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अनेकान्त
[ वर्ष ४०
रहते है और बेज़रूरी काम भ्रम और सामनोंकी वी करने लगते हैं।
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पाता है, न कायोंका विकास हो पाया है, न चिकिस्सा की भरपूर व्यवस्था है, न सबके पास बाटाबायके भरपूर साधन है, इत्यादि असीम काम पड़ा है, इसलिए कामके नाव बेकारी नहीं है। एक तरफ काम पड़ा है, दूसरी तरफ कामकी सामग्री पड़ी है, तीसरी तरफ काम करने बाले बेकार बैठे हैं, इन तीनोंको मिलानेकी कोई धार्षिक व्यवस्था नहीं है यही बेकारीका कारण है जिससे असीम उत्पादन रुका पड़ा है और देश गरीब है।
३. कामचोरी - काम करने वाले मौकरोंमें उत्तेजनाका कोई कारण न होने से वे किसी तरह समय पूरा करते हैं कम-से-कम काम करते हैं, किसी न किसी बहानेसे समय बर्बाद करते है, मन्द गतिसे काम करते हैं इसलिये उत्पादन कम होता है। कामका ठेका दिया जाय पा मौकरोंकी हिस्सेदारकी तरह आमदनी में हिस्सा दिया जाब तो इस तरह समयको बर्बादी न हो, न मन्दगति से काम हो । उत्पादन बड़े इसलिए किसी न किसी तरहका संधीकरण करना जरूरी है।
४. असहयोगक्तिवादी धार्थिक व्यवस्था होनेसे काममें दूसरोंका उचित सहयोग नहीं मिलता इसलिए कार्य ठीक ढंगले और ठीक परिमाण में नहीं हो पाता, इसलिए उत्पादन काफी घट जाता है। जानकारोंकी सलाह न मिल सकना, यातायातके ठीक साधन न मिलना, या जरूरत समको जानेमे काफी महंगे और पूरे साधन मिलना, मजदूरोंका अड़कर बैठ जाना आदि अस हयोगके कारण उत्पादन घटता है। व्यक्तिवादका यह स्वाभाविक पाप है।
५. वृथोत्पादकश्रम-श्रम करने पर उत्पादन तो होता है पर वह उत्पादन किसी कामका नहीं होता या उचित कामका नहीं होता। एक आदमी काफी मेहनत करके दवाइयाँ बनाता है, पर दवाई किसी कामकी नहीं होती सिर्फ किसी तरह दवाई बेच कर पेट पान दिया जाता है। इसी तरह कोई बेकार जिसने बना कर पेट पाखने लगता है, ये सब पृथोत्पादक श्रम हैं इनसे मेहनत तो होती है पर कुछ लाभ नहीं होता बल्कि सामग्री बेकार नष्ट हो जाती है। व्यक्तिवादकी प्रधानताओं अब आदमीका कोई धन्धा नहीं मिलता वह ऐसे इथोत्पाएक अम करके गुजर करने लगता है काम पड़े
६. अनुत्पादकश्रम – जिसमें मेहनत तो की जा पर उससे उत्पादन या काम कुछ न हो वह अनुत्पादक भ्रम है।
बीमारीका इलाज करने के लिए जप, होम, बलिदान, परिक्रमा तथा पूजा आदि में धन और शक्ति बर्बाद करना या पानी बरसाने आदिके लिये ऐसे कार्य करना, जिससे शारीरिक शक्तिका कोई उपभोग नहीं ऐसी शारीरिक शक्ति बढ़ानेके लिये मेहनत करना जैसे पहलवानी आदि शांतिकी ठीक योजनाओं के बिना विश्व शान्ति यज्ञ करना, आदि अनुत्पादक अम हैं ।
मनुष्यजातिकी दृष्टिसे सैनिकता के कार्य भी अतुस्पादक श्रम हैं। फौजी बजटका बढ़ना भी देशकी गरीबीको निमन्त्रण देना है ।
स्वास्थ्यके लिये व्यायाम करना, मनकी शांतिके जिये प्रार्थना आदि करना, अनुत्पादक भ्रम नहीं है। क्योंकि जिस शारीरिक और मानसिक नामके जिये ये
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किये जाते है उस जानके वे उचित उपाय है। अनुत्पा दक अममें ऐसे अनुचित कार्य किए जाते हैं जो अपने लक्ष्यके उपाय साबित नहीं होते । अमुपादमश्रममें देशका उत्पादन होता ही नहीं किन्तु उत्पादनके निमित्त धन-जन-शक्तिकी बर्बादी होती है।
७. पापमचोरी डकैती हुधा आदि कार्य जो अम किया जाता है इससे पाप होता ही है पर देश में उत्पादन कुछ नहीं बढ़ता। जिनका धन जाता है ये तो गरीब होते ही है पर जिन्हें धन मिलता है वे भी मुफ्तके धनको उड़ा डालते है। इस तरह के पापकार्य जिस
देश में जितने अधिक होंगे देशकी गरीबी उतनी ही बढ़ेगी।
८. अल्पोत्पादकश्रम-जिस भ्रम से जितना पैदा होना चाहिये उससे कम पैदा करना, अर्थात् यो कार्य अधिक लोगोंका लगना था अधिक शक्ति लगना पाक है। जैसे
जो कार्य मशीनों सरिये अधिक मात्रामें पैदा किया जा सकता है उसे कोरे हाथोंसे करना । इससे अधिक आदमी अधिक शक्ति खर्च करके कम पैदा कर पायेंगे। जैसे मिलोंकी अपेक्षा हायसे सूत कातना । इसमें अधिक आदमियोंके द्वारा बोदा कपड़ा पैदा होता है, कई ज्यादा