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________________ ११० ] ० सम्प्रदाय में यद्यपि कल्पसूत्रकी विवाहित मान्यताका प्रचलन है, उसका उल्लेख पश्चाद्वर्ती श्रावश्यक भाप्य में और आचारांग चौबीसवें अध्ययन में भी पाया जाता है । परन्तु उसकी श्रन्य प्राचीन साहित्यसे कोई संपुष्टि नहीं हो सकी है। किन्तु जिन प्राचीन ग्रन्थोंमें जो उल्लेख उपलब्ध होते हैं वे सब उल्लेख महावीर को अविवाहित और कुमार वयमें ही दीक्षित होना घोषित करते हैं। इससे श्वेताम्बरोंमें महावीरके विवाह सम्बन्ध को लेकर दो मान्यताओंों का उल्लेख स्पष्ट है, और उनमें अविवाहित मान्यता ही प्राचीन एवं ग्रामाणिक ज्ञात होती है । क्योकि उसका (विवाहित मान्यताका) स्थानांग, समवायांग और भगवती जैसे सूत्रग्रन्थोंमें उल्लेख तक नहीं मिलता । श्रतः दोनों मान्यताओं का तुलनात्मक अध्ययन करनेसे ऐसा स्पष्ट ध्वनित होता हैfe arra saaाहित मान्यता ही प्राचीन है, दूसरी मान्यता तो कंवल कल्पसूत्र-द्वारा ही कल्पित हुई है और उसी पर उसका प्रचार व प्रसार उनमें हुआ है जो अर्वाचीन और प्रमाणिक जान पड़ती है। समवायांग सूत्र नं० १8 से जिसमें श्रागारवासका उल्लेख करते हुए १६ तीर्थंकरोंका घर में रहकर और भोग भोग कर दीक्षित होना बतलाया गया है । इससे स्पष्ट है कि शेष पांच तीर्थंकर कुमार-श्रत्रस्थामें ही दीक्षित हुए हैं । इससे टीकाकार अभयदेव सूरिने अपनी वृत्ति में 'शेषान्तु पचकुमारभाव एवेत्याह च' वाक्यक साथ 'वीरं अरिमी' नामकी गाथा उद्धृत की है । 'स्थानांग सूत्र' के ४७६ वें सूत्रमें भी पांच तीर्थकरोंको कुमार प्रवृजित कहा गया है । इमसे स्पष्ट है कि इन सूत्र-ग्रन्थोंमें भगवान् महावीर को पाश्र्वदि तीर्थंकरोंक समान ही मह्मचारी प्रकट किया है । श्रावश्यक नियुक्ति की निम्न गाथाओं में भी वीर, श्ररिष्टनेमी पार्श्व, मल्लिनाथ और वासुपूज्य इन पांच तीर्थकरों को कुमार अवस्था में ही दीक्षित होना घोषित किया है वीरं अरिनेमिं पास मल्लिं च वामुपुज्जं च । एए मुत्तण जिणे अवसेसा श्रसि रायाणां ॥ २४३ रायकुलेवि जाया विसुद्ध से वत्ति कुले । नय इत्थिभित्रा कुमारवासमि पव्वइया ||२४४ इन गाथाओंका जो श्राशय ऊपर दिया गया है वही [ वर्ष १४ मुनि श्रीकल्याणविजयजीको भी अभिप्रेत है । इन गाथाओं के अतिरिक्त २४८वीं गाथामें स्पष्ट बतलाया गया है कि उक्त पांच तीर्थंकरोंने प्रथम अवस्थामें दीक्षा ली, और शेष तीर्थंकरोंने पश्चिम श्रवस्था में। टीकाकार मलयगिरिने 'पढमव' का अर्थ प्रथमवयसि कुमारत्वलक्षणे प्रत्रजिताः, शेपाः पुनः ऋपभस्वामिप्रभृतयो, 'मध्यमे वर्यास' यौवनत्वलक्षणे वर्तमानाः प्रब्रजिताः ।' किया है । वह गाथा इस प्रकार है वीरो ठिमी पासो मल्लीवासुपुज्जो य । पढमव पव्वइया सेसा पुरण पच्छियवयंम २४५॥ इसके सिवाय, श्रावश्यकनियुक्तिकी 'गामायारा विसया निसेविता ते कुमारवज्जेहिं' इस गाथामें स्पष्ट रूपमें उक्त मान्यताको पुष्ट किया गया है। यहां 'कुमार' शब्दका श्रर्थ विचारणीय है। 'कुमार' शब्द का सीधा और सामान्य अर्थ कुवारा, अविवाहित, बालब्रह्मचारी होता है । 'कुमारी कन्या' इस व्याकरण सूत्रमें भी कुमारी (अविवाहित ) को कन्या स्वीकार किया गया है। 'समवायांग' सूत्रमें भी कुमार शब्दका अर्थ अविवाहित ब्रह्मचारी दिया है। श्रावश्यक निर्यु विकार को भी कुमार शब्दका उक्त अर्थ ही अभिप्रेत था जिसे उन्होंने 'गामायारा विसया निसेविता जे कुमारवज्जेहिं' वाक्य द्वारा उसे पुष्ट किया है। जो लोग खींच-तान कर 'कुमार' शब्दका अर्थ युवराज एवं विवाहित करते हैं उन्हें समदृष्टिसे नियुक्रिकारके 'कुमारवज्जे हि' वाक्य पर ध्यान देते हुये अर्थ करना चाहिये, जिसमें उन पांच कुमार तीर्थंकरोंको भोग-रहित (अविवाहित) बतलाया गया है । यदि नियुक्तिकारको कुमार शब्दका विवाहित अर्थ अभिप्रेत होता तो वे उक्त वाक्य द्वारा उनके भोग भोगनेका निषेध ही नहीं करते। इससे स्पष्ट है कि नियुक्तिकारको कुमार शब्दका विवाहित होना अर्थ स्वीकार नहीं है, श्रतः नियुक्रिकारकी दृष्टिमें महावीर अविवाहित थे | दूसरे यदि कुमार शब्दका अर्थ श्वेताम्बरीय समवांगसूत्र श्रादिके विरुद्ध विवाहित स्वीकार किया जाय जैसा कि सम्प्रदायकिया जाता है तो उसमें बड़ी भारी आपत्ति आती है वादके व्यामोह में महावीरको विवाहित सिद्ध करनेकी धुन में जिसकी थोर उन्होंने ध्यान भी दिया मालूम नहीं होता । उक्त कुमार शब्द द्वारा महावीर को विवाहित, और शेष देखो, श्रमण भगवान महावीर पृष्ठ १२ ॥
SR No.538014
Book TitleAnekant 1956 Book 14 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1956
Total Pages429
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size25 MB
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