SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 424
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ सरस्वती भवनोंके लिये व्यावहारिक योजना किरण ११] दूसरी अवस्थाके लिये कमसे कम सरकारी और अन्य सभी ऐतिहासिक, पुरातत्व तथा खुदाईके प्रतिष्ठानोंके साथ निकटतम सम्बन्ध स्थापित किया जाय, खुदाई व प्राचीनता श्रन्वेषक विद्वानोंको, चाहे वे किसी भी धर्म या समाजके हो, जैन संस्कृतिका परिचय देकर उनको जैन पुरातत्वका बारीकी अम्वेषण परीक्षण करनेके लिये उत्साहित किया जाय और जैन विद्वानोंको उनके सम्पर्कमे रहनेके लिये नियुक्त या प्रोत्साहित किया जाय । तीसरी अवस्थाके लिये अनवरत प्रचार और प्रेरणा की जाय । (4) विज्ञान ममस्त सभी धाधुनिक उपायों और यत्रोंका प्रयोग प्राचीन ग्रन्थों व अन्य साहित्यक वस्तुओं की रक्षा और उनको दीर्घ काल तक स्थायी रखनेके लिये भवनों में चालू किया जाय । तथा सभी शास्त्र भण्डारों को वह प्रणाली काममें जानेकी प्रेरणा की जाय । (७) प्रतिलिपि समय न गंवाकर माइको फिल्म और अन्य फोटो प्रणाली द्वारा अत्यन्त प्राचीन, अद्वितीय कठिनता प्राप्त और कनही आदि दाक्षिणात्य साहित्य की हूबहू नक़ल अबिलम्व लेली जाय व दक्षिणी भाषांक विद्वानों को हिन्दी लिपिमें अनुवाद व प्रतिलिपि करने योग्य बनानेके लिये स्कालरशिप व प्रोत्साहन दिया जाय । (5) एक प्रति परसे एक नकल की प्राचीन लेखनप्रथाके बदले स्टेन्सिल प्रथासे डुप्लीकेटर द्वारा एक साथ १००-५० प्रति निकाली जांय । स्टेन्सिल कापीका मूल प्रति परसे तत्काल मिलान करके दी डुप्लीकेट निकाली जाय । ( इस प्रथामे अनेक लाभ होंगे। बादमें संशोधनकी आवश्यकता नहीं रहेगी, पूरी प्रति खास ग्वास स्थानो में मंत्र ही जाने प्रशस्ति संग्रह आदिका काम कम हो जायगा, प्रकाशन कार्य में सुविधा और शीघ्रता होगी तथा लेखकों का अभाव नहीं खटकेगा । ) (१) प्रत्येक सरस्वती भवनमें एक रजिस्ट्रेशन ग्राफिम रहे जहां धार्मिक और सामाजिक प्रतिदिनकी महत्वपूर्ण घटनाओं को व्यवस्थित रूपसे डायरी तथा रजिस्टरोंमें दर्ज किया जाय और निर्धारित समय पर उनकी संख्या या सार भाग प्रकाशित किया जाय । वर्त्तमान परिचय व सूचीके फार्मोंको सुयवस्थित और सुरक्षित रखा जाय ऐतिहा सिक अनुसंधान, अन्वेषण और पुरातत्व-सम्बन्धी शोध खोज पर जीके दर्जनों मासिक मासिक पत्र तथा [ ३७५ अन्य भाषाओंके भी पत्रोंमें व रिपोर्ट बादिमें महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित होते रहते हैं, उनमेंसे जो जैनधर्म और जैन संस्कृत पर हों अथवा जिनसे जैनधर्म और संस्कृति पर महत्व पूर्ण प्रकाश पड़ने की आशा हो, उनको नियमित रूपसे नोट करके प्रकाशित किया जाय ताकि कोई महत्वपूर्ण बात छूटने न पावे, तत्सम्बन्धी समर्थन या लण्डनका प्रमाण जो भवनमें मौजूद हो, उसकी सुचना जैन विज्ञानको यथा समय दी जाय, तद्विषयक आवश्यक प्रमाण या माहित्य प्राप्त करनेकी उनको सुविधा दी जाय अथवा मार्ग प्रदर्शन किया जाय। धर्म और ममाजकी उन्नतिका कोई ठोस कार्य उपरांत प्राथमिक उपायोंका अवलम्बन किये विना कदापि नहीं हो सकता है। किसी दूसरी संस्थाकी अपेक्षा सरस्वती भवन ही इन कार्योंके लिये सर्वाधिक क्षमताशील साधन और उपयुक्त क्षेत्र है जहां कि किसी भी मत-भेदमे ऊपर उठकर कार्य संचालन हो सकता है। ऊपर जिन कार्योंकी ओर संकेत है, वे बुनियादी और अनिवार्य आवश्यकताये हैं और इनकी उपयोगिता प्रत्यक्ष व निर्विवाद है । ऐलक पशालाल सरस्वती भवनके सभापति महोदय "इसकी सम्पूर्ण शक्तियांका उपयोग ग्रन्थ संशोधन, नवीन अनुसंधान तथा अन्यान्य साहित्य के निर्माणके कार्यों में " करना चाहते है वह ठीक है परन्तु इन कार्यों के लिये उपरोक योजनाको कार्य रूपमें परिणत किये बिना कोई वास्तविक सफलता की आशा आकाश पुष्पवत् है । इम योजना अनुसार काम होने लगे तभी श्रन्यान्य साहित्यके निर्माणका सचा मार्ग खुल सकता है। इस योजनाको व्यवस्थित रीतिसे सरलता पूर्वक चलानेके लिये झालरापाटन, व्यावर और बम्बई के प्रतिfre और भी केन्द्र हो तो थच्छा हो ताकि महत्वपूर्ण प्रान्तोंका सम्बन्ध उनके साथ अधिक सुविधाकी दृष्टिमे जोड़ा जा सके तथा बांटने योग्य विषय प्रत्येक केन्द्र में वांटे जा सकें । अतः धारा स्थित जैनसिद्धान्त भवनको भी इस योजना से संबद्ध होने की आवश्यकता है । यदि सरस्वती भवनको अपना ले तो धर्म और समाजके एक बड़े प्रभावकी पूर्ति सहज और शीघ्र हो सकती है।
SR No.538011
Book TitleAnekant 1952 Book 11 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1952
Total Pages484
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size29 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy