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वंगीय जैन पुरावृत्त
(श्री बाबू छोटेखालजी जैन कलकत्ता)
(गत किरणसे आगे) विभिन्न जातियाँ
रचना इसी समय हुई थी। ब्राह्मणोंने वेदविरोधी जातियोंकी महाभारत, मनुस्मृति देवमस्मृति, ब्रह्मवैवर्तपुराण,
उत्पत्तिके सम्बन्ध में कल्पनासम्मन नाना कथाएँ रचकर विष्णुपुराण आदि थामें प्रक्षिप्त श्लोक लगाकर या उन्हें
ग्रन्थों में प्रक्षिप्त कर दी । गुप्त नृपति बौद्ध और जैनधर्मके परिवनित या परिवदित कर ब्राह्मणांने जै..और बोडोंके विद्वेषी नहीं थे। इसी समय वज्रयान, महजयान, मन्त्रयान प्रति अपना विद्वेष खूब साधन किया है और जो जो प्रभृति तांत्रिक बौद्धधर्मका प्रवर्तन हुआ और वंगदेशके जातियों जैन और बौद्धधर्मकी अनुयायी थीं उनको वृषत्व
जनमाधारणमें इनका विशेष प्रचार हुश्रा। यह तांत्रिक और शूदभावापन्न घोषित कर दिया है इस सभी इतिहास
बौद्धधर्मका अभ्युदय, बौद् और हिन्दूधर्मके समन्वयका लेखक स्वीकार कर चुके हैं। भारतवर्ष में कितनी ही
फल मालुम होता है। जातियां ऐसी है जिनका अतीत मौरवान्वित है और हीन
महामहोपाध्याय हरप्रमाद शाम्बीने लिखा है कि न होते हुए भी वे अपने को हीन समझने लगी हैं किन्तु भारतवर्ष पूर्वाङ्गामें ही बोधर्मने सापेक्षा अधिक ज्यों २ पुरानन्य प्रकाश में प्राता जाता है ये जानियाँ अपनी
प्राधान्य लाभ किया था। हुयेनत्मांगने सप्तम शताब्दीके महाननाको ज्ञानकर अपने विलुप्त उच्च स्थानको प्राप्त
प्रथमार्द्ध में वंगदेशमें ८-७ संघारामों में .१५०.. भिक्षु
देम्बे थे। एतद्भिन जैनधर्मके भिक्षु भी थे। भिनुप्रांके ___ + महामा बुद्धके बहुत पहले बंगाल में वेदविरोधी
लिये नियम था कि तीन घरों में जानेके बाद चतुर्थगृह में जैनधर्म का प्रभाव बहुत बढ़ चुका था। २३वें तीर्थकर
नहीं जा सकते हैं। और एक बार जिम घरमें भिक्षा पा पाश्वनाथ ई. पू. ५७. अब्दमें जन्मे थे । इन्होंने वैदिक चुक ह उसम फिर एक माम तक नहीं जा सकते है। कर्मकारा और पंचाग्नि-साधन प्रभृति की निन्दा की थी। सुतरा एक
सुतरां एक बतिका प्रतिपालन करनेके लिये अन्ततः १०. काशीम मानभूम पर्यत सुविस्तृत प्रदेशमें अनेक लोग घर गृहस्थाक हाना चाहिये । इस हिमाचम नन्कालीन उनके धर्मोपदेशमं विमुग्ध हो उनके वशीभूत हो गये थे।
पंग देशवः । नगरी में ही एक कोटि बौद्ध मंग्या हो पाव नाथी पूर्ववर्ती २२ तीर्थकरांने राजगृह, चम्पा रानकी जान
जाती है नब मारे कंगदेशमें ना और भी अधिक होगे राजधानी बिहपुर और सम्मेदशिम्बरम याज्ञकोके विरुद्ध इमम मन्द
हममें मन्देह नहीं है। अन इनकी प्रधानता इससे म्पर जैनधर्म का प्रचार किया था। अंतिम तीर्थ र श्रीमहावीर- हो जाती है। म्वामी युद्धदवकं प्रायः मममार्मायक या अल्प पूर्ववर्ती बंगलार पुरावृत्त (पृष्ठ १६ में लिम्बा है कि थे। इन्होंने १२ वर्ष राददशमें रहकर असभ्य जङ्गली 'ईस्वी चतुदंश शताब्दीमें भी रंगदेशमै बौद्ध और जैनोंका जानियामें धर्मोपदेश प्रदान किया था। उस समय वेद अत्यन्त प्रभाव था।' विरोधी जैन और बौद्धमताने पौंडदशमें और तरपाव वर्ती यही कारण है कि अंग बंग, कलिग सौराष्ट्र और देशामें विशेष प्रतिष्ठा प्राप्त की थी। सम्राट विम्बरमारके मगर्दिशमं तीर्थयात्रा व्यतीन अन्य उद्देश्यसे गमन करने ममयमे मौर्यवंशक शेष राजा बृहदथके समय पर्यंत साढ़े पर पुनः संम्कार अर्थात् प्राश्चित्त कर्तव्य मनुसंहिता + तीनमौ वर्षों तक मगध पौडबंगादि जनपद समूह बौद्ध में लिग्वा गया। इसी प्रकार शूलपाणि और देवजम्मृतियों
जैन प्रभावान्वि हो रहे थे। तत्पश्चात् गुप्ताक DINonery ol Living Buldhi-in m प्रभाव-कालमें हिन्दू धर्मका पुनरभ्युदय हुमा । ऐतिहासिक Bengal. गणोंने थिर किया है कि अष्टादश पुगणोंमें अनेकोंकी
___ + अंग वंगलिगेपु सौर ष्ट्र मगधेपु च
. +वंगे क्षत्रिय पुण्डजाति-श्री मुरारीमोहन सरकार पृ०॥ तीर्थयात्रा विना गच्छन्-पुनः संस्कारमहति ॥