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________________ ४० ] [ वर्ष १४ भव्य पद्माकरानन्दी सहस्रांशुरिवापरः । घत्ता - सो सिरिचंद सुरिंद फणि रिंद वंदिय पयउ । art गुणाकरः कीर्ति सहस्त्रोय पदोऽजनि ॥ १६ ॥ star सुक्ख वासु होइ देव परमप्पड ॥ ३३ ॥ कपूर- रोज्ज्वल-चारुकीर्तिः सर्वोपकारोयत-चित्तवृत्तं । इय पंडिय सिरिचंदकए पयडियकोऊहलसए सोहणभावशिप्यः समार|धित वीरचन्द्रस्तस्य प्रसिद्धो भुवि वीर्यचन्द्रः १७ पव्वत्तए परितोसिय-बुह चित्त दं कह यरण करंडए सूरेश्चारित्र सूर्यस्य तस्य तत्त्वार्थवेदिनः । मिच्छत्त-पउहिं तिरंडिए कोहाइ- कसाय-विहंडए सत्थम्मि महागुण- मंडप देव-गुरु-धम्मायण- गुणदाम-पयासणे णाम पढमपरिच्छेश्रो समत्तो ॥ संधि १ ॥ अन्तिम भाग: विवेक वसति विद्वान् सोऽस्य श्री चन्द्रोऽभवत् ॥१८॥ भव्य प्रार्थनया ज्ञात्वा पूर्वाचार्यकृतां कृतिः । तेनायं रचितः सम्यक् कथाकोशोऽति सुन्दरः ॥१३ यत्र स्वलितं किंचित् प्रमाद वशतो मम । तत्क्षमंतु क्षमाशीलाः सुधियः सोधयंतु च ॥२०॥ यावन्मही मरम्मी मरुतो मदरोरगाः । परमेष्ठी पावनो धर्मः परमार्थ- परमागमः २१ ॥ यावत्सुराः सुराधीशः स्वर्गचन्द्रार्क- तारकाः । तात्काव्यमिदं स्थेयाच्छ्रीचन्द्रोज्वल कीर्तिमत् ॥२२॥ (सनकरण्ड श्रादकाचार) पण्डित श्रीचन्द्र, रचना काल सं० ११२३ ८ - रयणकरंडसावयायार आदिभाग: सो जयउ जम्मि जिणो पढमो पढमं पयासिउं जेण । ईसु पडता दिणंकर - लंवा धम्मो ॥१॥ सो जयउ संतिणाहो विग्धं सहस्साइं णाममित्तेण । जस्सावहन्थिऊणं पाविज्जइ ईहिया सिद्धी ॥२॥ जयउ सिरि वीरइंदो अकलंको अक्खो शिरावरणो । म्मिल - केवलणाणो उज्जोइय पयल- भुवणयलो ॥ ३ ॥ सिद्धि विजय बुद्धि तुट्ठ पुट्ठि पीयंकर । सिद्ध सरूव जयंतु दिंतु चडवीस वि तित्थंकर ॥४॥ धत्ता- श्रवरवि जे जिइंदा सिद्ध-सूरि पाठ्य वर | संजय साहु जयतु दिंतु बुद्धि महु सुदर ॥१॥ अनेकान्त पण वेष्पिणु जिण वयगुग्गया विमलई पयाइं सुयदेवया । दंसण-कह-रयर करंडुणाभु श्राहासमि कन्वु मणोहिरामु । एक्केक पहाणु महा मइल्ल इत्थन्थि प्रणेय कई छइल्ल | हरिमंदि मुणिंदु समंतभद्द, अकलंक पयो परमय- विम । मुकुलभूसर पायपुज्ज, तहा विज्जागं दुखणं तविज्ज वध ? रसेगु महामइ बोरसेगु जिरण सेणु कुबोहि· विहंजसेगु गुणभवकुह उच्छमल्लु सिरि सोमर । उ परमय- स-सल्लु मुह चउमुहु व पसिद्ध भाई कहराइ संयंभु सयंभुणाई । तह पुष्यंतु म्मुकोमु वणिज्जद्द किं सुयएवि कोसु । सिरिहरिस - कालिया साईं सार, अवरुवि को गणह कइधकार | ही हि मइ संपद्द श्रारिसेहि किं कीरइ तहिं अम्हारिसेहिं । परमार वंस-मह गुण उरई । कुंदकुंदाइरियो इं । देसीगण पहाणु गुण गणहरु, अवइणउ णावइ सइ गणहरु || तत्र पहा वि भाविथ वामउ, धम्माण विणिय पावासउ । भव्वमणो लिखाण दिणेमरु, सिरिकित्ति तिसु चित्त मुणासरु ॥ तासु सीस पंडिय - चूडामणि, सिरि-गंगेय- पमुह पउरावणि । पोलत मिय सुहया सरोरु कुमुखि, हुलि मय गया सहासकुसल ॥ वरस - पम्परय - साहिय महियलु, यि महत्त-परिशिज्जिय- साहयलु । विसंघ महाधुर-धारण, दुम्ह काम सर- घोर - शिवारण ॥ धम्मु व रिसि जस रूचउ, सिरि- सुर्याकित्ति - णाम संभूयउ । तासु वि परवाइय-मय-भंजणु, गाणा बुयर्माणि श्रणुरंजणु ॥ चारु-गुणोहर-मण-रयखायरु, चाउरंग-गण वच्छल्लय यरु । इंदिय चंचल मयहं मयाहिउ, चउकसायसार गमिगाहिउ || सिरिचंदुज्जल-जस संजाय, शामें सहसकित्ति विक्खायउ । धत्ता-तहो देव इंदुगुरु सीसु हुउ, बीउ वासव मुणि वोरिंदु ॥ उदयकित्तीवितहा तुरिय, सुहइंदु वि पंचमउ भणि उ ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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