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________________ किरण ११-१२] नन्दिसंघ सरस्वती गच्छ बलात्कारगण [३४५ वर्ष, पट्ट वर्ष और पूर्ण प्रायु का व्योरा दिया गया है। शिष्य स्वामी जिनसेन यशोबाहु के स्थान मे भद्रबाहु का उसमे पट्टधरों की जातियों का भी उल्लेख है और कौन- नाम देते हैं। यह हो नहीं सकता था कि गुरु द्वारा कौन पट्टधर कहा कहा रहे, यह भी निर्दिष्ट है। इन सब उल्लिखित परंपरा उन्हें ज्ञात न हो, वह उन्हें ज्ञात थी, का उपयोग किया जाना तो मशक्य है, क्योंकि जो प्रति फिर भी वे यशोबाहु न लिखकर भद्रबाहु लिखते हैं। और हमारे पास है वह उक्त विषयो को सर्वथा शुद्धता पूर्वक इन्ही दोनों के प्रशिष्य और शिष्य गुणभद्रदेव भद्रबाहु प्रतिपादन नही करती भौर कई स्थलो पर त्रुटित भी न लिग्वकर यशोबाहु लिखते हैं। इस पर से मालूम है। इस लिए उसमे के उपयोगी विषय ही यथास्थान पडता है कि यशोबाहु और भद्रबाहु एक ही प्राचार्य के बतलाये जा सकेगे। सस्कृत पटावली मे इनके बाद ये पर्याय नाम हैं जो कि एकांग के वेत्ता थे। इस तरह हुए और इनके बाद ये हुए, इतना मात्र उल्लेख है। हां, ६८३ वर्ष तक की परंपरा में भद्रबाहु नाम के दो प्राचार्य प्राचार्य वसन्तकीति से मागे कुछ विशेप परिचय भी । पाया जाता है। दोनो पट्टावलियां सर्वथा एक मत नहीं विक्रम प्रबन्ध के कर्ता भी दो भद्रबाहुमो का होना है। उनमें कुछ अंशों में समानता भी है और कुछ अंशों स्वीकार करते हैं । परन्तु वे प्रथम भद्रबाहु को ग्यारह मे असमानता भी। जिनका यथा स्थान उल्लेख किया अग और चौदह पूर्व के ज्ञाता और दूसरे को दश-नव अष्ट अग के ज्ञाता कहते है और उनका समय वी०नि० जायगा । सब से पहली बात यही है कि सस्कृत पट्टावली मे प्राद्य पट्टधर आचार्य माघनन्दी को कहा गया है और ५१५ मानते हैं । उनकी मानी हुई परपरा इस अजमेर पट्टावन्दी मे भद्रबाहु को । परन्तु संस्कृत पट्टावली प्रकार है-अन्तिम जिनके निर्वाण च न जाने के पश्चात् मे मगल रूप मे भद्र बाहु और उनके शिष्य गुप्तिगुप्त का गौतम, सुधर्म और जंबू ये तीन क्रमश केवल ज्ञानी भी एम रूप में म्मरण किया गया है कि मानो इस संघ हुए। इनके काल का परिमाण १२-१२-३८ वर्ष का है, में उनका भी कोई खास सम्बन्ध रहा है । प्रत. यह जो मिला कर ६२ वर्ष प्रमाण हैं । इनके अनन्तर इतिवृत्त भद्रबाहु से ही प्रारंभ किया जाता है। १०० वर्ष पर्यन्त ग्यारह अंग और चौदह पूर्व के धारक क्रमश १४, १६, २२, १६, २९ वर्षों में विष्णुकुमार १ प्राचार्य भद्रबाहु नन्दिमित्र अपराजित गोवर्धन और भद्रबाहु ये पॉच मुनि भद्र बाहु नाम के कम से कम दो प्राचार्य हो गये हैं। हुए। इसके पश्चात् १८३ वर्ष पर्यन्त ग्यारह मंग और एक ग्यारह अगो और चौदह पूर्वो के वेत्ता और दूसरे एक दश पूर्व के वेत्ता क्रमश. १०, १७, १८, २१, १७, १८, अग के वेत्ता | कोई कोई प्राचार्य अंगो-पूर्वो के एक देश १३, २०, १४, १६, १६ वर्षों में विशाखाचार्य प्रोष्ठिलाके ज्ञाता भद्रबाहु का और कोई कोई अप्टाग निमित्तो के चार्य क्षत्रियाचार्य, जयसेनाचार्य, नाग सेनाचार्य, मिद्धार्थाज्ञाता भद्रबाहु का भी उल्लेख करते हैं। परन्तु समय के चायं धृतिमेनाचार्य, विजयाचार्य, बुन्नि लिगाचार्य, लिहाज से इनका अन्तर्भाव दूसरे भद्रबाहु मे ही किया जा देवाचार्य, और धर्मसेनाचार्य ये ग्यारह मुनिवर हुए। सकता है। वी० नि० म०६८३ तक के प्राचार्यों की इनके बाद १२३ वर्ष पर्यन्त क्रमश. १८, २०, ३६, १४, जो परंपरा ग्रन्थो मे उपलब्ध है वह किन्ही किन्ही के ३२ वर्षों मे नक्षत्राचार्य, जयपालाचार्य, पाहुप्राचार्य, पर्याय नामो को छोड कर प्रायः समान रूप में है। जैसे ध्रवमेनाचार्य और कंसाचार्य ये पांच प्राचार्य ग्यारह मंग कोई प्राचार्य सुधर्मस्वामी को मुधर्मस्वामी लिखते है तो के पाठी हुए । इनके अनन्तर ६७ वर्ष पर्यन्त क्रमशः ६, कोई उन्हे लोहाचार्य और सुधर्माचार्य दोनों नामो से १८, २३, ५० वर्षों मे सुभद्र, यशोभद्र, भद्रबाहु और लिखते है । इसी तरह कोई प्राचार्य एकांग के वेत्ता भद्र- लोहाचार्य ये चार मुनिवृषभ दश नव पाठ अंगों के धारी बाहु को भद्रबाहु और कोई यमोबाहु लिखते हैं। इस हुए है। इनके पश्चात् ११८ वर्ष पर्यन्त कमश. २८, विषय मे पुष्ट हेतु यह है कि प्राचार्य वीरसेन एकाँग के २१, १६, ३०, २० वर्षों मे अहंबली, माघनन्दी, धरमेन पाठी चार मुनियो के नाम क्रम से सुभद्र, यशोभद्र, पुष्पदन्त और भूतबली ये पांच आचार्य एक प्राचाराग यशोबाहु और लोहाचार्य गिनाते है, तो उन्ही के खास के ज्ञाता हुए । उक्त क्रम मे केवल ज्ञानियों, ग्यारह अंग
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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