SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 227
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १०८] अनेकान्त [वर्षे १३ हुए कल थे। अग्निलाने उन पात्रोंसे पुत्रोंकी भूख शांत गये। सुभंकरने द्वारिकामें बौद्ध पण्डितको जोता। शानप्रभाव की। श्लोक ३२.। इधर कुपित भूखे ब्राह्मणोंने अपने घर देख कामदेव (प्रद्युम्न) ने कन्याओं द्वारा उनकी पूजा को। जाकर पत्नियोंसे भोजन मांगा । पर उन्होंने निमन्त्रणकं कुछ काल बाद नेमिनाथ वहां पधारे उनसे यह जानकर कारण भोजन नहीं बनाया था मनः कहा ठहरिये-भोजन की द्वारिकाका विनाश होने वाला है। प्रद्युम्न आदिने दीक्षा अभी बना देती हैं। संयोगवश इसी समय भाग लगी ली। शुभंकर और विभकरने भी दीश लेकर परम पद प्राप्त और पण भरमें अग्निलाके घरको छोद नगरके सब घर जल किया। गये। तब वे ब्राह्मण धनधान्य व घरसे हीन होकर वादीचन्द्रकी अम्बिका कथाका सार यहाँ समाप्त होता है। भूखे और थके हुए सोमके वापिस पहुंचे। उन्होंने सोममे अब तुलनात्मक अध्ययनके लिए प्रभावक चरित्र को कथाका कहा कि तुम्हारी भार्या धन्य है और उसकी प्राप्तिसे तुम भी सार दिया जा रहा है। धन्य हो । मुनिदानके प्रभावसे तुम्हारा घर बच गया। यदि कणाद मुनिक स्थापित काशहिद नगरके सर्वदेव ब्राह्मण भोजन तैयार हो तो हमें दो । सोमने प्रागत सब ब्राह्मणोंको की देवी सत्यदेवी थी। उसकी पुत्री अम्बाकोटिनगरके सोमभर पेट भोजन कराया। फिर भी वह अक्षय भण्डार हो भट्टको विवाही गई। विभाकर और शुभंकर दो पुत्र हुए। गया (श्लोक ४३) एक समय नेमिनाथके शिष्य सुधर्मसूरिक आहावर्ती दो सोम शर्मा अपनी गुणवती पत्नीक सत्कार्यको याद कर मुनि अम्बिकाके घर पधारे, अम्बिकाने उन्हें प्राहार कराया। अब उसे मनाने को रैवताचलकी ओर चला | अग्निलाने इन इनने में ही सोमभट या पहुंचा और उसने बिना महादेवके उसे रैवताचलकी ओर आते दम्ब कि वह मारनेको आरहा भाग लगाये भाजनका स्पर्श क्या किया गया कहा । और है-अब क्या करूं। उसके हाथसं मारे जानेको अपेक्षा श्राक्रोशवश उयं मारा व दोनों पुत्रों का एक गोदमें और स्वयं मर जाना अच्छा है। वह झटस ऊँच शिखर पर चढ- एक अंगुली पकड़ कर रैवताचल पहुँची । नेमिनाथको वन्दन कर नेमिनाथका ध्यान करते हुए कूद पड़ी। जिनेश्वरक शुभ कर आम्रवृक्षके नीचे विश्राम किया। भूखे बच्चोंको अाम्रफल ध्यानसे मरकर वह अम्बिका नामक नमिनाथको यक्षिणी दकर पुत्रों सहिन शिखर पर झम्पापान किया। नेमिनाथके हुई। जिसके स्मरणसे आज भी विघ्न दूर होते हैं। म्मरणसे देवी हुई। (रनोक ४८) इधर विप्रका क्रोध शान्त हुआ। वह भी रैवताचलको उसका पति हूँढता हुश्रा वहां पहुंचा और उसे मरा हुआ आया। और उन्हें मग देख पश्चाताप करता हुआ स्वयं भी देख विषाद करने लगा। इतने में अग्निला देवीक रूपमें पुत्रो कुण्डमें पढ़ कर मर गया ' व्यंतर होकर देवीका वाहन सिंह को लिए हुए दिखाई दी। सामने कहा-घर चलो अग्निला बना। अम्बादवी अब भी गिरी पर नेमिनाथके भनोंको ने कहा कि मैं तुम्हारी पनि नहीं देवी हूं सोम पत्निक सहाय करती है। पुगतनप्रबन्धसंग्रहका प्रबन्ध संक्षिप्तमें यही कथा विरहसे दुःखी होकर झम्पापात करके मर गया और मर कर बतलाता है। उपयुक दिगम्बर और श्वेताम्बर कथाएँ एक सिंह रूप देवीका वाहन हो गया । अम्बिका उस पर बैठ कर सो ही हैं प्राचीन प्राधार अन्वेषणीय है। घूमती है। ' अम्बिकाकी प्राप्त मृतियों में दो बच्चे और सिंह है ही। सोमशर्माका भाई शिवशर्मा वहां आया तो दवीन इसलिये अब कथाका मिलान खूब बैठ जाता है। अपने दोनों पुत्रोंको धनके साथ सौंप दिया। पर पुत्र मन्द- तर समाजमें भी अंबिकाकी मान्यता काफी है इसबुद्धि वाले थे। इसलिये पढ़नेका प्रयत्न करने पर विद्वान् लिये उनके प्रन्योंमें भी अवश्य ही कुछ जीवनचरित्र होगा नहीं बन सके। व दुखित होकर पहाड़ पर पहुंचे और अम्बि- उसकी खोज कर तुलनात्मक अध्ययन किया जाना चाहिये। काको याद किया तो अम्बिकाने उन्हें शारदा मन्त्र दिया और अम्बिकाको प्राप्त मूतियों में सबसे प्राचीन कौन सी भादवा सुदी से 11 तक उपवास सहित जाप करनेसे और यहाँ प्राप्त है और वह कितनी पुरानी है। इन सब बुद्धिमान बनोगे कहा उन्होंने वैसा ही किया और विद्वान हो बातोंकी जानकारी भी ज्ञानबर्द्धक होगी।
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy