SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 159
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ - किरण ५] श्रमणगिरि चलें १३३ २....."गुणसेनदवर माणाक... हाथ अपने पाप जुड़ जाते हैं और शीश झुक जाता है। ३..........."क् कर चंद्रप्रभ.. जिस प्रकार पुदुको, सिद्धनवासल आदि तमिलदेशके तीर्थस्थान माने जाते हैं उसी प्रकार यह पवित्र पुण्य श्रमण गिरि भी एक तीर्थस्थान है । इसके तीर्थस्थान माने जानेके ६............. वित्त......... कारण भी दिखलाई पड़ते हैं उनको देखनेसे स्पष्ट विदित अर्थः-स्वस्ति श्री इस पल्लीके गुणसेनदेवके शिष्य होता है कि इस तमिलनाडमें तमिल विद्वानोंकी, श्रादर ............. के शिष्य.........'चंद्रप्रभके द्वारा बनवायी करनेवालोंकी. श्रावकोंकी कमी न थी। तमिलदेशमें रहने गयी (यह पूज्य प्रतिमा)। वाले जैन अधिकतर पांड्यदेशके रहनेवाले थे ऐसा उपर्युक १६ तमिल वर्णनोंसे अवगत होता है । इस प्रकार पांड्यदेशमें गृहस्थखंडित मंदिरक नीचकी लाइनमें उमी पर्वतके पेच्चि- धर्म और मुनिधर्म ये दोनों बहुत अच्छी दशामें थे। ऐसे पल्लमके ऊपर इस प्रकार लेख अंकित है: पांड्यदेशकी जितनी भी प्रशसा की जाय सब थोड़ी है। १. इब्वांडू इट्टयान अब महामुनियोंके तपोवन रूप इस पवित्र श्रमणगिरि २. श्री परम... ......रिरक्षे॥ पर अचानक आई आपत्ति, तथा कांग्रेस सरकारके द्वारा अर्थः-इस वर्ष....... ...... 'इरट्टयान...... ..... बचाये जानेके वर्णनको पढ़िये। श्री परम.........."की सुरक्षामें यह रहे। ___ जीव-कारुण्य-सेवासे संबंधित यात्राके समयमें मुझे १७ कन्नड और मिल कंपम नामक गांव जाना पड़ा। ७ जून १९४६ की बस द्वारा पर्वतके शिखरमें, पत्थरके दीपस्तम्भ पेच्चिपल्लमके कम्पमको रवाना हुया । पांच मील चलनेके बाद बस कुछ ऊपर (वही पहाड) खराब हो गई, अतः हम सब लोगोंको वहीं उतरना पड़ा १. श्रारिय देवरु और उसके रवाना होनेमें अभी एक घण्टेका विलम्ब था। २. पारियदेवर में प्राकृतिक दृश्यों एवं ऐतिहासिक चीजोंके देखनेका बड़ा ३. मूलमंघ वेलगुल बालचन्द्र शौकीन हूँ । इसलिये में जहां कहीं भी जाता हूँ वहांके ४. देवरु नेमिदेवरु मू () पर्वतों, मन्दिरोंके बारेमें जाननेकी जिज्ञासा रखता है। जहां ५. प्रता (प) अजितसन देवरु बस ठहरा था वह पुदुकोट्ट नामक एक छोटा सा गांव था। ६. गोवधन देवरु......... उस गांवके दक्षिणमें करीब एक फलांग पर पूर्व-पश्चिममें ७. र माडि......स (त) रु II एक मुन्दर पर्वत दिखलाई पड़ा । उसको देखकर मैंने एक अर्थ--( कन्नड और तमिल )। श्रादमीसे जो डाब पी रहा था पूछा-इस पर्वतका नाम अारिय देवरू । पारिय देवर । मूलसंघके बेलगुल क्या है ? उसने उत्तर दिया-अमणरमल । शमणरमलैके बालचन्द्र देवरू-नेमि देवरू सूर्यप्रताप अजितसन देवरू'.. नामसे भी पुकारते है । उन दोनों नामोंको सुनकर मैंने .."सम्पन्न करके स्वर्गवासी हुए। अनुमान लगाया कि यह कोई ऐतिहासिक पर्वत होगा। श्रमणगिरिकी महिमा ही अपूर्व है । इस पर्वतमें अप्टो- इसलिये इस पुण्यक्षेत्रको देग्वनेकी जिज्ञासा उत्पन हुई। पवासी गुणसेन देव इनके शिप्य-स्वरूप भक्के समान प्रकट कंपम यात्राको बन्दकर एक मित्रके साथ (शमयरमल) हुए कनकवीरपेरियडिगल, माघनन्दिप्पेरियार, अभिनन्दन श्रमणगिरिको नुरन्त रवाना हो गया । पर्वतके नीचेकी तरफ पठारर, बर्द्धमान पण्डित, प्राचार्यपदको प्राप्त हुए अचान पुराना तालाब और छोटे-छोटे मन्दिर दिखलाई पड़े। उसके श्रीपाल, पांड्य राजाके द्वारा काबिधि पदबीको प्राप्त किये बाद पर्वतके ऊपर चढ़ा और वहांसे समतल भूमि पर श्रा अयंगाविधि सघनाम्बि, अच्चनन्दि मुनिके जैसे महान् पहुँचा । वहां एक छोटा बड़का वृक्ष है । उसके सामने चट्टान मुनियोंने धर्मको दिन दूना रात चौगुना बढ़ानेका प्रयत्न हरे-हरे घने घामसे ढके हुए थे । इतनी त्रिशाल जगहमें किया । इन महान् तपस्वियोंके स्मरणार्थ तीर्थंकरोंकी मूर्तियां किसी भी चीजको न देखकर मुझे बड़ा आश्चर्य हुआ, और बनायी गई हैं। इन तीथंकरोंकी मूर्तियोंको देखते ही हमारे मुझे अपनी आंखों पर विश्वास न हुआ । अतः मैं चहानके
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy