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________________ ३१.] अनेकान्त [वर्ष १४ सुजस पसर वासिय दिव्वापउं, सहजपाल पढमउं जयवल्लहु, सिरि जमकित्ति णाम दिन्वामउं । तेजू इयरु विबुहजण दुल्लहु । तहु प्रासणि गुण-गण-मणि-सायरु, णिम्वम-स्व-मील-वय-सज्जा, पवयणत्थ-अब्भासण-सायरु । झामेही य पढमिल्लहु भज्जा। दो-विह-तव-तावें तवियंगो, पुरिस-रयण-उप्पायण-खाणी, भन्च कमल-वण-बोह-पयंगो। सच्चित्त जि परहुव-सम वाणी। बज्झम्भतर-मंग-अमंगो, तह उवरि उवण्णा लक्खण-पुण्णा छह णंदण पाणंद-भरा । जें दुज्जउ णिज्जियउ अणगो। णं जिणवर भासिया दन्व सुहासिया, णं रस छह जण पोस-भरा ॥ पुब्वायरियहं मग्ग पयामणि, ताहँ पढमु वर-कित्ति-लयाहरु, सच्चेयण मउरंदुव णिरु जणि । दुहिय जणाण दुक्ख धण खययरु । णिग्गथुवि अत्यहं संजुत्तउ, दागुण्णय-करु णं सुरकरि-करु, सत्थाणवि इयरहं परिचत्तउ । परिवारहु पोमणि सुर भूरुहु । छंद-तक्क-वायरणहिं वाइय, जिण-पूयाविहि-करण-पुरंदर, जिणि निणि विस-सिक्खा दाविय । णियकुल मंदिर बहु साहायरु । उत्तम-खम-वासेण अमंदउं, भूरि दम्वु ववसाएं अजिवि, मलयाकत्ति रिमिवरु चिर णदउँ । लच्छि सहाउं चवलु पडिजिवि । तहो वर पट्ट वइरिउंइ अजनमु, जिणणाहहु पइट्ठ काराविवि, धरिय चरित्तायरणु स-मंजमु । मण-इछिय दाणइ बहु दाविवि । गुरु-गुणयण-मणि-पाइय-भूसणु, तिन्थयरत्त-गोत्तु जि बद्धर, वयण-पउत्ति-जणिय-जण-तूपणु । संघाहिउ सहदेउ जसद्धउ । कय-कामाइय-दोस विमज्जणु, धामाहिय तहु भामिणि भामिय, दंसिय माण-महागय तज्जणु । जिणदासहु सुर्वण हाथिय । भवियण मण-उप्पाइय-बोहणु, कुमरपाल हिय जिरणदामहु पिय, मिरि गुग्णभद्द महारिस साहणु । कहु उवमिजात सोलहु पिय । धत्ता-यह मुणिविदह भवतम-चंदहं पय-कमलहं जे भत्त हुया झाझगु झाइय जिण-पय-कमल, ताई जिणामावलि पयडमि भूयलि, वंदिगणहिं जा णिच्च थुया पढमउं बीयउं तीयउ अमल । णिय जस-पसर-दिसा मुह-वामिय, वच्छराज साभृणा माल, वर-हिंसार-पट्टहि णिवासिय । तिषिण पुत्त हुय नाहं गुणाल । अयरवाल कुल-कमल दिवायर, सहजपाल सुउ बीयउ पुणु हूयउ, छीनमु गयनमु विमलजसु गोयल गोनि पयउ णियमायर । दुहियह दुख-खंडणु णि यकुलमंडगु गुण-वण्णणिको ईसु तसु।२३ प्रासि पुरिस जे अगणिय जाया (यड), तहु पिया विम गुण सील अतुल्ली, ताह जि किं वरणम्मि विक्खायउ । जायण-जण अामा तर-वल्ली। जिण-पय-पकयाहें शिरु कप्पड, खिउ धरली अहिहाणे साहिलं, परियाणिउ सचित्ति परमप्पउ । ताहि गब्भि हुउं पुन गुणाहिउँ । जाल्हे णाम साहु चिरु वुत्तउं, छह पमाण भूलि मु-पमाणिय, पुन जुयलु तहु हुवउ णिरुत्त। गुग्यण जेहि णिच्च सम्माणिय । सह जोन्मण गुण मणिरयणायर, वणिवर-थहं जो मुक्खेमरु, तिविह पत्तदाणेण कयायरु । वीयराय-पय-पंकय-महुयरु ।
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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