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________________ अनेकान्त-रस- लहरी [2] बड़ा और छोटा दानी [ इस स्तम्भके नीचे लेख लिखनेके लिये सभी विद्वानोंको सादर श्रामन्त्रण है । लैग्योंका लक्ष्य वही होना चाहिये जो इस स्तम्भका प्रारम्भ करते हुए व्यक्र किया गया था अधात् लेखों में अनेकान्त जैसे गम्भीर विषयको ऐम मनोरंजक ढंगसे सरल शब्दों में समझाया जाय जिससे बच्चे तक भी उसके मर्मको आसानीसे जान सके, वह कठिन दुर्बोध एवं नीरस विपय न रहकर सुगम - सुखबोध तथा रसीला विषय बन जाय - बानकी बात में समझा जासके— और जनसाधारण सहजमें ही उसका रसास्वादन करते हुए उसे हृदयकम करने, अपनाने और उसके आधार पर तत्वज्ञानमें प्रगति करने, प्राप्त ज्ञानमें समीचीनता लाने, विरोधको मिटाने तथा लोक व्यवहारमें सुधार करने के साथसाथ अनेकान्तको जीवनका प्रधान श्रङ्ग बनाकर सुख-शान्तिका अनुभव करने में समर्थ हो सके । सम्पादक ] उससे आपका यह दस हजारका दानी बड़ा दानी । इस तरह १० हजारका दानी एककी अपेक्षासे बड़ा दानी और दूसरेकी अपेक्षा छोटा दानी है, तदनुसार पाँच लाखका दानी भी एककी अपेक्षासे बड़ा और दूसरे की अपेक्षा छोटा दानी है । हैं अध्यापक- हमारा मतलब यह नहीं जैसा कि तुम समझ गये हो, दूसरोंकी अपेक्षाका यहाँ काई प्रयोजन नहीं | हमारा पृछनेका अभिप्राय सिर्फ इतना ही है कि क्या किसी तरह इन दोनों दानियोंमेसे पाँच लाखका दानी दस हज़ार के दानीसे छोटा और दस हजारका दानी पाँच लाखके दानीसे बड़ा दानी हो सकता है ? और तुम उसे स्पष्ट करके चला सकते हो ? -:०४०: उसी दिन अध्यापक वीरभद्रने दूसरी कक्षा में जाकर उस कक्षा के विद्याथियोंकी भी इस विषय में जॉच करनी चाही कि वे बडे और छोटेके तत्त्वको, जो कई दिनसे उन्हें समझाया जारहा है, ठीक समझ गये है या कि नहीं अथवा कहाँ तक हृदयगम कर मके है, और इसलिये उन्होंने कक्षाके एक सबसे अधिक चतुर विद्यार्थीको पासमें बुलाकर पूछा एक मनुष्यने पाँच लाखका दान किया है और दूसरने दस हजारका, बतलाओ, इन दोनों बड़ा दानी कौन है ? विद्यार्थीने चटसे उत्तर दिया- 'जिसने पॉच लाखका दान किया है वह बड़ा दानी है ।" इसपर अध्यापक महोदय एक गंभीर प्रश्न किया 'क्या तुम पाँच लाख के दानीको छोटा दानी और दस हजार के दानीको बड़ा दानी कर सकते हो ? विद्यार्थी - हाँ, कर सकता हूँ । अध्यापक – कैसे ? करके बतलाओ ? विद्यार्थी - मुझे सुखानन्द नामके एक सेठका हाल मालूम है जिसने अभी दस लाखका दान दिया है, उससे आपका यह पाँच लाखका दानी छोटा दानी है । और एक ऐसे दातारको भी मैं जानता हूँ जिसने पाँच हजारका ही दान दिया है, विद्यार्थी - यह कैसे होसकता है ? यह तो उसी तरह असंभव है जिस तरह पत्थरकी शिला अथवा लोहेका पानीपर तेरना । अध्यापक - पत्थरकी शिलाको लकड़ीकी स्लीपर या मोटे तख्तेपर फिट करके अगाध जलमे तिराया जासकता है और लोहेकी लुटिया, नौका अथवा कनस्टर बनाकर उसे भी तिगया जासकता है । जब युक्तिसे पत्थर और लोहा भी पानीपर तैर सकते है और इसलिये उनका पानीपर तैरना सर्वथा असंभव नहीं कहा जासकता, तब क्या तुम युक्तिसे दस हजारके दानीको पाँचलाखके दानीसे बड़ा सिद्ध नहीं कर सकते ?
SR No.538010
Book TitleAnekant 1949 Book 10 Ank 01 to 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJugalkishor Mukhtar
PublisherVeer Seva Mandir Trust
Publication Year1949
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Anekant, & India
File Size30 MB
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