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किरण १२) फतेहपुर-शेखावाटी) के जैन मूर्ति-लेख
[४०५ दोलीके बादशाह मुवारिकशाहके मन्त्री बतलाये गये श्री पार्श्वनाथ दि० जैनमंदिरके कुवेका लेख हैं, वे भी अप्रवाल थे। परन्तु उस ग्रंथमें कुलादि परिचय-विषयक जो नामादि दिये हैं, उनमें कुछ भिन्नता
यह स्वर्गीय सेठ गुरमुखरायजीकी धर्मपत्नी सेठ
सुम्बानंद निहालचंदकी माताने बनवाया। दिखाई देती है दूसरे अपने मन्त्रित्वकालमें वे देहली रहे हैं, परन्तु विशेष सामग्रीके अभावमें अभी प्रामा
दि. जैनियोंके कुवेका लेख णिक रूपसे यह बतलाना कठिन है कि प्रस्तुत दोनों
श्री भगवतजी सत्य सं० १७१६ वर्षे मिति जेष्ठ सुदि हेमराज एक ही व्यक्ति हैं, या भिन्न-भिन्न । इसमें
३ राज्य श्री दिवान दीनदारखों गुरु श्री १०८ श्रीभट्टारक सन्देह नहीं कि, दोनोंका नाम एक है। पाण्डवपुराण
श्री महीश्चन्द्रजी व सकल श्रावक फतेहपुरका पुन्य निमित्त में उनके ज्येष्ट पुत्रका नाम 'मोल्हण' बतलाया गया
जल थानक करायो सर्वको शुभकारक भवत ।' है जबकि 'फतेहपुर परिचय' नामक पुस्तकमें उनका नाम तोणमल्ल मिलता है, यह सभावना जरूर है कि दोनों व्यक्ति हिसार निवासी हैं, पर पर्याप्त सामग्री- ॐ नमः सिद्धेभ्य विदितहो कि यह स्थान कूप पूर्व के अभावमें अभी उन्हें एक बतलाना संगत नहीं १०८ श्री महीश्चन्द्रजीके समयमें सकल पंचाचाबकान जंचता।
कराया थो पुनः जीर्णोद्वार वा नवीन तिवारी सं० १९५६ इस तरह फतेहपुर समुन्नत शहर है, वहाँ अनेक भादवा सुदि ५ को तैयार हुभा । महाराव राजाजी कवि और सुन्दरदासजी जैसे वेदांती संत हुए हैं। और श्री माधोसिंहजी बहादुरके समय श्रावक रामसामन अनेक धनीमानी सज्जन भी हुए हैं। उनमें सेठ गुरमुग्वराय अग्रणी होकर तैयार कराओ मर्षको शुभकारक सुखानन्दजीका नाम तो खास तौरसे उल्लेखनीय है जो भवतुः। फतेहपुर के नियासी थे। और जिन्होंने अपने जीवनमें
पा० श्री दि० जैन मन्दिरके मूर्ति-लेख अनेक धार्मिककार्य सम्पन्न किये हैं। बम्बईकी विशाल धर्मशालाभो उन्हींकी बनाई हुई है।
नोट :-इन लेखोंमें भाषा सम्बन्धि अनेक अशुद्धियाँ फतेहपुरके सज्जन बा.गिनीलालजीने मेरी प्रेरणासे
हैं जिन्हें मौलिकताकी दृष्टिसे सुधारा नहीं गया है। निम्न मूर्तिलेख और 'परिचय' पुस्तक भिजवाई थी, (१):०६६ माध सुदि ११ गुरौ श्री मूलमंधे पद्मनन्दिजिसे मैं अनकाशवश अनेकान्तमें न दे सका था, वे अब
देवा माथुर वंशे साः पद्मनिमिदास रा? दिये जारहे हैं । इसके लिए मैं उनका प्रभारी हूँ।
राजा नवाब प्रतिष्ठाया माप्ति । आशा है दूसरे सज्जनोंको भी इससे प्रेरणा मिलेगी
प्रतिमा-सप्तधातुकी २४ तीर्थङ्कराकी इन्द्र कि वे भी अपने-अपने स्थानोंके मूर्तिलेख उतरवाकर
बाई तरफका खंडित (हिसारसे श्री तोयमलजी अनेकान्तमें प्रकाशनार्थ भेजें।
साथ लाये थे)।५xsi श्रीपार्श्वनाथ दि० जैनमंदिरके शिलालेख (२) ११३ बैसाम्य सुदि ६ भागेके अक्षर पर नहीं गई ।
कालो.. ... "पुर. ... "पाटण । संवत् १५०६ मिती फागुन सुवि २ साह श्रावक
प्रतिमा-चन्द्रप्रभुकी काले पाषाणकी (हिसार तोहण देवराकी नीव डलवाई। मंवत १७७० मिती फागुन
से तोणमनजी साथ लाये । )। ६xn सुदि २ भहारक श्री खेमकीर्ती तत्प भट्टारक सहस कीर्ती तत्प भहारक महीचन्न तत्पट्ट भट्टारक श्री (३
१९५५ भादो ..... आगे के पचर सब घिस गये। देवेन्द्रकीर्ती तत माम्नाय चौधरी सषमल तस्य पुत्र
प्रतिमा पार्श्वनायको सप्तधातुकी ॥३॥m चौधरी रुपचंद वा सकल पंच श्रावक मिलकर देहराकी (४) १५२५ मूलसंघसा- वि०प० पराभान न सुतनुरगो? मरम्मत कराई।
प्रतिमा पारर्वनाथ धातु की।x॥