SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 333
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ५२] अनेकान्त वर्ष १३ जन मिलना बन्द होगा कि वह तुरन्त दुम दवा कर सदा रोटीके टुकड़ों के लिये दूसरोंक पीछे पूछ हिलाता वापिस लौट आयगा । पर सिंह किसी दूसरेके भरोसे हुआ फिरा करता है और टुकड़ोंका गुलाम बना रहता शत्रु पर आक्रमण नहीं करना। आक्रमण करते हुए है। जब तक आप उसे टुकड़े डालते रहेंगे, आपकी वह कभी किसीकी महायताके लिए पीछे नहीं झांकना गुलामी करेगा और जब आपने टुकड़े डालना बन्द और शत्रसे हार कर तथा दुम दबा कर वापिस लौटना किये ओर आपके शत्रुने टुकड़े डालना प्रारम्भ किये तो वह जानता ही नहीं। वह 'कार्य वा माधयामि, देहं तभीसे वह उसको गुलामी शुरू कर देगा। वह 'गंगा वा पातयामि' का महामन्त्र जन्मसे ही पढ़ा हुआ होता गय गङ्गादाम और जमुना गये जमुनादास' की है। अपने इम अदम्य आत्मविश्वासक बल पर ही लोकोक्तिको चरितार्थ करता है। पर सिंह कभी भी वह बड़े से बड़े जानवरों पर भी विजय पाता है और रोटीका गलाम नहीं है। वह पेट भरने के लिये न जंगलका राजा बनता है। दूमरोंके पीछे पूछ हिलाता फिरता है और न कुत्तेक सिंह और खानमें दमरा बडा अन्तर विवेकका समान दुमरोंकी जठी हड़ियाँ ही चाटा करता है। है। कुत्ते में विवेककी कमी स्पष्ट है। यदि कहीं किसी सिंह प्रति दिन अपनी रोटी अपने पुरुषार्थसे स्वयं अपरिचित गली से श्राप निकले, काई कुत्ता आपको उत्पन्न करता है। मिहके विषयमं यह प्रसिद्धि है कि काटने दौड़े और आप अपनी रक्षाके लिए उसे लाटी वह कभी भा दुमकिं मारे हा शिकारका हाथ नहीं मारें तो वह लाठीको पकड़ कर चबानकी कोशिश लगाता । स्वतंत्र सिहकी तो जाने दीजिय, पर कटघरों करेगा । उस बेवकूफको यह विवेक नहीं है कि यह में बन्द मिहकि मामने भी जब उनका भोजन लाठी मुझे मारने वाली नहीं है। मारने वाला तो यह लाया जाता है तब वे भोजन-दाताकी और न तो सामने खड़ा हुआ पुरुप है, फिर मैं इम लकडीको क्या दीनना-पूर्ण नेत्रों से ही देखते है, न कुत्ते के समान चबाऊँ । दूमरा अविवेकका उदाहरण लीजिये-कुत्ते- पूछ हिलाते हैं और न जमीन पर पड़ कर अपना को याद कहीं हड़ीका टुकड़ा पड़ा हुआ मिल जाय नो उदर दिग्वाते हुए गिड़गिड़ाते ही हैं। प्रत्युत इमक यह उसे उठा कर चबायेगा और हडोकी तीखी नोको एक बार गम्भीर गर्जना कर मानी वे अपना विरोध से निकले हुए अपने ही मुखक मृनका स्वाद लेकर प्रकट करते हुए यह दिखात है कि अरे मानव ? क्या फुला नहीं समायेगा। वह समझता है कि यह खून तू मझे अब भी टुकड़ोंक गुलाम बनाने का व्यर्थ इम हडी मेंसे निकल रहा है। पर सिंहका स्वभाव ठीक प्रयाम कर अपने का दातार होने का अहंकार करता इससे विपरीत होता है। वह कभी हड्डी नहीं है ? कहने का अर्थ यह कि पराधीन और कठघरे में चबाता और न आक्रमण करने वालेको लाठी, बन्द सिंह भी रोटी का गुलाम नहीं है, पर स्वतन्त्र बन्दूक या भाला आदिको पकड़ कर ही उसे । और आजाद रहने वाला भी कुत्ता सदा टुकड़ोका चबाने की कोशिश करता है, क्योंकि उसे यह विवेक गुलाम ह । कुत्तका गुलाम हैं। कुत्तेको अपने पुरुपाथका मान नहा, पर है कि ये लाठी, बन्दूक आदि जड़ पदार्थ मेरा स्वतः सिंह अपने पुरुपार्थसे खूब पारांचत है और उसके कुछ बिगाड़ नहीं कर सकते; ये लाठी आदि मुझेमारने द्वारा ही अपना रोटी स्वयं उपार्जित करता है। वाले नहीं, बल्कि इनका उपयोग करने वाला यह मनुष्य इस उपयुक्त अन्तरके अतिरिक्त सिह और श्वान ही मुझे मारने वाला है। अपने इस विवेकके कारण .. कारण में एक और महान अन्तर है और वह यह कि कुत्ता वह लाठी आदिको पकड़ने या पकड़ कर उन्हें चबाने - 'जाति देख घुर्राऊ स्वभावी है। अपने जाति वालोंको की चेष्टा नहीं करता: प्रत्युत उनके चलाने वाले पर देखकर यह भौंकता, गुर्राता और काटनेका दौड़ता है। आक्रमण कर उसका काम तमाम कर देता है। इससे आधक नीचताकी और पराकाष्ठा क्या हो ___ सिंह और श्वानमें एक और बड़ा अन्तर गुरुपार्थ- सकती है ? पर सिह कभी भी दूसरे सिंहको देख का है । कुत्ते में पुरुषार्थकी कमी होती है, अतएव वह कर गुर्राता या काटनेको नहीं दौड़ता है, बल्कि जैसे
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy