SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 355
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ डा० भायाणो एम० ए० की भारी भूल बा.हरिवल्लभ चुनीलाल भायाणी एम.ए., पी. क्रमशः इस प्रकार हैं-1 मद करता हुआ हाथी, २ कमलएच. डी. ने कविराज स्वयम्भूदवके 'पउमचरिउ' नामक वनको उग्वाड़ता हुआ वृषभ, ३ विशालनेत्र सिंह, ४ नवप्रमुख अपनश अन्धका सम्पादन किया है, जिसके दो भाग कमलाद लक्ष्मी, ५ उत्कट गन्धवाली पुष्पमाला, ६ मनोसिंघी जनग्रन्थमालामें प्रकाशित हो चुके हैं । प्रथम भाग हर पूर्ण चन्द्र, किरणोंस प्रदीप्त सूर्य - परिभ्रमण करता (विद्याधर काण्ड) के साथ आपकी १२० पृष्ठकी अंग्रेजी हुआ मीन-युगल, जल-पूरित मंगल-कलश, :. कमलाप्रस्तावना लगी हुई है जो अच्छे परिश्रमसे लिखी गई तथा च्छादित पन मरोबर, गर्जना करता हुश्रा समुद्र, १२ महत्वकी जान पड़ती है और उस पर बम्बई यूनिवर्सिटीस दिव्यसिंहासन, १३ घण्टालियोंस मुग्वरित विमान, १४ सब आपको डाक्टरेट (पी.एच. डी.)की उपाधि भी प्राप्त प्रोरस धवल नाग-भवन, १५ दैदीप्यमान रत्न समूह, १६ हुई है। यह प्रस्तावना अभी पूरी तौरस अपने दखन तथा धधकती हुई अग्नि। परिचयमें नहीं श्राई । हालमें कलकत्ताक श्रीमान् बाबु छोटे- इनन स्पष्ट उल्लंग्वा होते हुए भी डा. भायाणी जैस लालजी जैनने प्रस्तावनाका कुछ अंश अवलोकन कर उपके डिग्रीप्राप्त विद्वानने अपने पाठकोंकी वस्तु-स्थितिक विरुद्ध एक वाक्यकी और अपना ध्यान आकर्षित किया, जो इस चौदह स्वप्न देखने की अन्यथा बान क्यों बतलाई, यह कुछ प्रकार है: समझमें नहीं आता ! मालूम नहीं इसमें उनका क्या रहस्य "Marudevi sowa sesies of fourteen dreams है? क्या इसके द्वारा वे यह प्रकट करना चाहते है कि इस __यह वाक्य प्रन्धकी प्रथम सन्धिक के परिचयस सम्बन्ध विषयमें प्रन्थकार श्वेताम्बर मान्यता का अनुबाया था ? रखता है। इसमें बतलाया गया है कि 'मरुदेवीने चौदह यदि ऐसा है तो यह ग्रन्थकारक प्रति ही नहीं बल्कि अपन स्वप्न देखे' । चौदह स्वप्नोंकी मान्यता श्वेताम्बर सम्प्रदाय अपंजी पाठकोंक प्रति भी भारी अन्य य है जिन्हें सल्पस का है जबकि दिगम्बर सम्प्रदाय सोलह स्वप्नोंका देखा जाना वचित रग्वकर गुमराह करने की चेष्टा की गई है। खेद है मानता है और ग्रन्थकार स्वयम्भूदेव दिगम्बराम्नायक डा. साहबके गुरु आचार्य जिनविजयजीने भी, जोकि मिधी विद्वान हैं। अतः बाबू छोटेलालजीको उक्र परिचयवाक्य जैन ग्रन्थमालाक प्रधान सम्पादक हैं और जिनकी खास खटका और उन्होंने यह जाननेकी इच्छा व्यक्त की कि 'क्या प्रेरणा को पाकर ही यह प्रस्तावनात्मक निबन्ध लिखा गया मूल ग्रन्थमें ऋषभदेवकी माता मरुदेवीके चौदह स्वप्नोंक हैं, इस बहुत माटो गलती पर कोई ध्यान नहीं दिया। इसीसे देखनेका ही उल्लेख है। तदनुसार मूलग्रन्थको देखा गया वह उनके अंग्रेजी प्राकथन [Foreword] प्रकट नहीं उसके वें कडवक की आठ पंक्तियोंमें मरुदेवीको जिय को गई। और न शुद्धिपत्रमें ही उसे अन्य अशुद्धियोंक स्वप्नावलीका उल्लेख है उसमें साफ तौर पर, प्रति पंक्रि माथ दर्शाया गया है। ऐसी स्थितिमें इस संस्कारोंके वश दो स्वप्नोंके हिसाबसे, मोलह स्वप्नोंक नाम दिये हैं। कढ- होने वाली भारी भूल समझी जाय या जानबूझ कर की गई वककी वे पंक्तियां इस प्रकार हैं: गलती माना जाय? मैं तो यही कहूंगा कि यह डा. साहब दीसह मयगलु मय-गिलनांदु, दीसह वसहुक्खय-कमल-संडु। की संस्कारोंके वश होने वाली भारी भूल है। ऐसी भूल दीसह पंचमुहु पईहरच्छि, दीसह णव-कमलारूढ-लच्छि॥ कभी कभी भारी अनर्थ कर जाती है। अतः भविष्यमें उन्हें दीसह गंधुक्कड-कुसुम-दामु, दीसह छण-यंदु मणोहिरामु। ऐसी भूलोंके प्रति बहुत सावधानी वर्तनी चाहिये और दीसह दियर कर-पज्जलन्तु, दीसइ झम-जुयलु परिब्भमंतु ॥ जितना भी शीघ्र होसके इस भूलका प्रतिकार कर देना दीसह जल मंगल-कलसु वएणु, दीसह कमलायरु कमल-छण्णु चाहिये। साथ ही प्रन्थमालाक संचालकजी को ग्रन्थकी दीसह जलणिहि गज्जिय-जलोहु, दीसह सिंहासणु दिण्ण-सोहु अप्रकाशित प्रतियों में इसके सुधार की अविलम्ब योजना दीसइ विमाणु घण्टालि-मुहलु दीसइ णागालउ सम्वु धवलु। करनी चाहिये । आशा है। ग्रन्थ-सम्पादक उक्र डा. साहब दोसइ मणि णियह परिप्फुरन्तु, दीसह धूमबउ धग धगन्तु। और सबालक प्रा. जिनविजयजी इस ओर शीघ्र ध्यान इनमें जिन सोलह स्वप्नोंको दग्बनेका उल्लेख है वे दन की कृपा करेंगे। -जुगलकिशोर
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy