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अनेकान्त
किरण ११]
उम्साहके साथ संस्थाके कार्य में लगे हुए हैं। अतः वीर- (३) जो कार्य परिचयमें अधूरे दिखलाये गये है:मिसंवत् २४७के प्रारंभके साथ-साथ इस संस्थाके जैसे जैन लक्षणावली'. 'जैनग्रन्थसूची' प्रादि-उन्हें पूरे यौवनकालका भी मारम्भ समझिये । प्राशा है अपने इस कराकर प्रेसमें जानेके योग्य बनाना और फिर प्रकाशमें लाना यौवनकालमें संस्था सविशेष रूपसे अपने उद्देश्योंको पूरा ४) उपयोगी तथा आवश्यक प्रथोंसे लायब्ररीकी करने में समर्थ होगी। उसे दिली जैसे केन्द्र-स्थानमें अनेक वृद्धि करना, जिसमें बड़े मानेपर शोध-खोजका कार्य सहयोगी सज्जन प्राप्त होंगे और वह समाजकी एक आदर्श
। समाजका एक आदर्श सम्पन्न हो सके। संस्था बन कर रहेगी।
(५) 'जैनतीर्थ-चित्रावली' नामकी एक ऐसी पुस्तक वीरसेवामन्दिरके भावी कार्यक्रमकी रूपरेखा तैयार कराकर प्रकाशमें लाना जिसमें जैनतीर्थों के प्रामाणिक
वीरसेवामन्दिरके सामने 'अनेकान्त' को अधिक समु- इतिहासके साथ मुख्य-मुख्य मंदिर-मूर्तियों, चरणपादुकाओं मत एवं लोकप्रिय बनानेके अलावा जो खास-खास काम नथा अन्य किसी स्थान या वस्तुविशेषके चित्रोंका सुन्दर करनेको पड़े हुए हैं और समाजके सहयोगको अपेक्षा रखते संकलन रहे। हैं उनकी संक्षिप्त रूप-रेखा इस प्रकार है:
(६) संस्थाकी एक बड़ी पूरी रिपोर्ट तय्यार करके उमे (१) उस ज़मीन पर बिलिंडगके निर्माणका कार्य जो शीघ्र प्रकाशित करना । अभी खरीदी गई है। विना बिल्डिंगके संस्थाकी लायब्ररी (6) माहित्यिक अनुसंधान के लिये निजी स्टेशन बैगनको सरसावासे दिल्ली नहीं लाया जा सकता और बिना लाय- का प्रबन्ध करके सारे भारतवर्षका भ्रमण ( दौरा) करना परीके शोध-खोज तथा निर्माण प्रादिका यथेष्ट काम नहीं और उसके द्वारा समस्त शास्त्र-भंडारोंका निरीक्षण करके बन सकता। अभी ला० राजकृष्णजीने अपनी धर्मशाला
स मान अपनी शाला अनुपलब्ध ग्रंथांका पता लगाना तथा यह मालूम करना कि के दो-तीन कमरे कामचलाऊ रूपमें एक सालके लिये दिये किस ग्रंथकी अति प्राचीन एवं सुन्दर शुद्ध प्रति कहां पर है हैं, जिनमें लायबरीके लिये पूरा स्थान नहीं है, अतः एक और ऐसी अनुपलब्धादि प्रथ प्रतियाँका फोटो लेना। सालके भीतर अपनी बिल्डिग बन जानी चाहिए, तभी साथही, एक सर्वाङ्गपूर्ण मुकम्मल जैननथ-सूची तय्यार प्रधान कार्यालय दिल्ली में पूर्ण रूपमे व्यवस्थित हो करना । इस कामके लिये वर्षके प्रायः तीन महीने रवय मकेगा। इसके लिये फिलहाल ६० हजार रुपयेकी ज़रूरत जायंगे, और चार वर्ष में यह काम पूरा हो सकेगा। इस है, जिसे समाजके हितैषी एवं गण्यमान्य मज्जनोंको शीघ्रही भ्रमणमें कमसे कम तीन विद्वान, एक फोटोग्राफर, एक पूरा करके राजधानी में अपनी एक आदर्श संस्थाको स्थायी रसोइया और एक नौकर तथा दूसरा ड्राइवर ऐसे मान कर देना चाहिए।
श्रादमी हांगे । इस भ्रमणके द्वारा संरथामें प्रकाशिन (२) 'जैनग्रंथ-प्रशस्ति-संग्रह' (प्रथम भाग) तथा माहित्यकी विक्री (मेल) भी हो सकेगी, प्रचार भी हो ममाधितंत्र और 'इष्टोपदेश' नामके जो दो ग्रन्थ प्रसमें है सकंगा और कितनीही ऐतिहासिक बातों तथा अनुश्रुतियोंऔर प्राधे-बाधेके करीब छप गये हैं उन्हें शीघ्र प्रकाश का पताभी चल सकेगा । खर्चका अन्दाज़ा ४ वर्षका लाना । माथही निम्न प्रथोंका जो करीब-करीब तैयार है, १० हजार होगा, जिसमें पहले वर्ष २५ हजारके लगभग यथासाध्य शीघ्र प्रसमें जानेके योग्य बनाना और उनके आएगा। क्योंकि उत्तम स्टेशन बैगन खरोदनी होगी और छपनेका प्रायोजन करना:
उस अपने उपयोगके अनुकूल व्यवस्थित करना होगा। १. समन्तभद्र का 'समीचीन-धर्मशास्त्र' (हिंदी-भाषामहित)।
किसी दानी महानुभावसे २०-२५ हजारकी सहायता प्राप्त २. लोकविजययंत्र (हिंदी टीकादि सहित ), जो कि होतेही यह कार्य प्रारम्भ कर दिया जावेगा । समाजक प्राकृत भाषाका पूर्व प्राचीन ग्रंथ है और देश विदेशके उत्थान, अवस्थान एवं सम्मानके साथ नीवनके लिये ऐसे भविष्यको जाननेका अच्छा सुन्दर साधन है। ३. जैन- कायोका बड़ा थावश्यकता । साहित्य और इतिहासपर विशद प्रकाश (ऐतिहासिक भाशा है समाजके धनी-मानी, सेवाभावी और मनिबन्धोंका संग्रह), जैनमथ-प्रशस्ति-संग्रह द्वितीय भाग, प्रेमी सज्जन अपनी शक्ति और श्रद्धाके अनुसार संस्थाके जिसमें अपभ्रंश भाषाके प्रायः अप्रकाशित ग्रंथोंकी प्रश- इन सभी कार्यों में अपना हाथ बटा कर यशके भागी होंगे। स्तियोंका बड़ा संग्रह है, ५. युगबीरनिबन्धावली।
-जुगलकिशार मुख्तार