलुम्बि और शुभंकर तथा प्रियंकर यथास्थान दर्शाये गये है। देवी के मस्तक पर भगवान नेमिनाथ की छोटी सी प्रतिमा है । द्वितीय समूह - नौवीं शती द्वितीय समूह की प्रतिमाएँ इस संग्रह की सबसे अच्छी प्रतिमाएँ हैं। उनका समय ईस्वी सन् की नौवीं अथवा दशवी शती का पूर्वाद्धं हो सकता है। समूह की पांचों ही प्रतिमाएं एक से एक बढ़कर है। उनकी बनावट सुन्दर, शैनो प्रौड़ और कारीगरी कुशलतापूर्ण है । वास्तव में वे प्रतिमाए समूचे संग्रह की जान है और अपने समय की किसी भी सुन्दर से सुन्दर धातु प्रतिमा की बरावरी कर सकने में समर्थ है। इन पांचों मूर्तियों में से दो तो चतुर्वि शतिपट्ट हैं, एक अम्बिका का प्रतिमा है, एक देवी सरस्वती
SR No.538015
Book TitleAnekant 1962 Book 15 Ank 01 to 06
Original Sutra AuthorN/A
AuthorA N Upadhye
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1962
Total Pages331
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size18 MB
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