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________________ अपभ्रंश कवि पुष्पदन्त [२६३ चम्पूके लेखकने जिस समय अपना प्रन्थ समाप्त ग्रहण की थी, शेष, इस वंशके ऐतिहासिक राजा हैं। किया था, उस समय कृष्ण तृतीय मेलपाटीमें पड़ाव - इनकी कुल तीन रचनाएँ डाले पड़ा हुआ था। सोमदेवने भी उसे चोल. प्राप्त हैं. महापुराण, णायकुमारचरिउ और जसहरविजेता बताया है अतः पुष्पदंत और वह समकालीन चरितप्रेमीजीका अनुमान है कि हेमचन्द्रने अपनी सिद्ध होते हैं। कवि शक सं०८८१ में मेलपाटी देशी नाममालामें 'अभिमान-चिन्ह' नामके जिस पहुँचे थे, तभीसे उन्होंने अपनी साहित्य-साधना शब्द-कोषकारका उल्लेख किया है, वह पुष्पदन्त शुरू की। ही होना चाहिए। क्योंकि इनकी भी यह एक उपाधि आश्रय और आश्रय-दाता-कवि क्रमशः थी, संभव है इन्होंने कोई शब्द-कोष लिखा हो, पर भरत और नन्नके आश्रयमें रहे। ये दोनों ही महा- अभी इसका स्पष्ट प्रमाण नहीं मिला । महापुराणमात्य वंशके प्रतापशाली और प्रभावशाली मंत्री थे। में कविने वेसठ शलाका पुरुषोंका वर्णन किया है। कवि जो इनकी प्रशंसा करते हुए नहीं अघाते उसमें यह ग्रन्थ श. सं.८८१ में शुरू कर ८८७ में पूरा कुछ सचाई अवश्य है, क्योंकि वे शस्त्रज्ञ और किया, 'जसहर चरिउ' की समाप्ति तक मान्यखेट शास्त्रज्ञ दोनों थे। भरतमें दो गुण बहुत अच्छे थे लूटा जा चुका था। महापुराणमें मुख्य रूपसे एक तो उन्हें साहित्यसे प्रेम था और दूसरे मानव- आदिनाथ, राम और कृष्णका जीवन विस्तारसे स्वभावकी अच्छी परख थी। पुष्पदंत जैसे उप्रभा- है। पर इसमें कथा-सूत्र न तो सम्बद्ध है और न वुक और स्वाभिमानीको अपने घर रखकर उनसे धारावाहिक । चरित्रोंके आधार पर इसके कई इतना काम ले लेना भरतके लिए ही संभव था। खंड हो सकते हैं। संधिके संकोच विस्तारका भी मेरी धारणा यह है कि मान्यखेट आनेके पहले ही कोई नियम नहीं है । कोई संधि ११ कड़वकोंमें पूरी वह साहित्य जगत्में कीर्ति अर्जित कर चुके थे तभी होती है तो कोई ४० में। वस्तुतः पुराण-काव्योंकी उन्हें भरतने अपने पास रखा। समय-समय पर शैलीमें कथा-विकासका उतना महत्त्व नहीं है जितना वह कविको प्रेरणा भी देते रहते थे। इन दोनोंकी कि पौराणिक आख्यानोंको काव्यका पुट देकर संवेकैसी पटती थी, एक घटनासे इसका पता चल दनीय बनानेका । काव्यात्मक वर्णनोंके सिवा काव्य जायगा। आदिपुराण लिखनेके अनंतर कविका मन रूढियोंका समावेश भी इसमें है। पुराण काव्य अनेक काव्यसे उदासीन हो उठा। इस पर भरतने उनसे चरित्रोंका संग्रह ग्रन्थ है, और कवि उनको इसलिए कहा, "तुम सन्मन और निष्प्रभ क्यों हो. तुम्हारा निबद्ध करना चाहता है क्योंकि वे धर्मके अनुशासनमन प्रन्थ-रचनामें क्यों नहीं है ? क्या किसीने तुम्हें के आनन्दसे भरे हुए हैं। यह श्रोत वक्ता शैलीमें विरत कर दिया है, या मुझसे कोई अपराध हो गया है। समूचा काव्य १०२ परिच्छेदों और ३ खंडों में हैलो मैं हाथ जोड़कर तुम्हारे आगे बैठा हूँ, तुम्हें पूरा हुआ है। णायकुमारचरिउ रोमांटिक कथा वाणी-रूपी कामधेनु सिद्ध है, तुम उसे क्यों नहीं काव्य है, इसकी रचनाका लक्ष्य अनपंचमीके व्रतका दुहते।' यह सुनकर कविने लिखना स्वीकार कर लिया। महत्व दिखाना है। राजा जयंधरका सापत्न्य पुत्र भरतके बाद उनके पुत्र नन्नके आश्रय में कवि रहे। नागकुमार इसका नायक है, वह सौतेली माँके यह राजा वल्लभका गृहमंत्री था। जसहर चरिउकी व्यवहारसे तंग आकर घरसे चला गया। प्रवासमें रचना इसीके घर हुई। कविने जो 'डिग' राजा- उसने बहतसे रोमांटिक और साहसिक कार्य किए। का उल्लेख किया है, वह असलमें कृष्णका घरेलू अन्तमें कवि बताता है कि कुमारको यह लोकोत्तर नाम था। इसके अतिरिक्त उसने वल्लभराय, रूप श्रुतपंचमीव्रतके अनुष्ठानसे प्राप्त हुआ! जसहरवल्लभनरेंद्र, शुभतु गदेवका भी उल्लेख किया है चरिउ, वस्तुतः संवेदनीय काव्य है। यौधेय देशका इनमें 'वल्लभराय' राष्ट्रकूट नरेशोंकी उपाधि थी राजा मारिदत्त भैरवाचार्यके कहनेसे नर-बलि देने जो उन्होंने चौलुक्य-नरेशोंको जीतनेके उपलक्षमें लगा। इसके लिए कुमार साधु अभयरुचि और
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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