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ॐ अहम
बस्ततत्त्व-सले
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विश्वतत्व-प्रकाशक
वाषिक मूल्य १)
एक किरण का मूल्य ।।)
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MAनीतिविरोषवसीलोकव्यवहारवर्तकःसम्प।
परमागमस्यबीज भुवनेकगुरुर्जयत्यनेकान्तः॥
वर्ष १३ किरण २
वीरसेवामन्दिर, १ दरियागंज, दहली भाद्रपद वीर नि० संवत २४८०, वि. संवत २०११
अगस्त १६५४
ममन्तभद्र-भारती
देवागम स त्वमेवाऽमि निदोषो युक्ति-शास्त्राऽविरोधिवाक । अविरोधो यदिष्टं ते प्रसिद्धन न वाध्यते॥६॥
हे वार जिन । ) वह निर्दोष-अज्ञान तथा रागादि दोषोंसे रहित बीनगग और सर्वज्ञ-श्राप ही हैं। क्योंकि श्राप युनि-शाम्बाऽविगंधिवाक् है-श्रापका वचन ( किमी भी तन्त्र-विषयम) युक्रि और शास्त्र विरोधको लिये हए नहीं है। और यह अविगंध इस तरह लक्षिन होता है कि आपका जो इष्ट है-माक्षादिनन्वरूप अभिमननेकान्तशामन है-वह प्रसिद्धस-प्रमाणसं अथवा पर प्रसिद्ध एकान्तस-बाधित नहीं है जब किन्दयगंका (कपिल-मुगनादिकका) जो सर्वथा नित्यदादअनिन्यवादादिरूपाकान्त अभिमत (इप्ट) है वह प्रत्यतप्रमागाम ही नहीं किन्न पर प्रसिद्ध अनेकान्नम भी बाधिन है और इसलिए उन सर्वथा एकान्नमतोंके नायकर्मिी कोई भी युनि-शाम्त्राविरोधियाक न होनस निषि एवं सर्वज नहीं है।' त्वन्मताऽमृत-बाह्यानां सर्वधेशान्त-वदिनाम । प्राप्ताऽभिमान-दग्धानां स्वेष्टं दृष्टेन बाध्यते ।७।।
'जो लोग आपक मनरूपी अमृतसे-अनकान्तात्मक-धम्तु-तत्वक प्रतिपादक श्रागम (शासन) से, जो कि दु.म्बनिवृत्तिलन परमानन्दमय मुनि-मुम्वका निमिन हनिम अमृतरूप है-बाहा है-उसे न मान कर उससे ह प रग्बने है- 'मर्वथा पकांनवादी है-स्वरूप-पररूप नथा विधि-निषेधरूप ममा प्रकाराम एक ही धर्म नियन्वादिको मानने एवं प्रनिपादन करनवाल है--और प्राप्ताऽभिमानसं दग्ध है- यम्तुन याप्त-मर्मत न होते हुए भी हम प्राप्त है। इस अहंकारसे भुने हुए अथवा जले हुए ममान है, उनका जो अपना इष्ट है-पर्वथा एकान्तात्मक अभिमत है-वह प्रत्यक्ष प्रमाणसं बाधित ह-प्रत्यसमें कोई भी वस्तु सर्वथा निन्य या अमिन्यरूप, मर्वथा एक या अनकरूप, सर्वथा भाव या अभावरूप इत्यादि नज़र नहीं श्राना-अधवा यो कहिये कि प्रत्यक्ष-मिन्द्व अनकान्नामक वस्तुनख्वक माथ मातान विरोधको लिय हुए हानक कारण श्रमान्य है।