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________________ वीरसेवा-मन्दिर ट्रस्टकी मीटिंग श्रीजिज्ञासापर मेरा विचार आज ता. २१-२-५४ रविवारको रात्रिके ७॥ बजेके अनेकान्तकी गत किरण में पंडित श्रीजुगलकिशोरजी बाद निम्न महानुभावोंकी उपस्थितिमें वीरसेवामन्दिर ट्रस्टकी मुख्तारने 'श्री जिज्ञासा' नामकी एक शंका प्रकट की थी और मीटिंगका कार्यप्रारम्भ हुआ। बाबू छोटेलालजी कलकत्ता उसका समाधान चाहा था, जिस पर मेरा विचार निम्न (अध्यक्ष)२५० जुगलकिशोरजी (अधिष्ठाता)३ बाबू जय- प्रकार हैभगवानजी एडवोकेट (मन्त्री) पानीपत, ४ ला. राजकृष्णजी 'श्री' शब्द स्वयं लक्ष्मी, शोभा, विभूति, सम्पत्ति, वेष, (पा. व्यवस्थापक) देहली, ५ श्रीमती जयवन्तीदेवी, ६ रचना, विविधउपकरण, त्रिवर्गसम्पत्ति तथा प्रादर-सत्कार और बाबू पन्नालालजी अग्रवाल, जो हमारे विशेष निमंत्रण आदि अनेक अर्थोंको लिये हुए है। श्री शब्दका प्रयोग पर उपस्थित हुए थे। प्राचीनकालसे चला आ रहा है। उसका प्रयोग कब, किसने १-मंगलाचरणके बाद संस्थाके मंत्री बाबू जयभगवान जी एडवोकट पानीपतने वीरसवामन्दिरका विधान उपस्थित और किसीक प्रति सबसे पहले किया यह अभी अज्ञात है। श्री शब्दका प्रयोग कभी शुरू हुआ हो, पर वह इस बातका किया, और यह निश्चय हुआ कि विधानका अंग्रेजी अनुवाद द्योतक जरूर है कि वह एक प्रतिष्ठा और आदर सूचक शब्द कराकर बा. जयभगवानजी वकील पानीपतके पास भेजा जाय, तथा उनके देखनेके बाद ला. राजकृष्णजी उमकी रजिष्ट्री है । अतः जिस महापुरुषके प्रति 'श्री' या 'श्रियों का प्रयोग हुआ है वह उनकी प्रतिष्ठा अथवा महानताका द्योतन करता करानेका कार्य सम्पन्न करें। २-यह मीटिंग प्रस्ताव करती है कि दरिया गंज नं० है। लौकिक व्यवहार में भी एक दूसरक प्रति पत्रादि लिखनम २१ दहली में जो प्लाट वीरसेवामन्दिरके लिये खरीदा हुआ। 'श्री' शब्द लिखा जाता है । सम्भव है इसीकारण पूज्यहै उस पर बिल्डिंग बनानेका कार्य जल्दीसे जल्दी शुरू पुरुषोंके प्रति संख्यावाची श्री शब्द रूढ हुआ हो। बुल्लकों किया जाय। और आर्यिकाओंको १०५ श्री और मुनियोंको १०८ श्री ३-अनेकांतका एक संपादक मंडल होगा, जिसमें निम्न क्यों लगाई जाती हैं। इसका कोई पुरातन उल्लेख मेरे ५ महानुभाव होंगे। श्री पं० जुगलकिशोरजी मुख्तार, बा. दग्वनेमें नहीं आया और न इसका कोई प्रामाणिक उल्लेख छोटेलालजी, बा. जयभगवानजी वकील, पं० धर्मदेवजी ही दृष्टिगोचर हुआ है। जैनली, और पं० परमानन्द शास्त्री। तीर्थकर एक हजार आठ लक्षणोंसे युक्त होते हैं। संभव -यह मीटिंग प्रस्ताव करती है कि सोमाइटीके है इसी कारण उन्हें एक हजार आठ श्री लगाई जाती हों। रजिष्टर्ड होने पर मुख्तार साहब अपने शयर्म, जो दहली मुनियोंको १०८, सुल्लकों और प्रायिकाओंको १०५ श्री क्लॉथ मिल्म और बिहार सुगर मिल के हैं उन्हें वीरसेवा - उनके पदानुमार लगानेका रिवाज चला हो। कुछ भी हो मन्दिरक अध्यक्षक नाम ट्रान्सफर कर देखें। पर इतना जरूर कहा जा सकता है कि यह पृथा पुरानी है। ५-यह मीटिंग प्रस्ताव करती है कि वीरसेवामन्दिर हां, एक श्री का प्रयोग तो हम प्राचीन शिलालेखों में प्राचार्यों, मरसावाका बिाल्डगक दाक्षणका श्रार जा जमान मकान भट्टारकों, विद्वानों और राजाओंके प्रति प्रयुक्त हुआ बनाने के लिये पड़ी हुई है, जिसमें दो दुकानें बनानेके लिये न जिम्मका प्रस्ताव पहलेसे पास हो चुका है उसके लिये दो नारायना (जयपुर) के १८वीं शताब्दीके एक लेखमें हजार रुपया लगाकर बना लिया जाय । प्राचार्य पूर्णचन्द्र के साथ १००८ श्री का उल्लेख है। परन्तु ६-यह मीटिंग प्रस्ताव करती है कि पत्र व्यवहार और इससे पुराना संख्यावाचक 'श्री' का उल्लेख अभी तक नहीं हिसाब किताबमें मिति और तारीख अवश्य लिखी जानी मिला है। -खुल्लक सिद्धिसागर चाहिये । ७-यह मीटिंग प्रस्ताव करती है कि हिसाब किताबके * श्रीवेषरचनाशोभा भारतीसरलद्रुमे। लिये एक क्लर्ककी नियुक्तिकी जाय । लक्ष्म्यां त्रिवर्गसंपत्तौ वेषोपकरणे मतौ॥ -मेदिनीकोषः । -यह मीटिंग प्रस्ताव करती है कि अनेकान्तका नये वर्षका मूल्य ६) रुपया रक्खा जा । x कितने ही श्वेताम्बर विद्वान् अपने गुरु प्राचार्योंको १००% जय भगवान जैन मंत्री, वीरसेवामन्दिर श्री का प्रयोग करते हुए देखे जाते हैं। -सम्पादक
SR No.538012
Book TitleAnekant 1954 Book 12 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1954
Total Pages452
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size27 MB
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