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________________ वष १४ कोप्पलके शिलालेख महा की प्रतिमा विराजमान कराई। इस लेखका जो भाग कनड़ी शिलालेख इस प्रकार हैमें है, वह छन्दोबबू है । प्रथम दो और अन्तिम तीन पाद - शुभ मस्तु स्वस्ति श्री जयाभ्युदय-शा. काण्ड छन्द में हैं और तीसरा शार्दूलविक्रीड़ितमें है। २-लिवाहन शक वर्ष ११४३ नेय वृष शिलालेख इस प्रकार है ३-संवत्सरड वैशाख सु १ लु श्रीमन्म१-स्वस्ति श्री विक्रमादित्यन प्रथम-राज्यडण्डु श्री ४-हाराजाधिराज राज-परमेश्वर श्री वीर कृष्णमिहनन्दी-तम्माडिगल इंगिनीमर (न)म्। ५-राय-महारायरु पृथ्वी-राज्यम् गेयुत्तम यिरकुनु २-ओंडु टिंगलिम् साधिसिडोर श्री सिंहनन्दी-अमानु ६.-भण्डारड अन्यारसय्यनवर मक्कलु भण्डारड तिम्म(म्) मतिसागर अमानुम् नरलो ७-(प्या) नवस कोपनड चेन-केशवदेवरिगे समर्प३-कामित्रानुम ब्रह्मचारि-अमानुम् नलवारुम विनयम् सिडड प्रा. (गे) यडोर स्वा (मि) कुमारानु ८-मड धर्म-शासनड क्रमवेन्तेण्डरे नामगे कृष्णराय ४-पोसटु जिनविम्बमम पूजिसे डिदिजर्व-विच्छुकुण्डेयोल निरिसि जागक-इसेलिडानागदेवन वसदिय क -रायरु नायकतनके पालिसिड कोपनड सीमे-अोलग५-ल्याणकीर्ति कीर्तिसे नोन्तम् इम गहनमो निरि १०-ण हिरिय (सिण्डो) गी ग्रामवणु देवर अमृतयादि सिदान अंगउत्तंग अद्रियमेगे सिंहनन्द्याचार्यम वण्ड-इंगिनिमर ११-रंग-वैभोग मासोत्सव मुन्तड देवर सेवगे हिरिय-णम् गेयडोडा संगडे कल्याणकीति जिनशासनमम १२-सिण्डोगिय-ग्रामवणु समर्पि सिदेवगि असिएडोमोडल-इन्दिन्तअलवट्ट देसिग-गण-श्रीकौण्ड गाय-ग्राकुण्डान्वया १३-मके अवर ओवरु तप्पिड वरु तम्म मातृ पितृ -स्पदम्-आचार्यर वर्य-चीमर अनघ चान्द्रायणाधीउरो गलन्नु वाराणपोडव-इलदन्त-अबरि (म्) वालिक्के पलरूम् १४-सियल्लिवधेय मडिड पटकक्के होहारु सहस्र ८-कर्म-क्षयंगेडार-अरुदाने म्बयेम्बालि किट सन्डा कपिलेयरविचन्द्रा-चार्यर इण्डोलियोल गुण १५-नु वधेय मडिड पट (क) के होहारु इम् () -सागर मुनिपतिगल गुणचन्द्र मुनीन्द्रर, अभयन्दि को सिण्डोगिय. मुनीन्द्र-गणदीपकर-इनिसिड माधनन्दिगल १६-ग्रामड धर्म शासन नेगाल डार इरवरुम् क्र १७-से २१ पक्रि तकके अक्षर पढ़े नहीं जासके हैं। १०-मडिण्डम् कडु-तापम् इंगिनी-मरणडोल- प्रोडालम् शिलेख नं. १ तवे नोण्टु सिंहनन्द्याचार्यर मूडि पिडेडे (योल) यह शिलालेख एकन मूर्तिके सिंहासनके नीचे खुदा वे दाम् पादेदिरे माडिखी जिनेन्द्र चैत्यालयमम् हमा है। यह मूर्ति कोप्पलमें मिली थी और अब नवाब११-अतिशयडे शान्तिनाथन प्रतिष्ठेयम् विच्छ कुण्डी सालारगंजके संग्रहालयमें सुरुर नगरमें है श्री नरसिंहाचार्यके योल मडि महोन्नम धर्म कार्यडिम् वसुमति योल मतसे यह मूर्ति कोप्पलके चतुर्विशति तीर्थकर वसतिमें कल्याणकीर्ति-मुनिपर नेगालडार मिली है। शिलालेख नं०८ इस शिलालेखके अनुसार वोपन, जो इम्मेभर पृथ्वी यह शिलालेख प्रामके वेंकटेश-गुडीमें खड़े शिलाखण्ड गौड़ से उत्पन्न हुआ था और समृद्धकोपणतीर्थकी उसकी पर उत्कीर्ण है। इसका सम्बन्ध विजयनगर-नरेश कृष्णदेव. प्रियभली मालव्वे, जो सुप्रसिद्ध रायराजगुरु मण्डलाचार्य रायसे है। इसमें भण्डरड अप्यार सय्यके पुत्र भण्डारड माघनन्दी सिद्धान्त चक्रवर्तीकी प्रिय शिप्या थी, इन दोनोंने तिम्मप्पय्य द्वारा दिये हिरिय सिन्डोगी ग्राम (जो कोपण कई धार्मिक अनुष्ठानोंके सम्पन्न होनेके अवसरपर चौबीस की मोमामें स्थित है)के दानका उल्लेख है। तीर्थकरोंकी प्रतिमा मदनदण्ड नामक द्वारा निर्मित वसतिके इस लेखमें शक सं० १४४३ वृष वैशाख शु. है। लिए समर्पित की। यह वसति मूलसंघके देशियगणसे
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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