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________________ अनेकान्त | वर १३ दिया और रोटीके टुकड़े म्बिला २ कर उसे 'दोगला'. कुछ और कहना, तथा काम कुछ और ही करना, यह बना दिया है। मायाचार कहलाता है। यह मायाचार कोई प्रतिष्ठा शंका-बहिरंग कारगण और उनका असर नो प्राप्त करनेके लिए करता है, कोई धन कमानेके समझ में आया, पर यह सिंह या श्वान नामक नाम- और कोई व्यभिचार आदि अन्य मतलब हल करनेके कर्मके उदयरूप अन्तरंगकारण क्या वस्तु है? लिए । धनको ग्यारहवां प्राण कहा गया है जो माया___ समाधान-जो कारण बाहिर में दृष्टिगोचर न चार करके दूसरेके धनको हड़प करते हैं, वे मांस-भक्षी हो सके, पर अन्तरंगम-भीतर आत्माके ऊपर अपना या छोटे-मोटे जीवोंको जिन्दा हड़प जाने वाले सूक्ष्म असर डाले, उसे अन्तरंग कारण कहते हैं। जानवरोमं पैदा होते हैं। सिंह और श्वान दोनों ही जीव अपनी भली-बुरी नाना प्रकारकी हरकतोंसे अपने मांस-भक्षी हैं, पर इनका पूर्वभवमें मायाचार धन-विषयक आत्मा पर जो संस्कार डाल लेता है, उसे जैन शास्त्री- रहा, ऐमा जानना चाहिए। जो जीव मामने जाहिरमेंकी परिभाषामें 'कर्म' कहते हैं और वही कर्म संचित तोधानयोंकी खुशामद करते हैं और अवसर पातेही पीछे संग्कारोंका फल देने के लिए अन्तरंग कारण है। से उसके धनको चुरा लेते हैं, या लिए हुए, और अमा शंका वे ऐसे कौनस संस्कार हैं, जिनके कारण नत रखे धनको हड़प कर जाते हैं, या हड़प करनेकी जीव सिह और श्वान नामक कर्मको उपार्जन करता है भावना रखते हुए भी कभी-कभी अमानत रखनेवालेऔर उनके उदयसे सिंह और कुत्तेकी पर्यायको धारण को व्याज या सहायता अदिके रूप में कुछ तांबके टुकड़े करता है। देते रहते हैं, वे तो कुत्तोंके संस्कार अपनी आत्मापर समाधान पशुओंमें उत्पन्न होनेका प्रधान कारण डालते हैं। किन्तु जो दूसरके धनका चुराने या हड़प 'मायाचार' है। सिंह और श्वान दोनों ही पशु हैं, करनका करने के लिए न सामने खुशामद ही करते हैं और न अतः यह स्वतः सिद्ध है कि दोनोंने पूवभवमें भरपूर पोछे धन ही चुराते हैं, किन्तु दिनभर तो स्वाभिमानमायाचार किया है । मनमें कुछ और रखना. वचनस का वाना पहने अपने घरोंमे पड़े रहते हैं और रातको शस्त्रांसे लैस होकर दूसरों पर डाका डालते हैं, वे * दोगलाका अर्थ है, दो प्रकारका गला। पशु जीय शेर, चीते, सिंह आदि जानवरों में उत्पन्न होनेका स्वभावतः दो जातिके होते हैं-शाकाहारी और कम उपार्जन करते हैं । जो मायाचार करते हुए अपने मांसाहारी । कुत्ता म्वभावतः मांसाहारी है. पर मनुष्योंके सजातीयोंका उत्कर्ष नहीं देख सकते उन्हें नीचा मंसर्गसे अन्नभोजी भी हो गया। अन्नभोजी फल तथा दिखाने मारने और काटनको दौड़ते हैं वे कुत्तेका कर्म घासाहारी जीवांकी गणना शाकाहारियांम ही की मंचय करते हैं किन्तु जो उक्त प्रकारकामायाचार करते जाती है। कुत्ता मांसाहारियों के साथ माम भी ग्वा हार भी अपने मजातीयोंका सन्मान करते हैं। उन्हें लेता है और मनुष्योंके माथ अन्न भी ग्वा लेता है, काटने नहीं दौड़ते, पेट के लिए दूसरोंको खुशामद नहीं इस प्रकार परस्पर विरोधी दो भक्ष्य पदार्थों को अपने करते, दूसरोंके इशारोंपर नहीं नाचते भले बुरेका गलेक नीचे उतारने के कारण वह 'दोगला कहलाता म्वयं विवेक रखते हैं और आत्मनिर्भर रहते हैं. वे कहलाता है। सिंह नामक नामकर्मको उपार्जन करते हैं। समाजसे निवेदन 'अनेकान्त' जेन समाजका एक साहित्यिक और ऐतिहासिक सचित्र मामिक पत्र है । उसमें अनेक खोजपूर्ण पठनीय लेख निकलते रहते हैं। पाठकोंको चाहिये कि वे ऐसे उपयोगी मासिक पत्रके ग्राहक बनकर, तथा संरक्षक या सहायक बनकर उसको ममर्थ बनाएं । हमें दो सौ इक्यावन तथा एक मौ एक रुपया देकर संरक्षक व सहायक श्रेणी में नाम लिखाने वाले के वलदो सौ सजनोंकी पावश्यकता है। आशा है समाजके दानी महानुभाव एक सौ एक रुपया प्रदानकर सहायकश्रेणीमें अपना नाम अवश्य लिखाकर साहित्य-सेवामें हमारा हाथ बटायंगे। -मैनेजर 'अनेकान्त'
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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