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________________ किरण ११-१२] परिचय निम्न शब्दो मे देते है मोगत्रयेषु निष्णातः विशालकीतिः शुडपी श्री कुन्दकुन्दसंताने बभूव मुनिसत्तमः ॥ ६८ ॥ विशालकीत शुद्ध ज्ञान के धारक थे, योगत्रय मे निष्णात थे, श्री कुन्दकुन्द की सन्तान प्रन्वय में हुए थे और मुनियों में प्रशस्ततम ये पट्टावली मे भी विशालकीति उत्कृष्ट चारित्रमूर्ति और अनुपम तपस्वी कहे ही गये है । दोनो पर से इनका होना सुनिर्णीत है । ८१ ० शुभकीर्ति - प्राचार्य शुभकीर्ति प्राचार्य विशालकीति के पट्ट पर हुए थे क्योंकि पावलियों मे शुभकीर्ति का नाम विशालकीर्ति के अनन्तर आया है और कहा गया है कि शुभकीतिदेव एकान्तर घादि उप तपश्चरणों को करने वाले थे धौर सन्मार्ग के विधिविधानमे ब्रह्मा के थे । यथातुल्य शुभकीर्तिदेव. । एकान्तराच तपोविधाता धातेव सन्मार्गविविधाने २३ भ० विद्यानन्दी भी कहते हैं कि शुभकीति विशालकीर्ति के पट्ट पर हुए थे। उनकी बुद्धि पत्राचार के पालन से पवित्र थी, नामानुसार शुभकीर्ति के धारक थे, मुनियो मे श्रेष्ठ थे और शुभ के प्रदाता थे । यथा नन्दिसंघ सर *******.. तत्पह अनि विख्यात पंचाचारपवित्रधी' । शुभकीर्तिमुनिष्ठ शुभकीतिः शुभप्रद ॥२६॥ इन दो प्रमाणो पर से शुभकीति नामके आचार्य भी हुए है और वे विशालकीर्ति के पट्ट पर हुए हैं यह सुनिश्चित होता है। ८२ श्र० धर्मचन्द्र - मा० शुभकीर्ति के पट्ट पर आचार्य धर्मचन्द्र हुए। ये हम्मीर भूपाल द्वारा माननीय थे, अच्छे सिद्धान्तवेत्ता थे, संयम रूप समुद्र को वृद्धिगत करने मे चन्द्रमा जैसे थे । उनने अपने प्रख्यात माहात्म्य से अपना जम्म कृतार्थ किया था। इस बात को कहने वाला पट्टावनी का यह एक पथ हैश्रीमंन्द्रोऽजनि तस्य पट्टे हम्मीरभूपाल समर्चनीयः । मिद्धान्तिक समसिन्धुचन्द्र प्रस्थतिमाहात्म्यकृतावतार. ।। भ० विद्यानदी भी शुभकीर्ति के अनतर इनके नाम का उल्लेख करते हैं । वह श्लोक प्रागे पद्मनदी के प्रकरण मे दिया गया है। इनका समय अजमेर पट्टावली में १२७१ दिया है। परंतु अजमेर पट्ट बली यहां पर मशुद्ध हो गई है। नागौर पट्टावली मे १२३६ दिया गया है। बलात्कारगण हम्मीर भूपाल के विषय में मालूम किया तो मालूम हुमा कि वे मेवाड के राजा थे और वि० स० १२४३ ( ई० स० १३०० ) में वे गद्दीनशीन हुए थे । यद्यपि पट्टाबली के सब में धौर उदयपुर राज्य के इतिहास के सवत् मे कई वर्षों का प्रतर है। फिर भी प्रा० धर्म चंद्र और हम्मीर भूपाल के होने मे संदेह नही है । प्रतएव हम्मीर भूपाल द्वारा ये समर्चनीय थे, संस्कृत पट्टावली का यह प्रश तथ्य को लिये हुए है । ८३ श्र० रत्नकीर्ति – ये पट्ट पर हुए है । इनसे सबंधित निम्नरूप के पाये जाते है ३५१ प्राचार्य धर्मचंद्र के दो पद्य पट्टावली मे तत्पटेऽजनि रत्नकीर्तियतिप. स्याद्वादविद्याम्बुधिनानादेशविवृत्तशिष्यनिवप्राय हियुग्मो गुरुः ॥ पापप्रभावाषको धर्माधमं कयासु रक्तविण बालब्रह्मतपः प्रभावमहित. कारुण्यपूर्णाशयः ॥ २५ ॥ अस्ति स्वस्तिसमस्तसंघतिलकः श्रीन दिस घोऽतुलो गच्छस्तत्र विशालकीर्तिकलितः सारस्वतीय पर । तत्र श्रीशुभकीति कीर्तिमहिमा व्याप्ताम्बर सन्मति जीयादिदुसमानकीर्तिरमलः श्रीरत्नकीर्तिगुरु ॥२६॥ (१) इनमें कहा गया है कि प्रा० धर्मचंद्र के पट्ट पर यतिनायक रत्नकीर्ति हुए, जो स्याद्वाद विद्या के अथाह समुद्र थे, जिनके दोनो चरण नानदेशों में निवास करने वाले शिष्यों द्वारा पूजित थे, जो धर्म-प्रधर्म मे भेद प्रस्थापक कथाओ के व्यावर्णन करनेमे अनुरक्त चित्त थे, पापके प्रभावके बाघ क-नाशक थे, बालब्रह्म रूप तप के प्रभाव से महित थे, पूजित थे, उनका श्राशय करुणाभाव से परिपूर्ण था । (२) मे कहते है कि सब संघो मे प्रनुपम नदिसघ है। नदिसंध मे विशाल कौति से कलित सार स्वतीय गच्छ है। उस गच्छ मे जिन्होंने शुभकीति की कीर्ति रूप महिमा से प्राकाश को व्याप्त कर रक्खा था, जो प्रशस्त ज्ञानवान थे, जिनकी कीर्ति चद्रमा के समान निर्मल थी, वे श्री रत्नकीर्ति गुरु जयवत होवे । इन दोनों पद्यो मे रत्नकीर्ति की प्रशसा और जयवाद के साथ साथ उनका धर्मचंद्र के पट्ट पर प्रारूक होना कहा गया है, जो उनके व्यक्तित्व को ऊंचा उठाने वाला है । पद्य गत शुमकीति पद धर्मं चंद्र के गुरु और विशालकीर्ति पद उनके दादा को भी प्रश्वनित करते है। अजमेर पट्टावली मे सं० १२६६ से १३१० पर्यन्त पट्ट पर इनका स्थित रहना कहा गया है । (क्रमशः )
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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