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किरण १०]
श्रीबाहुबलीकी आश्चर्यमयी प्रतिमा
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रखा है। यह सुनकर बाहुबलीको ज्योति-मार्ग मिल गया चरित्र मामक संस्कृत काव्यके अनुसार राचमालकी राजऔर उन्हें केवन-शान हो गया।
मभामें चामुण्डायने एक पथिक-व्यापारीसे यह सुना कि यह प्रतिमा इन्ही बाहुबलीजी की है। उत्तरभारतमें उत्तरमें पोदनपुरी स्थानपर भरतद्वारा स्थापित बाहुबलीकी बह इसी नामसे विख्यात है। परंतु दक्षिणमें यह गोम्मटेश्वर एक प्रतिमा है। उसने अपनी माता समेत उस प्रतिमाके नामसे प्रसिद्ध है। प्राचीन ग्रंथों में गोम्मटेवर नामका प्रयोग दर्शनका विचार किया। परन्तु. पोदनपुरी जाना अत्यन्त नहीं मिलता। ऐसा विश्वास किया जाता है कि यह नाम
दुक्कर समझ कर एक सुवर्णवाणसे पहादीको बेदकर प्राचार्य नेमिचन्द्र पिबाम्त-चक्रवती द्वारा दिया हुआ है।
रावण द्वारा स्थापित बाहुबलीको प्रतिमाका पुनरूदार मूर्तिके निर्माता चामुण्डरायका एक अन्य नाम गोम्मटराय किया। देवचन्द्र द्वारा रचित कनाडी भाषाकी एक नवीन था, कादो में गोम्मटका अर्थ होता है कामदव', यह नाम पुस्तक में भी धोरे अन्तरसे यही कथा भायी है इसके ही वस्तुतः काल भाषाका है। गोम्मटराय चामुखराब)
अनुसार इस प्रतिमाके सम्बन्धमें चामुण्डरायकी माताने के पूज्य होने के कारण बाहुबली गोम्मटेश्वर कहलाए होंगे।
पमपुराणका पाठ सुनते समय यह सुना कि पौदनपुरीमे दक्षिणी भाषाका शब्द होने के कारण इसका वहाँ चलन हो
बाहुबलीकी प्रतिमा है। इस कथासे भी यह प्रतीत होता
है कि चामुण्डरायने यह प्रतिमा नहीं बनवाई अपितु इस चामुण्डराय
पहाड़ पर एक प्रतिमा पहलेसे विद्यमान थी, चामुण्डरायने चामुण्डराय गंगवंशके राजा राममायके मन्त्री और
शिल्पियोंपे इस प्रतिमाके सब अंगोंको ठीक ढंगसे सुख सेनापति थे । इससे पूर्व चामुण्डराय गंगवंशीय मारसिंह
बनवाकर सविधि स्थापना और प्रतिष्ठा कराई। प्रवणद्वितीय और उनके उत्तराधिकारी पांचाबदेवके भी मन्त्री
बेलगोलमें भी कुछ इसी प्रकारकी लोक-कथाएं प्रचलित सयुके थे। पांगदेवके बाद ही राचमन गद्दी पर बैठे
हैं और उनसे उपरकी किंवदन्तियोंक अनुसार प्रतीत थे। मारसिंह द्वितीयका शासनकाल चेर, चोल, पाययों
होता है कि इस स्थान पर एक प्रतिमा थी जो पृथ्वीसे पर विजय प्राप्तिके लिए प्रसिद्ध है। मारसिंह प्राचार्य
स्वतः निर्मित थी। अजितसेनके शिष्य थे और अपने युगके बड़े भारी योद्धा थे और अनेक जैनमन्दिरीका निर्माण कराया था। राचमन
: प्रतिमा-निमोण काल भी मारसिंहकी भांति जैनधर्म पर श्रद्धा रखते थे।
जिस शिलालेख में चामुण्डरावने अपना वर्णन किया चामुण्डराय तीन तीन नृपतियोंके समय अमात्य रहे। है उसमें केवल अपनी विजयोंका उस्लेख किया है किसी इन्हींके शौर्य के कारण ही मारसिह द्वितीय वज्जन, गोनूर धार्मिक कृत्यका नहीं। यदि मारसिंह द्वितीयके समय उसने
और उच्छंगीके रणक्षेत्रों में विजय प्राप्त कर सके । राचमल्ल प्रतिमाका निर्माण कराया होता तो स शिलालेख में के लिए भी उन्होंने अनेक युर जीते । गोविन्दराज, कोंडुअवश्य इसका निर्देश रहता। मारसिंह द्वितीयकी पल राज आदि अनेक राजाओंको परास्त किया। अपनी योग्यता २०५ई. में हुई । चामुण्डरायने अपने अन्य चामुबहरामके कारण इन्हे अनेक बिरुद प्राप्त हुए । श्रवणबेलगोनके पुराणमें भी इस प्रतिमाके सम्बन्धमें कोई निर्देश नही शिलालेखामें चामुण्डरायकी बहुत प्रशसा है। इन बेखोंमें किया। इस पुस्तकका रचनाकाई.है। राजमा अधिकांशतः युद्धोंमें विजय प्राप्त करनेका ही उल्लेख है। द्वितीयने १८ ई. तक राज्य किया । इसलिए ऐसा प्रतीत परन्तु जीवनके उत्तरकाखमें चामुण्डराय धार्मिक कृत्योंमें होता है कि इस प्रतिमाका निर्माण १७० और १t. प्रवृत्त रहे । वृद्धावस्थामें इन्होंने अपना जीवन गुरु भजित- के बीच हुमा होगा। सेनकी सेवामें ब्बतीत किया।
बाहुख-चरितमें पाये एक रखोकके अनुसार चामचामुण्डराय द्वारा निमित इस प्रतिमाके सम्बन्धमें डरायने बेबगुल नगरमें कुम्भलग्न में रविवार चैत्र शुक्ल अनेक प्रकारको किंवदन्तियाँ प्रचलित हैं। बाहुबलि- पंचमीके दिन विभव नाम कविक पदावाम संवत्सरके * यह सबयन श्वेताम्बर-माभ्यता के अनुसार है। प्रशस्त सुगशिरा नपत्र में गोमटेश्वरकी स्थापना की।
इस खोकमें निर्दिष समय पर अबतक ज्योतिष