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________________ वीरसेवामन्दिरकी सेवाएँ वीरसेवामन्दिरने, वैसाख सुदी तीज ( अक्षय तृतीया) सिद्धसेन नहीं. तीन या तीनसे अधिक हैं। माथ ही उपलब्ध सं. १९९३ ता.२४ अप्रेल मन् १९३० को सरमावा जि. द्वानिशिकाओंके कर्ता भी एक ही सिद्धसेन नहीं है। सहारनपुग्में मुख्तार श्री जुगलकिशोरजी के द्वारा संस्थापित ८. इतिहासकी दूसरी सैकड़ों बातोंका उद्घाटन और होकर अथवा जन्म पाकर, प्राज नक जो सेवाएं की हैं, उन समयादि विषयक अनेक उलझी हुई गुन्थियोंका सुलझाया का मंक्षिप्त मार इस प्रकार है: जाना। १.वीर-शासन-जयन्ती जैस पावनपर्वका उद्वार और १. लोकोपयोगी महन्नके नव साहित्यका सृजन और प्रचार । प्रकाशन, जिसमें 15 प्रन्योंकी खोजपूर्ण खास प्रस्तावनाएं, ____२. स्वामी समन्नभद्रक एक अश्रुतपूर्व अपूर्व परिचयपद्यकी नई खोज । २० ग्रन्थोंका हिन्दी अनुवाद और कोई ३०० लेखोंका लिखा जाना भी शामिल है। ३. लुप्त-प्राय जैन माहिन्यकी खोजमें संस्कृत, प्राकृत, अपभ्रश और हिन्दीक लगभग २०० ग्रन्थोंका अनुसंधान ...अनेकान्त मासिक-द्वारा जननामें विवेकको जागृत तथा परिचय प्रदान । दूसरे भी कितने ही ग्रन्थों तथा ग्रन्थ करके उसके प्राचार-विचारको ऊँचा उठानेका मत्प्रयन्न । कागेका परिचय-लेग्वन । ११. धवल जयधवल और महाधवल (महाबन्ध ) ४. श्रीपात्रकारी और विद्यानन्दको एक समझनेकी जसे प्राचीन मिद्धान्त-अन्योंकी ताडपत्रीय प्रतियोंका-जो भारी भूलका सप्रमाण निरमन । मूडबिद्रीके मन्दिरमें मान नालोंके भीतर बन्द रहती थीं५. गोम्मटमारकी त्रुटिपूर्ति, रत्नकरण्डका कर्तृत्व और फाटा लिया जाना त्र फोटो लिया जाना और जीर्णोद्धारक लिये उनके दिल्ली एणत्तीकी प्राचीनता-विषयक विवादोंका प्रबन बुलानेका आयोजन क क सबके लिए दर्शनादिका मार्ग सुलभ युक्कियों-द्वारा शान्तीकरण। करना। ६. क्लीक तोमरवंशी नृनीव अनंगपालकी खोज, जिससे १२. जैन लक्षणावली (लक्षणामक जैम पारिभाषिक इतिहासकी कितनी ही भूल-भ्रान्तियाँ दूर हो जाती है। शब्दकोष ), जैनग्रन्थोंकी बृहन्सूची और ममन्तभद्र-भारती ..गहर अनुसन्धान-द्वारा यह प्रमाणित किया जाना कोशादिक निर्माणका समारम्भ । साथ ही 'पुरातन-जन वाक्यकि सन्मतिसूत्रक कर्ता सिद्धसेन श्राचार्य दिगम्बर थे. नथा सूची' आदि २१ ग्रन्योंका प्रकाशन । मन्मतिसूत्र, न्यायाबनार और द्वात्रिंशिकाओंक का एक ही -व्यवस्थापक वीरसेवामंदिर हिसाबका संशोधन अनेकान्नकी गत १२वीं किरणमें अनेकान्तका द्विवा- इधर किरण की छपाई और पोस्टेज ग्यमें जो पिक हिसाव छपा है, जिपक छपनम खेद है कि कुछ गलतियां अन्दाजी रकमें १७५) और १.) की दर्ज हुई थीं वे क्रमश: हो गई हैं। बडी ग़लती सूदकी रकमका १३२-) की जगह १६.) नथा ६॥) के रूपमें स्थिर हुई हैं, इसमे १२वें ३२%) छप जाना है जिसस जमा जोड़ और बाकीकी रकमों वर्ष सम्बन्धी वचक जोडमें १८७)। की कमी होती है। में मौ सौ रुपये की कमी हो गई है। व रकम ३२%), अतः ग्वर्चक जोड़की रकम ४६१६m-)को ५१६ )के १७८८), १०३४८), १४४६॥), ३६२७३)॥ है, रूप में परिवर्तित करना होगा। और इस तरह घाटे की इनमें से प्रत्येको १००) की रकम बढा कर सुधार कर लेना रकम १८-)॥की जगह ८७11) बनानी होगी। चाहिए । खर्चकी तरफ जोड़में एक रकम ८९० ) अाशा है पाठकजन अपनी-अपनी प्रति में यह सब संशोधन की जगह 480 ) के रूप में छप गई है उसे भी, करने की कृपा करेंगे। रिकस्थान पर एक का अंक बनाकर, सुधार लेना चाहिए । अधिष्ठाता वीर-सेवामन्दिर'
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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