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________________ २.] अनेकान्त [ वर्ष १४ 'अवंतिका' के सम्पादकको भी इस अनजानेसे होनेवाली भूल के लिये खेद प्रकाशित कर देने के लिये लिख दिया है। आपका सन्तराम उक्त क्षमा पत्रमें लेखकने कहीं भी अपनी भूलको स्पष्ट स्वीकार नहीं किया है। और न यही बतलाया गया है कि मुझसे कहां और किन किन शब्दोंकी भूल हई है। पत्र में उनका कोई संकेत नहीं किया गया। और न उनका यथा स्थान परिमार्जन करनेका ही प्रयत्न किया गया है। ऐसी स्थितिमें क्षमा याचना पत्रका कोई महत्व नहीं है जब तक कि लेखक की बुद्धिका सुधार नहीं हो जाता, और कहानी में प्रयुक्त हुए अशिष्ट एवं अभद्र शब्दोंको जो जैन मुनियोंकी घोर निन्दाके सूचक हैं और जो जैन समाजके हृदयको उत्पीड़ित करते हैं वे, अनजानेमें नहीं लिखे गये। किन्तु जान बूझ कर प्रयुक्त किये गए हैं। ऐसी स्थितिमें लेखक जब तक उनका उचित प्रतीकार अपनी कहानी में नहीं करता, और न उनकी जगह पर दूसरे सुन्दर शब्दोंको अंकित करनेकी योजना ही प्रस्तुत करता है । तब तक लेखकका क्षमा. याचना पत्र कुछ अर्थ नहीं रखता। वह तो गोलमाल करने जैसी बात है। प्राशा है सुमागधा कहानीके लेखक अपनी भूल कार करते हुए कहानीमें प्रयुक्त अशिष्ट एवं अभद्र अंशोंका परिमार्जन करते हुए उनका सुधार प्रकट करेंगे। अन्यथा हमें उचित प्रतिकारके लिये बाध्य होना पड़ेगा। सन्त-विचार [पं० भागचन्द्रजी] सन्त निरन्तर चिन्तत ऐसे, आतमरूप अवाधित ज्ञानी ॥ रोगादिक तो देहाश्रित हैं, इनत होत न मेरी हानी । दहन दहत ज्यों दहन न तदगत, गगन दहन ताकी विधि ठानी ॥१॥ वरणदिक विकार पुद्गल के, इनमें नहिं चैतन्य निशानी । यद्यपि एक क्षेत्र अवगाही, तद्यपि लक्षण भिन्न पिछानी ॥१॥ मैं सर्वांग पूर्ण ज्ञायक रस, लवण खिल्लवत लीला ठानी । मिलौ निराकुल स्वाद न यावत, तावत परपरनति हित मानी ॥३॥ भागचन्द्र निरद्वन्द्व निरामय, मूरति निश्चल सिद्ध समानी । नित अकलंक अवंक शंक विन, निर्मल पंकविना जिमि पानी ॥४॥ सन्त निरन्तर चि.......... कोप्पलके शिलालेख (श्री पं० बलभद्र जी जैन) भारतीय साहित्यमें कोप्पम् या कोपणका अनेक स्थलों पुरसे आग्नेयकोण में ३०मील दूर है और कृष्णानदीके तट पर पर उल्लेख मिलता है । यह नगर स्वीं शताब्दीमें सुप्रसिद्ध स्थित है । उन्होंने अपना यह मत एक तामिल शिलालेखके तीर्थ था और एक महानगरके रूपमें इसकी चारों ओर आधार पर बनाया है। उस शिलालेखमें दो पद पाये हैंख्याति थी। शताब्दियों तक यह जैनधर्मका प्रसिद्ध केन्द्र नोट-इस लेख के लिखनेमें मुझे The Kannad रहा। इस नगरके सम्बन्धमें आधुनिक विद्वानोंमें काफी मत- inscsptins of Kopbal by Mr. C. R. Kai भेद पाये जाते हैं। डॉ. फ्लीट आदि पुरातत्ववेत्ता विद्वानोंके SmaMa Cearta से बहुत सहायता मिली है। इसके मतसे यह स्थान खिद्रापुर या खेदापुर होना चाहिये, जो कोल्हा- 'लिये मैं उनका आभारी हूँ। --Kristam Chartu
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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