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किरण १]
अनेकान्त-रम-लहरी
उन्होंने जिलाधीश ( कलक्टर ) में मिलकर उन पहुँचाई जाती है । इममे कितने ही कुटुम्बोंको आकुजिलाधीशके नामपर एक हस्पताल (चिकित्सालय) लता मिटकर उन्हें अभयदान मिल रहा है। (१) ग्बोलनेके लिये पाँच लाग्वका दान किया है और वे चौथे सज्जन गवर्नमेंटके पंशनर बाबू मेवाराम है, जिलाधीशकी मफारिश पर रायबहादुर तथा प्रॉन- जिन्होंने गवर्नमेटके साथ अपनी पेशनका दम रेरी मजिस्ट्रेट बना दिये गये है।
हजार नकदमे ममझौता कर लिया है और उस इसी तरह हमें चार प्रेम दानी माजनांका भी सारी रकमको उन ममाजसेवकांकी भोजनव्यवस्थाके हाल मालूम है जिन्होंने दम दम हजारका दान लिये दान कर दिया है जो नि.स्वार्थभावस समाजकिया है । उनमेम (१) एक तो है मेठ दयाचन्द, सेवाके लिये अपनेको अर्पित कर देना चाहते है जिन्होंने नगरमे याग्य चिकित्मा तथा दवाईका कोई परन्तु इतने माधन-सम्पन्न नहीं है कि उम दशामें ममुचित प्रबन्ध न देखकर और माधारण गरीब भोजनादिकका ग्वचे स्वयं उठा मकै । इममे समाजजनताको उनके प्रभावमं दग्वित एवं पीडित पाकर म निःस्वार्थ सवकोंकी वृद्ध हागी और उनम कितना अपनी निजकी कमाईमम दम हजार रुपये दानमे ही मेवा एवं लोकहितका कार्य महज सम्पन्न हो निकाले है और उस दान की रकमम एक धर्मार्थ भकेगा । बाबृ संवागमजीन म्वयं अपनको भी शुद्ध औपधालय स्थापित किया है जिमम गरीव ममाजसेवा लिये अर्पित कर दिया है और अपने रोगियोंकी संवा-शुश्रुपापर विशंप ध्यान दिया जाता दानद्रव्यके मदुपयोगकी व्यवस्थामे लगे हुए है। है और उन्हें दवाई मुफ्त दी जाती है। मंठ माहव अब बतलाओं दस-दस हजार इन चारों औषधालयकी सुव्यवस्थापर पूरा ध्यान रखते है दानियोंमस क्या कोई दानी मा है जिमं तुम और अक्मर म्वयं भी संवाद लिय औपधालयम पाँच-पाँच लाखक उक्त चारों दानियोमम किमीम पहुँच जाया करत है। () दुसरे मंठ ज्ञानानन्द भी बड़ा कह मको? यदि है तो कौन-मा है और है, जिन्हें सम्यगज्ञान-वर्धक माधनोंक प्रचार और वह किमम बड़ा है। प्रसारमें बड़ा आनन्द आया करता है । उन्होंने विद्यार्थी-मुभनी यह दम-दम हजारकं चारों अपनी गाढ़ी कमाईमेसे दस हजार रुपये प्राचीन ही दानी उन पाँच-पाँच लाग्वक प्रत्येक दानीम बड़ जैनमिद्धांत-ग्रन्थाक उद्धारार्थ प्रदान किये है और दानी मालूम होत है। उम द्रव्यकी गमी व्यवस्था की है जिमम उत्तम अध्यापक-कैम ? जरा समझाकर बतलाओ। मिद्धांत-ग्रन्थ बराबर प्रकाशित होकर लोकका हिन विद्यार्थी-पाँच लाखक प्रथम दानी मंठ डालकर रहे है। (३) तीमरे मज्जन लाला विवेकचन्द है, चन्दन जो द्रव्य दान किया है वह उनका अपना जिन्हें अपने समाजक बेरोजगार (श्राजीविकारहिन) द्रव्य नहीं है, वह वह द्रव्य है जो ग्राहकोमं मुनाफक व्यक्तियोंको कष्टमे देखकर बड़ा कष्ट होता था और अतिरिक्त धर्मदाक रूपमै लिया गया है, इसलिये उन्होंने उनकं दुबमोचनार्थ अपनी शद्ध न कि वह द्रव्य जो अपने मुनाफेमस कमाईमेंसे दम हजार रुपये दान किये है। इम दानके लिये निकाला गया हो । और इम. द्रव्यमे बरोजगारोंको उनके योग्य रोजगारमे लगाया लिए उममे मैकड़ों व्यक्तियांका दानद्रव्य शामिल जाता है-दुकान खुलवाई जाती है, शिल्पके माधन है। अत दानकं लक्षणानुमार मठ डालचन्द उस जुटाये जात है, नौकरियाँ दिलवाई जाती है और द्रव्यकं दानी नहीं कह जामकते - दानद्रव्य व्यवजब तक आजीविकाका कोई ममुचित प्रबन्ध नही स्थापक होमकत हैं। व्यवस्थामें भी उनकी पि बैठता तबतक उनके भोजनादिकमें कुछ सहायता अपने व्यापारकी रही है और इसलिये उनके उम