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अनेकान्त
किरण १२
दिये हुए हैं।
अच्छा संकलन है। इस ग्रन्थमें जहां अ. चन्दाबाईजीक पावन जीवन और प्रथम शास्त्र भण्डारमें ६०० हस्तलिखित ग्रंथ और उनकी महत्वपूर्ण सेवाओंपर प्रकाश डाला गया है वहां जैन- २२५ गुटक हैं । इस भण्डारमें सबसे पुराना सम्बत् १४०० संस्कृतिक विभिन्न अंगों, नारीजातिकी विविध समास्याओंके । का हस्तलिखित ग्रन्थ परमात्मप्रकाश है। भट्टारक सकल साथ उनकी कर्मस्थली विहारका गौरवर्ण इतिवृत्त भी पठनीय कीर्तिक 'यशोधर चरित्र' की प्रति भी सचित्र है जिसमें कथा सामग्री प्रदान करता है।
प्रसंगमें लगभग ३५ चित्र दिये हुए हैं। 'मालिषेणाचार्यका अभिनन्दन ग्रन्थ जहाँ उपयोगी बना है। वहां लोगोंकी २३८ पत्रात्मक विद्यानुवाद' नामक संस्कृतका एक सचित्र संकीर्ण एवं अनुदार मनोवृत्तिका स्मरण हो पाता है, जिस मूल ग्रन्थ भी मूल्यवान और प्रकाशनके योग्य है। शिल्पीने कठिन परिश्रम, प्रतिभा और कलाकं द्वारा उसे वर्त- दूसरे भण्डारमें २६२६ ग्रन्थ हैं जिनमें ३२४ गुटके भी मान मूर्तिमान रूप दिया है उसका नामोल्लेख भी नहीं है शामिल हैं। इन गुटकोंमें अनेक छोटे छोटे पाठों अथवा ग्रंथोंअस्तु, काश ! हमलोग इतने विवेकी, सहृदय और समुदार का अच्छा संग्रह पाया जाता है। इस शास्त्र भण्डारकी सबसे होते, तो शिल्पीकी कला, तथा प्रतिभाका अवश्य ही मूल्यां- बड़ी विशेषता यह है कि इसमें संगृहीत साहित्य साम्प्रदायि- . कन करने और साधुवाद देते। यदि किसी कारणवश उपमें कताकं स कुचित दायरसे उन्मुक्त है। इसमें व्याकरण छन्द, समर्थ न हो पाने, तो साधुवादमें उसका नामोल्लेख किये काव्य, कथा, दर्शन, संगीत, ज्योतिष, वैद्यक पुराण चरित बिना भी नहीं चूकने । पर इसमें वह भी नहीं है यह खेदका इनिहाम श्रादि विविध विषयोंके ग्रन्थोंका अच्छा संग्रह किया विषय है।
गया है । इस भण्डारकी लिखित निम्न प्रनियों दर्शनीय एवं प्रस्तुन ग्रन्थकी प्रेससम्बन्धी अशुद्धियों और वाइडिग प्राचीन है । मंवत् १३२६ का योगिनीपुर (देहली) में लिखा मादिकी त्रुटियोंपर लक्ष्य न दें, तो भी परिमाण तथा सामग्री हुश्रा प्राचार्य कुन्दकुन्दका पंचास्तिकाय, सम्बन १४६ की दृष्टिसे ग्रन्थ काफी मुन्दर बन गया है । गेट अब चित्ता विद्यानन्दाचार्यकी अष्टपहस्त्री । इन ग्रन्थोंक अतिरिक्त इस कर्षक है । ग्रन्थके अन्तमें आर्थिक सहयोग प्रदान करने वाली भंडारमें कुछ नूनन ग्रन्थ भी मिले हैं जिनके अस्तित्वका पता महिलाओंकी एक सूची भी लगी हुई है।
अभीतक दुसर भंडारास नहीं चला था। यहां उदाहरणक ४ राजस्थानके जंन शास्त्र-भंडारोंकी ग्रन्थ-सची तौर पर कुछ ऐसे ग्रंथोंके नामोंका भी उल्लेग्व करदना उचित (द्वितीय विभाग)-सम्पादक पं. कस्तूचन्द्रजी एम. ए. समझता हूँ। शास्त्री काशलीचाल । प्रकाशक-सेठ वधीचन्द्र गंगवाल मंत्री प्रवचनमार अमितगनि २ योगमार श्रुतकीति ३ प्रबन्धकारिणी कमेटी, श्री दि. जैन अतिशयक्षेत्र श्री महा- पंचरत्न परीक्षा अपभ्रंश, ४ नागकुमारिचरितपं० धर्मधीर, ५ वीर जी (जयपुर)। पृष्ठ संख्या सब मिला कर ४३६ . प्रद्युम्नचरित भ. सकलकीर्ति, ६ अत्याचार बसुनन्दि सजिल्द प्रतिका ८) रुपया।
(प्राकृत), पार्श्वनाथ चरित असवाल, अपभ्रंश, ८ णिकराजस्थान दिगम्बर जैन ममाजका केन्द्रस्थान रहा है. चरित और धन्यकुमार चरित यशः कीर्ति, १० संगो सार, जैनियोंका पुरातत्त्व और हस्तलिखित अपार ग्रंथराशि, अन- दामादर ११ उत्तरपुराणटिप्पण लिपि सम्बत् १५६६ १२ गिनत मूर्तियाँ, शिलालेख, कलापूर्ण मन्दिर उनकी गरिमा- विमलनाथ पुराण, रत्नचन्द्र हिन्दी। के प्रतीक हैं, राजस्थानके खण्डहरों और भूगर्भमें अभी प्रा- १३ सिद्धान्तार्थसार, कविरइधू । इस ग्रंथकी सं १९९३ चीन सामग्री दबी पड़ी है। राजस्थान जैनाचार्योंकी रचनाका वैशाख शुक्ला प्रयोदशी भोमवारको कुरु जांगल देशस्थ सुस्थान भी रहा है जिस पर फिर कभी विचार किया जावेगा। वर्णपथ (श्वनिपद) या सोनीपतमें पातिशाह बाबर मुगल
प्रस्तुत ग्रन्थका विषय उसके नामसे ही प्रकट है। इसमें काविलीके राज्यमें लिखी हुई १६ पत्रात्मक अपूर्ण प्रति मैने जयपुरके दो दिगम्बर जैन मन्दिरोंके शस्त्रभण्डारोंके अन्योंकी सन् ४७में बाबा दुखीचन्द्रजीके शास्त्रभंडारमें देखी थी, उसी सूची दी हुई है जिनके नाम है- पं. सूणकरणजी परसे उसका प्राचभाग और लेखक प्रशस्ति नोट की गई पांयाका शास्त्रभण्डार और दूसरा तेरह पंथियोंके दि. जैन थी। हर्षकी बात है कि इस उपलब्ध प्रतिसे जो १५५ पत्रामन्दिरका शास्त्रमंडार । दूसरे शास्त्र भण्डारमें अन्योंका (शेष टाइटिल के दूसरे एप पर)