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अजमेरके शास्त्र-भंडारसे
पुराने साहित्यकी खोज
(जुगलकिशोर मुग्न्तार 'युगवीर')
१५. मदन युद्ध
सुणहु भवियण एहु परमत्थ, तजि चिंता पर कथा इक्कु यह 'मदन-युद्ध ग्रन्थ प्राकृत-अपभ्रंश-मिश्रित पुरानी
ध्याने हुइ करणु दिज्जयइ । हिन्दी में कवि वल्हका लिखा हुआ है। जिसका दूसरा नाम मणु विहसइ कमल जिम, जइसमाधि इहु अमिय पिउनइ बृचिराज है । कविके इन दोनों नामोंकी उपलब्धि ग्रन्थ- परिचइ जिन्ह चितु एहु रसु घालइ कसमल-खाइ। परम होनी है। यह ग्रन्थ भी एक गुटकेस उपलब्ध हुआ है। पुनरपि तिन्ह संसारमहि जम्मण-मरण न हाइ॥४॥ इसकी पत्रसंख्या २० (११ से ३१) और पद्य संख्या इनमेंसे प्रथम पद्यमें ऋषभदेवका स्मरण किया गया है १५% है। ग्रन्यका विषय ऋपभदेवका काम-विजय है। और यह बतलाया गया है कि वे सर्वार्थसिद्धि-विमानसे चयग्रन्थका रवनाकाल सं. १५८६ असोज सुदि एकम शनिवार कर मरुदेवीकी कुक्षिसे तीन ज्ञानको लिये हुए उत्पन हुए थे, है और लिपिकाल मं० १६६८ समझना चाहिये। क्योंकि वे इच्वाकुवंशके मंडन थे, उत्तम भोगोंको भोगकर उन्होंने जिस गुटकमें यह ग्रन्थ है वह सं० १६६८ सावन वदि प्रवृज्या ली थी और फिर निर्वाणको प्राप्त हुए थे। दूसरे अष्टमीका लिखा हुआ है।
पद्य (गाथा) में अर्हन्तकी वाणीको नमस्कार करते हुए उसे ___ ग्रन्थ के प्रारम्भिक चार पद्य इस प्रकार हैं:
सुख और जयकी जननी लिखा है और मदनयुद्धके रचनेकी "जो सम्वट्ट विमाण हुति चविओतिअणाण चित्तंतरे प्रतिज्ञा की है। तीसरे रड्ढा नामके पद्यमें ऋषभदेवका गुणउववरण। मरुदेवि कुक्खिरयणे स्वागंकुले मंडो॥ गान करते हुए उनके कुछ विशेषणों का उल्लेख किया है और भुत्तभोगसरजदेविमलं पाली पज्जा पुणो। फिर बतलाया है कि मैं उन गुणोंका विस्तारसे कथन करता संपत्तो णिव्याण देव रिसहो काऊण सा मंगलं ॥१॥ हूँ जिनके द्वारा उन्होंने कामदेवको जीता है। चौथे पद्यमें जिण अरह वागवाणी पणमुसुहमत्ति देहि जय-जणणी भव्यजनोंको लक्ष्य करके कहा गया है कि इस परमार्थको वणेमि मयण-जुझ किम जित्तउ मिरीय रिमहंसु ॥२॥ बात पर चिन्ता और पर-कथा आदिको छोड़ करके पूरी रिसह जिणवर पढम तित्थयरु जिण धम्मह उद्धरण। तरह ध्यान देना चाहिये । इससे मन कमल-समान प्रफुल्लित जुगल-धम्म सव्वइ निवारणु, नाभिगय कुल-कमल ॥ होगा, समाधि-रूपी अमृतकी प्राप्ति होगी और इस रसकी सव्वएणु संसार-तारणु जो सुरइंदाह दियो सदाचरण प्राप्तिसे सब पापोंका नाश होकर संसारमें फिर जन्म-मरण
सिरधार। नहीं हो सकेगा। और इस तरह मदनयुद्धके अध्ययन कह क्यउं रति-पनि जितिया, ते गुण कहुं वित्थार ॥३॥ श्रादिका फल बनला कर भव्य-जीवोंको काम-विजयके द्वारा इसी नामक एक और भट्टारक हुए । उनके शिष्य तस सेकक बुध ऋषभ धुरीन । रची कथा म्यंजन-पर-हीन ॥ ऋपभको भी एक रविवार-कथा अंजनगाँव, जिला संवत अष्टादश तेतीस । श्रावण सुदि बारसि रवि दीस ॥१२॥ अमरावतीके बलात्कारगरण मन्दिर में मिलती है। गंगेरवाल सुप्रांबड्या हीरबा रघुजी भ्रात । इसकी रचना विदर्भके कर्णखेट ग्राममें सम्वत् ते वचने कीधी कथा मुणता मंगल ख्यात ॥२४॥ १८३३ में हुई थी। यथा
उपर्युक्त संक्षिप्त विवरणसे स्पष्ट है कि यदि विषय वराड मझारि सुनन । काखेट धनधान्य समग्र ॥ प्रयत्न किया जाय तो विदर्भमें गुजराती साहित्य सुपार्श्वदेव चैन्यालय तुग । दर्शन देखत पातक भंग ॥१२॥ काफी मात्रामें उपलब्ध हो सकता है। खासकर तप पट्टोदय शिखरी सूर्य । शक्रकीर्ति भूमंडलवर्य । कारंजाके भट्टारकीय ग्रन्थ-भण्डारोंकी इस दृष्टिसे तत्पट्ट भूषण श्री गुरुराज । धर्मचंद्र गछपति निति गाज ॥१२२ छानबीन होनेकी बहुत आवश्यकता है।