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किरगण ]
दोहाणुपेहा
[३०३ सोहं सोहं जि हउँ, पुणु पुणु अप्पु मुणेइ । जो सुहु-असुहु विवज्जयउ, सुद्ध सचेयण भाउ । मोक्खहं कारणि जोइया, अण्णु म सो चितेइ ॥३५ । सो धम्मु वि जाणेहिं जिय, णाणी बोल्लहि साहु ॥४२॥ धम्मु मुणिजहि इक्कु पर, जइ चेयण परिणामु । घेयहं धारणु परिहरिउ, जासु पइट्टइ भाउ । अप्पा अप्पउ झाइयइ, सो सासय-सह-धामु ॥३६ सो कम्मेण हि बंधयई, जहिं भावइ तहिं जाउ ।।४३ ताई भूप विडवियो, णो इत्यहि (णिव्वाणु। सो दोहउ अप्पारण हो, अप्पा जो ण मुणेइ । तो न समीहहि तत्तु तुई, जो तइलोय-पहाणु ॥३७ सो झायंत हं परम पउ, जिणवरु एम भणेइ ॥४४ हत्य थ दुट्ठ जु देवलि, तहि सिव संतु मुणेइ । वउत्तउ-रिणयमु करत यहं जो ण मुणइ अप्पाणु। मूढा देवलि देउ णवि, भल्लउ काई भमेइ ॥३८ सो मिच्छादिहि हवइ बहु पावहि णिव्वाणु ।।४५ जो जाणइ ति जाणियउ, अण्णु ण म जाणइ कोइ। जो अप्पा णिम्मलु मुणइ, वय-तव-सील समाणु । घंधइ पडियउ सयल्लु जगु एम भणंति हु जोइ ॥३॥ सो कम्मक्खउ फुडु करइ, पावइ लहु णिव्वाणु ॥४६ जो जाणइ सो जाणियई यहु सिद्धतहं सारु । ए अणुवेहा जिण भणय, णाणी बोलहिं साहु । सो झाइजइ इक्कु पर, जो तइलोयह सारु ॥४०॥ ते ताविजहिं जीव तुहुँ, जइ चाहहि सिव-लाहु ॥४७॥ अज्झवसाण णिमित्तइण, जो बंधिज्जइ कम्मु । सो मुच्चिज्जइ तो जिपरु, जइ लब्भइ जिण धम्मु ।।४१
इति अणुवेहा
वीरसेवामन्दिरका नया प्रकाशन पाठकोंको यह जानकर अत्यन्त हर्ष होगा कि प्राचार्य पूज्यपादका 'समाधितन्त्र और । इष्टोपदेश' नामकी दोनों माध्यात्मिक कृतियों संस्कृतटीकाके साथ बहुत दिनोंसे अप्राप्य थीं, तथा मुमुक्षु प्राध्यात्म प्रेमी महानुभावोंकी इन ग्रन्थोंकी मांग होनेके फलस्वरूप वीरसेवामन्दिरने 'समाधितन्त्र और इष्टोपदेश' नामक ग्रन्थ पं० परमानन्द शास्त्री कृत हिन्दी टीका और प्रमाचन्द्राचार्यकृत समाधितन्त्र टीका और प्राचार्य कल्प पं. माशाधरजी कृत इप्टोपदेशकी संस्कृतटीका भी साथमें लगा दी है। स्वाध्याय प्रेमियों के लिये यह प्रन्थ खास तौरसे उपयोगी है। पृष्ठ संख्या सब तीनसौ से ऊपर है । सजिन्द प्रतिका मूल्य ३) रुपया और बिना जिन्दका २) रुपया है। वाइडिंग होकर ग्रन्थ एक महीनेमें प्रकाशित हो जायगा। ग्राहकों और पाठकोंको अभीसे अपना मार्डर मेज देना चाहिये।
मैनेजर-वीरसेवा मन्दिर,
१ दरियागंज, देहली