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________________ १३६] अनेकान्त [वर्ष १४ खराब हुई, क्योंकि दशवीं शताब्दीके बाद १५, १६वीं समाचारको पत्रिका में प्रकाशित करनेके लिए राय दी। वे शताब्दी तक कई श्रमण मुनियोंने अनेक सुन्दर ग्रन्थोंको वे तीनों ही मेरे घनिष्ठ मित्र हैं, जनताकी भलाई चाहने बनाया है। सिर्फ यही नहीं, सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थोंका अनुवाद वाले हैं, तिरुक्कुरल पर अटल श्रद्धा करने वाले एवं करनेवाले श्रमण अगणित थे। इसीलिए ऊपर कहे अनुसार उस मार्ग पर चलाने वाले हैं। उन मित्रोंकी रायके अनुसार ई० पू० तीसरी शताब्दीमें उत्कीर्ण शिलालेखक श्राधार पर मदुरामें प्रकाशित 'तन्दि' 'दिन चैदि' इन दोनों पत्रिकाओंमें यह भी उससे सम्बन्धित वीं या ६वीं शताब्दीका होगा। छपनेके लिए श्रमणगिरिकी महिमाका वर्णन लिखकर भेजा, किसी भी कारण से उसको दशवीं शताब्दीका कहा जाय साथ ही इसके साथ क्या अन्याय हो रहा है इस बात पर तो अनुचित है। जो भी हो, वह है बहुत प्राचीन पर्वत। जोर देकर उसे रोकने का प्रबन्ध करने के लिए एक समाचार इस प्रकारके ऐतिहासिक चिन्होंके फोटो लेनेके लिए लिम्ब भेजा । इस समाचारको मेरे मित्रोंने प्रकाशित करनेका मद्रास मिंट स्ट्रीटके जैन मिशन संघकी सहायता से इंतजाम कर दिया। प्रकाशकने भी प्रधान पृष्टपर बड़े अक्षरोंमे ता. १-११-४६ को में मद्राससे रवाना होकर पुन: शीर्षक देकर 'तन्दि' और 'दिन चैदि' इन दोनों में छाप दिया। श्रमण गिरि पहुंचा। मैंने मदास पाते ही १२ नवम्बर ४६ को दक्षिण भारत जैसा कि मैंने सोचा था, वहां पन्थर तोड़ने का काम पुरातत्त्व अन्वेषण भागके सुपरिटेन्डेन्टको ज्ञात कराया कि जारी था। मेरा जी तड़फड़ाने लगा। बहुत कुछ सोचने पर अभी तक श्रमणगिरिका तोड़ना बन्द नहीं हुआ । इसके भी कुछ समझमें नहीं पाया। श्रमणगिरिक नामसं वह उत्तरमें उन्होंने मदुरा जिलेको कलैक्टरको पत्र लिखनेको श्रमणोंके समयके सम्बन्धित है यह जाने विना ही उस तोडा कहा। मैंने तुरन्त ही १७ नवम्बर ४६ को मदुरा जिलेके जा रहा है यह एक बड़ी भारी भूल है। कलैक्टरको पत्र लिखा । इसी बीच श्रमणगिरिक बारेमें एक शेवगिरि, वैष्णवगिरि, मुसलमानगिरि, ईमाईगिरिक वर्णनात्मक लेख लिग्नकर सुदेश मित्रनमें छपनेके लिये भेज नामसे वह होना नो उन जातियों की अनुमति विना उसे दिया। उसके प्रकाशकने भी 'मदुरा और श्रमणगिरि' नामक तोड़नेका साहस कोई करता ? इस प्रकार श्रमणांकी मंच्या शीर्षक देकर १० दिसम्बर ४६ में चित्रके साथ प्रकाशित बहुत न्यूनावस्था में है इसी कारण वे लोग प्राचीन चरित्रका कर दिया । मदुराक त्यागराय कॉलेजके तमिल प्रोफेसर डा. परिचय देने वाले इस महान पुण्यगिरिको चकनाचूर करनेमें म. राजभाणि कनारजीने भी अपने नेशनल तमिल वाचक तल्लीन हैं । अफसोस ! ब्रिटिश सरकारक रहते उस पहला भागमें श्रमणगिरिके बारेमें एक पाठ लिखा है । उसके पुण्यगिरिके लिए कोई श्रापनि नहीं पायी। देशमें प्रजातंत्र बाद दक्षिण भारत प्रारक्यालेजिकल डिपार्टमेंट के सुपरिटेन्डेन्ट राज्य होते ही श्रमणगिरि को तोड़ा जा रहा है। कलायोकी बी. डी. कृष्णसामीजीके पाससे निम्नलिखित पत्र प्रायाथा । वृद्धि करनेके स्थान पर प्रजातंत्र राज्य कलाको नष्ट करने के लिए तैयार हुआ, यह सोच सोचकर मुझे दुःव No. 40/926. Fort St. Georg. Madras-y हो रहा था। भारत सरकारके दक्षिण भारतक शिलालेखोंक 4th March, 50 अन्वेषक डा. छावड़ाके द्वारा दिये गये दृढ़ आश्वासन न जाने कहां गये इन सब अधिकारियों की बात विना माने Department of Archaeology, ही काम जारी है, यह बड़े दुख की बात है। इस हालतमें Southern Circle, उन पावन मूर्तियोंका शीघ्र फोटो लेना कितना आवश्यक My Dear Sripal, था यह उस भयंकर परिस्थितिने ही हमें बतला दिया। Your kind letter of the 3rd instant. इसलिए जितने जल्दी हो सका, उतनी जल्दी उन सब You will be pleased to know that the मूर्तियोंका फोटो लेकर में मदुरा श्रा पहुँचा। Mathurai Samanar Malai is now a मदराके ज्योति-सन्मार्ग-संघ-वैद्यशालाके वैद्य श्रीमुत्तु- protected monument and the collector अडिगल, ज्योति-सन्मार्गके कार्यदर्शी श्री अ. कंगनन is doing his very best to see that there जी. पुरातत्ववेत्ता श्री एरल प. मलैयप्पन जी ने इस are no prejudicial quarrying in the
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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