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________________ मुख्तार श्री जुगलकिशोरजीकी ७८वीं वर्षगाँठ प्रीति-भोजके साथ सम्पन्न जैन समाजके सुप्रसिद्ध ऐतिहामिक विद्वान और सबसे पुराने साहित्य-तपस्वी प्राचार्य श्री जुगलकिशोर जी मुख्तार की आयुके ७७ वर्ष पूरे होजाने पर गत मंगशिर सुदी एकादशी संवत् २०११, ता. ६ दिसम्बर सन् १९५४ को उनकी ७८वीं वर्षगांठ दि. जैन लालमन्दिर-स्थित वीरसवामन्दिरमें सानन्द मनाई गई, जिसमें प्रीतिभोजको भी सुन्दर प्रायोजन किया गया था। प्रीतिभोजके लिये देहलीके प्रायः सभी गण्यमान जैन बन्धुओंको आमन्त्रित किया गया था, जिनमेंसे अधिकांश बन्धुषोंने मके साथ भोजमें भाग लिया। अनेक सज्जन फूलोंको सुन्दर मालाएं लेकर पाए थे और उन्हें मुख्तारश्री के गले में डालकर उन्होंने उनके शतायु होनेकी कामना की थी। इस अवसरपर मुख्तारधी ने अपने लिये सुरक्षित रखे हुए देहली क्लॉथ मिलकं शेयर्समें से ३० शेयर अपने तीनो भतीजों-डा० श्रीचन्द बा. रिखबचन्द और बा. प्रद्युम्नकुमारको और ५० शयर्स बहन जयवन्तीको दिये । और इस तरह अपने वर्तमान परिग्रह से तीन हजारसे उपरके परिग्रहको कम किया । साथ ही, ४०) रुपये निम्न प्रकारस पत्रादिकांको प्रदान किये ५) श्री दिगम्बर जैन लालमन्दिर, ११) अंग्रेजी जैनगजट, ११) अनकान्त, ५) अहिंसावाणी और वॉइस अाफ़ अहिंसा, २) अहिसा (जयपुर), २) जैनमित्र, २) जैनसन्देश, २) पहियोंकि अस्पताल को । -परमानन्द जैन आचार्यश्री का दीक्षादिवस श्राचार्य श्री नमिसागरजीका ३०वां दीक्षा समारोह जैन कालेज बड़ौत ( मेन्ठ ) की पारस सानन्द सम्पन्न होगया। प्राचार्य नमिसागर जी चिरजीवी हों यही हमारी हार्दिक कामना है । समाधितन्त्र और इष्टोपदेश । वीर सेवामन्दिरसे प्रकाशित जिस 'समाधितन्त्र' ग्रन्थके लिये जनता असेंस लालायित थी वह ग्रन्थ इष्टोपदेशके साथ इसी सितम्बर महीनेमें प्रकाशित हो चुका है । आचार्य पूज्यपादकी ये दोनों ही आध्यात्मिक कृतियाँ अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं । दोनों ग्रन्थ सस्कृत टीकाओं और पं० परमानन्दजी शास्त्रीके हिन्दी अनुवाद तथा मुख्तार जुगलकिशोरजीको खोजपूर्ण प्रस्तावनाके साथ प्रकाशित हो चुका है । अध्यात्म प्रेमियों और स्वाध्याय प्रेमियों के लिये यह ग्रन्थ पठनीय है। ३५० पेजकी सजिन्द प्रतिका मूल्य ३) रुपया है। दुःखद वियोग !! यह लिखते हुए अन्यन्त दुग्व होता है कि लाला जुगलकिशोर जी फर्म धूमीमलधर्मदास जी कागजी चावड़ी बाजार के ज्येष्ठभ्राता दरोगामल जी का ना० १८ दिसम्बर को सवेरे बिना किसी खास बीमारी के स्वर्गवास होगया। यद्यपि उनके दिमागमें कुछ अर्सेसे खराबी थी परन्तु वे बहुत ही मिलनमार थे। और सबसे प्रति उनका प्रेमभाव था। वे अपने पीछे अच्छा परिवार छोड़ गए हैं। अनेकान्त परिवारकी हार्दिक भावना है कि दिवंगत आत्मा परलोकमें सुख-शान्ति प्राप्त करे और कुटुम्बीजनोंको इष्टवियोग जन्य दुःख सहनेकी शक्रि एवं सामर्थ्य प्राप्त हो। -परमानन्द जैन
SR No.538013
Book TitleAnekant 1955 Book 13 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1955
Total Pages386
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size24 MB
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