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________________ सौ सौके तीन पुरस्कार निम्न तीन विषयों पर विद्वानोंके निबन्धोंकी जरूरत है। जिनका जो निबन्ध अपने विषयको भले प्रकार स्पष्ट करता हुआ सर्वश्रेष्ठ रहेगा उन्हें उस निबन्ध पर सौ रुपये नकदका पुरस्कार वीरसेवामन्दिरकी मार्फत भेंट किया जायगा । प्रत्येक विषयका निबन्ध फुलिस्केप साइज २५ पच्चीस पृष्ठों अथवा आठसौ ८०० पंक्तियोंसे कमका न होना चाहिये और वह निम्न पते पर वीरसेामन्दिरमें ३०-६-१७ तक पहुँच जाना चाहिये। जिस निबन्ध पर पुरस्कार दिया जायगा उसे प्रकाशित करनेका वीरसेनामन्दिरको अधिकार रहेगा । १. मोक्षमूल और शुद्ध दृष्टि इन्द्रभूति गौतमके सम्मुख विषयको स्पष्ट करके बतानेके लिये रक्खा गया एक प्रसिद्ध श्लोक इस प्रकार है:त्रैकाल्यं द्रव्यषङ्कं नवपदसहितं जीव-षटकाय-लेश्या: पंचान्ये चास्तिकाया व्रत समितिगति ज्ञान चरित्र भेदा । इत्येतन्मोक्षमूलं त्रिभुवनम हितैः प्रोक्तमर्हद्भिरीशैः प्रत्येति श्रद्धधाति स्पृशति च मतिमान यः स वै शुद्धदृष्टिः ॥ इस श्लोक के पूर्वार्ध में जिन विषयोंका उल्लेख है उन्हें मोक्षमूल बतलाया गया है। ये क्या वस्तु हैं और कैसे मोक्षका मूल है, इसका निबन्ध में अच्छी तरह से सहेतुक स्पष्टीकरण और व्याख्यान किया जाना चाहिये । और फिर यह खुलामा करके बताना चाहिये कि उस मोक्षमूलका प्रत्यय, श्रद्धान और स्पर्शन क्या है और उसे करके कोई कैसे शुद्ध दृष्टि बनता अथवा बन सकता है। २. शुभरागकी महिमा और वीतरागको सर्वोपरिता इस निबन्धमें शुभरागकी कृतियों, कृतिप्रकारों और उनकी उपयोगिता तथा महिमाको ऐसे अच्छे प्रभावक ढंगसे स्पष्ट करके बतलाना चाहिये जिससे वे मूर्तिमती-सी नजर आने लगें। साथ ही शुभरागके अभाव में संमारकी क्या दशा हो, इसका थोड़े शब्दों में सजीव चित्रण भी किया जाना चाहिये। और फिर वीतरागताकी महत्ताको कारण सहित ऐसे में प्रदर्शित करना चाहिये जिससे वह सबके ऊपर तैरती हुई दृष्टिगोचर हो और उसके सामने शुभरागअन्य सारे हो महिमामय विषय फीके पड़जय । ३. सरस्वती - विवेक इस निबन्धमें सरस्वतोके विषयका अच्छा ऊहापोह होना चाहिये और यह स्पष्टरूपसे बतलाना चाहिये कि सरस्वतीदेवी कोई व्यक्ति-विशेष है या शक्ति-विशेष, यदि व्यक्ति-विशेष है तो वह कब कहां उत्पन्न हुई ? उसके रूप तथा जीवनको क्या विशेषताएँ हैं ? अब वह कहां अवस्थित है और उसकी पूजा क्यों की जाती है ? यदि शक्ति-विशेष है तो उसका आधार कौन है और उस आधारका रूप क्या है ? मानवाकृतिकं रूपमें उसके जो विभिन्न चित्रादि तथा परिधान पाए जाते हैं उनका तथा वाग्देवी, भारती शारदा और हंसवाहिनी जैसे विशिष्ट नामोंका क्या रहस्य है ? साथ ही सरस्वतीकी सिद्धिका अभिप्राय बतलाते हुए यह व्यक्त करना चाहिये कि सरस्वतीके स्तोत्रों और मंत्रों में जो उसे सम्बोधन करके प्रार्थनाएं की गई हैं उनका मर्म क्या है ? और ये कैसी फलवती होती अथवा पूरी पड़ती हैं ? इस निबन्धके लिये सरस्वतीके कुछ जैन- जैतर स्तोत्रों तथा मन्त्रोंका भी खाम तौरसे पहले अवलोकन किया जाना चाहिये । जुगलकिशोर मुख्तार 'युगवीर' संस्थापक - वीरसेवामन्दिर, २१ दरियागंज, दिल्ली । महान-वियोग दिल्लीकी प्रसिद्ध फर्म हुकमचन्द जगाधरमलके मालिक श्रीमान् पं० महबूबसिंहजी का ७३ वर्षकी आयुमें ता० २६ मार्चको समाधिमरणपूर्वक स्वर्गवास होगया । श्राप दिल्ली जैन समाजके प्रतिष्ठित और धर्मनिष्ठ व्यक्ति थे । आप जैन संस्था के पदाधिकारी और सेठके कूचा जैनमन्दिरकी गद्दीके शास्त्र प्रवक्ता थे । श्राप एक सम्पन्न परिवारको छोड़कर दिवंगत हुए हैं । हम स्वर्गीय श्रात्माकी शान्ति-कामना करते हुए कुटुम्बीजनोंके इष्टवियोगजन्य दुःखमें समवेदना प्रकट करते हैं। वीरसेवामन्दिर परिवार
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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