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________________ वर्ष १४] महाकवि स्वयंभू है वह सब तुलसीदासजीके बादसे हुआ है, उस समय है। इस रष्टिसे यदि पउमचरिउको महाकाव्य कहा जाय तो सहखों हिन्दू परिवार रामको कथासे प्रायः अपरिचित हो कोई अत्युक्ति नहीं होगी। प्रन्थमें कोई दुरुहता नहीं है थे। रामको देवता माननेकी कल्पना भी नूतन तो नहीं है, वह सरस और काम्य-सौंदयकी अनुपम छटाको लिये हुए किन्तु पुरातन है। कितनी पुरानी है यह भी विचारणीय है। कर्ण प्रिय और मनोहर है पढ़ते हुए उससे पाठकका जी है।जैनकथा-प्रन्यों में रामकी महत्ताका सुन्दर चित्र अंकित नहीं उपता: किन्तु उसकी उत्कंठाको और भी अधिक किया गया है, यही कारण है कि मानवका चित्त उसे पढ़ते बनवती बना देता है। ही रामके गुणों को भोर माकृष्ट हुए बिना नहीं रहता। प्रन्थमें नारीके सौंदर्यका ही सुन्दर वर्णन नहीं है किन्तु क्योंकि मके जीव की महत्ता, और लोकप्रियता उनकी विभिन्न देशोंकी नारियों के वेष-भूषा रहन सहन और प्रलं. मोर माकृष्ट होनेका हेतु है। वे मानवताकी साचात् मूर्ति कारों की चर्च भी की गई है, पर उनमें राष्ट्रकूट नारीका थे, उनकी सौम्य मुद्रा हृदयहारिणी थी। दूसरे सीताके चित्रण बहाही सजीव है और उससे ऐसा ज्ञात होता है कि आदर्श सतीत्वकी अग्नि-परीक्षा ही उसके जीवनका सबसे संभवतः कविने अपना यह ग्रंथ राष्ट्रकूट राजाओं के राज्यबड़ा मापदण्ड है, जो उसकी कीर्तिको भान तक भी कालमें बनाया हो; क्योंकि उन्होंने स्त्रियोंके वेष-भूषा भक्षुण्ण बनाये हुए हैं। सीता केवल सती ही नहीं थी माविका जो भी चित्रण किया है, वह सब मान्यखेट या किन्तु विदुषी और विवेकशीला भी थी। रामचन्द्र के द्वारा उसके पासवर्ती इलाकों, नगरों और समीपवर्ती देशों में लोकापवादके भयले कृतान्तवक्र सेनापति द्वारा भीषण जहाँ उनकी पहुंच आसानी से हो सकती थी और वे उसे अंगल में छुड़वाए जाने पर भी सीताने रामचन्द्र पर कोई कोप मजदीक से देखने में समर्थ हो सके थे। यही कारण है कि नहीं दिया और न किसी प्रकारका दुर्भाव ही व्यक्त किया। वे उसे इतने अच्छे रूपमें दर्शाने में अथवा अंकित करने में किन्तु सेनापतिसे यह कहा कि रामचन्द्रसे कह देना कि जिस सफल हो सके हैं। अयोध्याके रखवासका चित्रण कविने बोकापवादके भयसे आपने मेरा परित्याग किया उसी तरह दिया। उसपर भी उसका गाढा रंग चढ़ा हुमा प्रतीत होता लोकापवादके भयसे अपने धर्मका परित्याग न कर दना, है। इससे राहलजीके शब्दों में इस प्रकार कहा जा सकता सीताके यह वाक्य उसके विवेक और अमित धीरताके सूचक पर है कि "राष्ट्रकूट राजाभोंके राज्यकाल में कविको नारियों के हैं. जो विपत्तिमें भी विषाद नहीं करते, वे ही जगमें सन्त कह । बेष-भूषा रहन-सहन माविको नजदीकसे देखनेका सुअवसर ही महान् और समादरणीय होते हैं। वास्तवमै मिखा है।" इसीसे ग्रन्थ में उनका सांगोपांग कथन राम और सीताका चरित जीवनकी प्रादर्शताका उज्ज्वल दिया हया है। कविकी कथन-शैली बड़ी ही मनोमोहक है। नमूना है। हाँ, तुलसीदासजीने भनिवश रामके गुणोंका उसमें ऋतुभोंका वर्णन तो नैसगिक है ही, किन्तु और भी कीर्तन अतिशयोनिको लिये हुए किया है। यद्यपि वैदिक कितना प्राकृतिक सौन्दर्यका विवेचन यत्र तत्र मिलता है। रामकथा और जनस्थानों में काफी मतभेद है, क्योंकि उनमें वनोंका वर्णन भी प्राकृतिक और सरस ज्ञात होता है। कितनी मान्यताएं साम्प्रदायिक दृष्टिकोणको लिये हुए है। उदाहरण के लिये यहाँ वसन्त ऋतुका वर्णन करने वाली कुछ पउमचरिउ पंक्रियाँ नीचे दी जाती हैं।स्वयंभूकी रामकथा (पउमचरिड)या रामायण बहुत कुब्वर-णयरु पराइय जाहि, ही सन्दर कृति है। इसमें 80 सन्धियाँ हैं जिनमें स्वयंभ फग्गुण-मासु पवोलिउ तावेंहि ।१ देवकी ३ सन्धियाँ हैं। शेष सन्धियाँ उनके पुत्र त्रिभुवन- पइट/ वसन्त-राउ प्राणन्दें, स्वयंभू की हैं। वह ग्रन्थ उतने में ही पूरा होजाता है परन्त कोइल-कलयल-मङ्गल-सद्दे २ शेष सात सन्धियाँ उनके सुपुत्र त्रिभुवन स्वयंभू द्वारा रची अलि-मिहुणेहि वन्दिणेहिं पठन्तेहिं, गई है जिनमें कुछ नवीन विषयोंकी चर्चा की गई है। वरहिण-वावणेहिं णच्चन्तेहिं ।३ ग्रन्थकर्ताने अपनी उस रामकथामें उन सभी विषयोंकी अन्दोला-सम-तोरण-वारेहिं, चर्चा की है जिनका कथन एक महाकाम्ब में आवश्यक होता ढुक्कु वसन्तु अणेय पयारेहिं ।४ न
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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